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मानसिक दिव्यांग अविवाहित पुत्री को फैमिली पेंशन देने के आदेश

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जयपुर। राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिए हैं कि वह पूर्व राजकीय कर्मचारी की मानसिक रूप से दिव्यांग 62 साल की अविवाहित पुत्री को अंतरिम रूप से फैमिली पेंशन अदा करे। अदालत ने कहा है कि याचिकाकर्ता को सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग की ओर से दिव्यांग पेंशन का लाभ दें और इसकी गणना फैमिली पेंशन में नहीं की जाए। इसके साथ ही अदालत ने राज्य सरकार से दिव्यांग पेंशन योजना के संबंध में भी जानकारी पेश करने को कहा है। अदालत ने मामले में राज्य विधि सेवा प्राधिकरण के सदस्य सचिव को कहा है कि वह प्रकरण में याचिकाकर्ता को सभी जरूरी सहायता मुहैया कराए, ताकि उसे फैमिली पेंशन और दिव्यांग पेंशन का लाभ मिल सके। जस्टिस सुदेश बंसल ने यह आदेश महिला की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए।

सुनवाई के दौरान अदालती आदेश की पालना में राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण की ओर से याचिकाकर्ता के जीवन स्तर को लेकर तथ्यात्मक रिपोर्ट पेश की गई। रिपोर्ट में बताया गया कि याचिकाकर्ता 62 साल की महिला है और मानसिक दिव्यांग होकर न्यूरोलॉजिकल समस्याओं सहित अन्य शारीरिक बीमारियों से ग्रसित है। वह अपने रिटायर भाई के साथ रहती है और उनके पास आजीविका का कोई स्वतंत्र स्त्रोत भी नहीं है। दूसरी ओर अदालत के सामने आया की यदि किसी सरकारी कर्मचारी या पेंशनर की किसी भी आयु की संतान मानसिक दिव्यांग या शारीरिक दिव्यांग होकर जीविकोपार्जन में असमर्थ है तो उसे आजीवन फैमिली पेंशन दी जाएगी। इसके बावजूद कार्मिक विभाग ने जुलाई, 2010 को उसे यह पेंशन देने से इनकार कर दिया। जिस पर सुनवाई करते हुए एकलपीठ ने याचिकाकर्ता को फैमिली पेंशन के साथ ही दिव्यांग पेंशन का लाभ देने को कहा है।


न्यायमित्र पूर्वी माथुर ने बताया कि याचिकाकर्ता 63 साल की एकल बुजुर्ग महिला है और मानसिक दिव्यांग है। उसके पिता सचिवालय और मां चिकित्सा विभाग में कार्यरत थी। दोनों का पूर्व में निधन होने पर वह अपने भाई-भाभी के पास रहने लगी। वहीं कुछ सालों पहले उसकी भाभी का भी निधन हो गया। याचिकाकर्ता ने फैमिली पेंशन के लिए पिता के विभाग में आवेदन किया, लेकिन विभाग ने उसका आवेदन यह कहते हुए खारिज कर दिया कि उसके पिता ने सरकारी सेवा में रहते हुए कभी भी याचिकाकर्ता की मानसिक दिव्यांगता के बारे में कोई जानकारी नहीं दी और ना ही कोई दस्तावेज पेश किए।

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