2023 के विधानसभा चुनाव और फिर 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के कई बड़े नेताओं ने पाला बदल लिया। इन बड़े नेताओं के पाला बदलते ही कांग्रेस से भाजपा में आने वाले नेताओं की लाइन लग गई। अब सत्ताधारी दल के सामने इन्हें एडजस्ट करने की चुनौती है। इनमें से कई नेताओं को चुनाव में टिकट भी दिया गया, लेकिन हार गए। अब निगाहें आयोग या बोर्ड में पदों पर हैं। इसे लेकर नेता राजनीतिक नियुक्ति का इंतजार कर रहे हैं। जयपुर से लेकर दिल्ली तक भाजपा संगठन में भी सुगबुगाहट है। दरअसल, भजनलाल सरकार बनने के 17 महीने बाद भी ये नेता सक्रिय भूमिका नहीं निभा रहे हैं। न तो संगठन में जिम्मेदारी और न ही पार्टी के प्रचार अभियानों में इनकी भागीदारी देखने को मिली है। अंदरखाने यह भी कहा जा रहा है कि इनमें से कई नेता अब भी नियमित रूप से भाजपा प्रदेश मुख्यालय आते हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जो सदस्यता लेने के बाद एक दिन भी पार्टी कार्यालय नहीं आए।
ऐसे नेताओं की लंबी फेहरिस्त
ऐसे भाजपा नेताओं की लंबी फेहरिस्त है, जिन्होंने कांग्रेस से बगावत कर दी है। कांग्रेस सांसद रहीं ज्योति मिर्धा को भाजपा ने विधानसभा के साथ-साथ लोकसभा चुनाव में भी उतारा था, लेकिन वे दोनों बार हार गईं। वहीं, वागड़ के कद्दावर आदिवासी नेता और गहलोत सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे महेंद्रजीत सिंह मालवीय को भाजपा में शामिल होने के बाद विधायक पद से इस्तीफा देना पड़ा था। जब उन्होंने बांसवाड़ा-डूंगरपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा तो उन्हें राजकुमार रोत के हाथों हार का सामना करना पड़ा था। अब हालात ये हैं कि वे न तो विधायक हैं और न ही क्षेत्र में उनका पहले जैसा रुतबा है। इस सूची में गिर्राज सिंह मलिंगा जैसे कई नाम हैं। हालांकि, करौली से पूर्व कांग्रेस सांसद दर्शन सिंह गुर्जर, खंडेला से सुभाष मील और कठूमर से रमेश खिंची भी भाजपा के चुनाव चिन्ह पर चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे हैं।
ये नेता भी कतार में
अलवर से पूर्व सांसद करण सिंह यादव, दो बार
राजस्थान के पूर्व कृषि मंत्री लालचंद कटारिया
पूर्व गृह राज्य मंत्री राजेंद्र यादव
पूर्व विधायक रिछपाल मिर्धा
पूर्व विधायक आलोक बेनीवाल
पूर्व विधायक खिलाड़ी लाल बैरवा
पूर्व विधायक जेपी चंदेलिया
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