अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसी रॉयटर्स के आधिकारिक एक्स (पूर्व ट्विटर) अकाउंट को भारत में अचानक रोक दिया गया है.
शनिवार रात के बाद से जब देश में इंटरनेट यूज़र्स रॉयटर्स (@Reuters) और रॉयटर्स वर्ल्ड (@ReutersWorld) का एक्स हैंडल खोलने की कोशिश करते हैं, तो स्क्रीन पर एक संदेश आता है, "यह अकाउंट भारत में क़ानूनी मांग की वजह से रोका गया है."
एक्स प्लेटफ़ॉर्म के नियमों के मुताबिक़, यह संदेश तब दिखता है जब एक्स किसी वैध क़ानूनी मांग, जैसे अदालत के आदेश, की वजह से पूरे अकाउंट को ब्लॉक करने की कार्रवाई करता है.
इसके बाद सोशल मीडिया पर विपक्षी नेताओं समेत कई लोगों ने चिंता जताई है और इसे प्रेस की स्वतंत्रता पर सवाल उठाने वाला कदम बताया है.
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इस प्रतिबंध पर फिलहाल रॉयटर्स की तरफ़ से कोई बयान जारी नहीं किया गया है. हालांकि, रॉयटर्स समाचार एजेंसी के रॉयटर्स टेक न्यूज़, रॉयटर्स फ़ैक्ट चेक, रॉयटर्स पिक्चर्स, रॉयटर्स एशिया और रॉयटर्स चाइना सहित कई अन्य अकाउंट देश में अभी भी काम कर रहे हैं.
रॉयटर्स के अलावा तुर्की के सरकारी ब्रॉडकास्टरटीआरटी वर्ल्डऔर चीन के अख़बार ग्लोबल टाइम्स के एक्स अकाउंट्स भी भारत में नहीं खुल रहे हैं. इन अकाउंट्स को खोलने पर भी एक जैसे ही संदेश दिखाई देते हैं.
न्यूज़ एजेंसी पीटीआई के मुताबिक़, सरकार के एक प्रवक्ता ने कहा है कि रॉयटर्स का अकाउंट रोकने के लिए भारत सरकार की तरफ़ से कोई क़ानूनी मांग नहीं की है. उन्होंने बताया कि सरकार एक्स के साथ संपर्क में है.
समाचार एजेंसी एएनआई ने भी इस तरह की जानकारी दी है. हालांकि एजेंसी ने इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के आधिकारिक प्रवक्ता के हवाले से ये जानकारी दी है.
सरकार की तरफ़ से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया सार्वजनिक तौर पर साझा नहीं की गई है.
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तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा ने इसे लेकर सरकार की निंदा की है.
उन्होंने एक्स पर लिखा है, ''सरकार नफ़रत फैलाने वाले लाखों अकाउंट्स को तो बढ़ावा देती है लेकिन एक सम्मानित अंतरराष्ट्रीय समाचार संस्था रॉयटर्स का अकाउंट बंद कर देती है. इन हरकतों से भारत दुनिया में और अलग-थलग पड़ता जा रहा है."
कांग्रेस नेता सुप्रिया श्रीनेत ने भी सरकार से सवाल किया है.
उन्होंने एक्स पर लिखा है, "भारत में रॉयटर्स का अकाउंट क्यों बंद किया गया? उन्होंने ऐसा क्या किया? क्या हम ऐसे लोकतंत्र हैं जो प्रतिष्ठित समाचार एजेंसियों को बर्दाश्त नहीं कर सकता? हर असहमति और सवाल की आवाज़ क्यों दबाई जा रही है? मोदी सरकार भारत को दुनिया के सामने मज़ाक क्यों बना रही है?"
शिवसेना (यूबीटी) सांसद प्रियंका चतुर्वेदीने कहा कि सरकार के इस तरह के 'ओवर रिएक्शन' से भारत को एक ऐसा देश दिखाया जा रहा है जो किसी भी आलोचना को सहन नहीं कर सकता.
उन्होंने एक्स पर लिखा है, ''इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय, साथ ही सूचना और प्रसारण मंत्रालय, दोनों के इंचार्ज हर दिन अपनी नाकामी की नई मिसालें पेश कर रहे हैं. साफ़ है कि मंत्रालय इस तरह भारत को एक अति संवेदनशील देश की तरह दिखाना चाहते हैं, जो आलोचना बर्दाश्त नहीं कर सकता."
"जिन न्यूज़ हैंडल्स का कोई एजेंडा हो सकता है, उनसे बातचीत के ज़रिए और भारत के नज़रिए को लोगों तक पहुंचाकर निपटा जा सकता है. लेकिन इस तरह उन्हें बैन करके हम केवल अपरिपक्व और असहिष्णु नज़र आते हैं.''
नेताओं के साथ-साथ कई आम लोग भी इस पर प्रतिक्रिया दे रहे हैं.
पवन केएन नाम के एक एक्स यूज़र ने लिखा, "प्रतिष्ठित समाचार एजेंसियों पर प्रतिबंध लगाना असहमति और सवालों को दबाता है, जिससे लोकतंत्र कमज़ोर होता है."
निखिल कुरियन ने लिखा, ''रॉयटर्स के अकाउंट पर रोक है लेकिन इसका कारण स्पष्ट नहीं है.''
गुरमनीत सिंह मंगत ने लिखा, "जब कोई शासन यह तय करने लगे कि लोग क्या पढ़ सकते हैं और क्या नहीं, तो वह सरकार नहीं रह जाती, वह संविधान के लिए एक ख़तरा बन जाती है."
वहीं अरिका ने इस कदम का समर्थन किया है. उन्होंने लिखा कि ये हैंडल भारत के ख़िलाफ़ भ्रामक जानकारी फैला रहे थे.
इसी तरह की प्रतिक्रिया मिनी नाम के एक एक्स हैंडल की भी है, जिन्होंने समाचार एजेंसी पर फर्जी ख़बरें देने का आरोप लगाया.
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यह पहला मौक़ा नहीं है जब भारत में एक्स पर किसी मीडिया चैनल या उसके अकाउंट को ब्लॉक किया गया हो.
इससे पहले भारत-पाकिस्तान संघर्ष के दौरान पाकिस्तान से जुड़े कई एक्स अकाउंट्स को ब्लॉक किया गया था. इनमें पाकिस्तानी मीडिया चैनलों के हैंडल्स के साथ-साथ कई पाकिस्तानी एक्टर्स और इन्फ्लूएंसर्स के एक्स हैंडल भी शामिल थे.
ये रोक केवल एक्स हैंडल तक सीमित नहीं थी बल्कि यूट्यूब और इंस्टाग्राम पर भी अकाउंट्स को ब्लॉक किया गया था.
उस वक्त टीआरटी वर्ल्ड, ग्लोबल टाइम्स और शिन्हुआ को रोका गया था, हालांकि बाद में ये अकाउंट खुलने लगे थे.
चीन में मौजूद भारतीय दूतावास ने ग्लोबल टाइम्स से कहा था कि वह कोई भी भ्रामक जानकारी देने से पहले अपने तथ्यों की पुष्टि करें और स्रोतों की जांच करें.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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