Next Story
Newszop

राजस्थान का कुम्भलगढ़ किला रात में क्यों बन जाता है डरावना? 2 मिनट के लीक्ड फुएज में जानें वो राज जो आज भी लोगों को सिहरने पर कर देते हैं मजबूर

Send Push

राजस्थान की धरती पर बने कुम्भलगढ़ किले को ऐतिहासिक भव्यता और अपराजेयता के लिए जाना जाता है। यह किला दिन में एक आकर्षक पर्यटन स्थल के रूप में हजारों सैलानियों को अपनी ओर खींचता है, लेकिन जैसे ही सूरज ढलता है, इसकी दीवारों के बीच सन्नाटा, अंधेरे गलियारों की खामोशी और रहस्यमयी कहानियाँ इसे एक डरावनी पहचान भी देती हैं। आखिर ऐसा क्या है जो इस अजेय दुर्ग को रात होते ही भयावह बना देता है?

कुम्भलगढ़ किले का ऐतिहासिक वैभव

अरावली की पहाड़ियों में बसा कुम्भलगढ़ किला राजस्थान के राजसमंद जिले में स्थित है। इसे 15वीं शताब्दी में महाराणा कुम्भा ने बनवाया था। किला समुद्र तल से लगभग 1100 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और इसकी दीवार 36 किलोमीटर लंबी है, जिसे 'भारत की चीन की दीवार' भी कहा जाता है। यहीं पर महाराणा प्रताप का जन्म भी हुआ था, जो इसे और भी गौरवशाली बनाता है।

दिन में सौंदर्य और भव्यता, रात में रहस्य और सन्नाटा

दिन के समय यह किला बेहद सुंदर नजर आता है। इसकी भव्य दीवारें, विशाल प्रवेश द्वार, जैन और हिंदू मंदिर, और ऊँचाई से दिखने वाले मनोरम दृश्य हर किसी को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। लेकिन जैसे ही सूरज अस्त होता है, वही किला डरावना लगने लगता है। पर्यटकों और गाइड्स के अनुसार, शाम होते ही इस किले में अजीब सन्नाटा पसरने लगता है, जिससे इसके गलियारों और बंद कक्षों में अजीब सी बेचैनी महसूस होती है।

क्यों कहा जाता है इसे डरावना?

इस किले से जुड़ी कई कथाएँ और लोककथाएं इसे एक रहस्यमयी और डरावनी पहचान देती हैं। कहा जाता है कि इस किले का निर्माण जब शुरू हुआ, तब कई बार दीवारें और ढांचे रातों-रात गिर जाते थे। तांत्रिकों और पुजारियों की सलाह पर एक संत ने स्वयं को बलिदान कर दिया, जिसके बाद जाकर यह किला पूर्ण रूप से निर्मित हो पाया। उसी संत के बलिदान के स्थान पर आज भी एक छोटा मंदिर बना हुआ है।

भूतिया घटनाओं की कहानियाँ

स्थानीय लोगों और रात में पहरा देने वाले सुरक्षाकर्मियों के अनुसार, किले में रात के समय कुछ अनजानी गतिविधियां होती हैं। कुछ लोगों ने किले के भीतर अजीबो-गरीब आवाजें, पदचाप, और रोने-चिल्लाने की ध्वनियां सुनने का दावा किया है। हालांकि इन घटनाओं का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है, फिर भी यह कहानियाँ इस किले को और अधिक रहस्यमयी बनाती हैं।

सुर्यास्त के बाद किले में रुकना मना क्यों है?

सरकारी नियमों के तहत सूर्यास्त के बाद कुम्भलगढ़ किले में किसी को भी रुकने की अनुमति नहीं होती। यह नियम सिर्फ सुरक्षा कारणों से ही नहीं, बल्कि उस डर और अनिश्चितता की वजह से भी है जो अंधेरा होते ही इस किले में छा जाती है। गार्ड्स भी रात में अधिकतर समूह में गश्त लगाते हैं और अजनबियों को शाम होते ही किले से बाहर कर दिया जाता है।

कुम्भलगढ़ लाइट एंड साउंड शो – डर के साथ इतिहास

किले में शाम के समय एक लाइट एंड साउंड शो आयोजित किया जाता है, जिसमें महाराणा कुम्भा से लेकर महाराणा प्रताप तक की गाथा को रोशनी और ध्वनि के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है। हालांकि यह शो पर्यटकों के लिए बेहद रोमांचक होता है, लेकिन शो खत्म होते ही जो अंधेरा चारों ओर छा जाता है, वह अपने साथ रहस्य और सिहरन लेकर आता है।

क्या यह डर सिर्फ कल्पना है?

कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि किले की बनावट, गूंजती दीवारें, और अंधेरे गलियारे ही डर का कारण बनते हैं। जब इतिहास और रहस्य साथ मिलते हैं, तो मनोवैज्ञानिक रूप से डर का अनुभव होना सामान्य है। फिर भी, स्थानीय विश्वास और वर्षों से चली आ रही कथाएं इस डर को वास्तविकता का रूप देती हैं।

Loving Newspoint? Download the app now