भारत में भगोड़ा करार दिए गए हीरा कारोबारी मेहुल चोकसी को 14 अप्रैल को बेल्जियम में गिरफ़्तार कर लिया गया. इसके बाद से उनके प्रत्यर्पण यानी उन्हें बेल्जियम से भारत लाने की चर्चा तेज है.
भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने पत्रकारों को बताया था कि भारत के ही प्रत्यर्पण के आग्रह पर मेहुल चोकसी को बेल्जियम में गिरफ़्तार किया गया.
उन्होंने बताया था, "हम उनके (मेहुल चोकसी) प्रत्यर्पण के लिए बेल्जियम के साथ मिलकर काम कर रहे हैं ताकि उन पर देश में मुकदमा चलाया जा सके."
भारत को मेहुल चोकसी के अलावा, नीरव मोदी, ललित मोदी, विजय माल्या और नितिन संदेसरा के प्रत्यर्पण का इंतज़ार है, जिन पर हज़ारों करोड़ रुपये की हेराफेरी के आरोप हैं.
लेकिन क्या इन्हें भारत लाना इतना आसान है और प्रत्यर्पण की क़ानूनी प्रक्रिया कितनी जटिल है, इस स्टोरी में हम यहां यही समझने की कोशिश करेंगे.
प्रत्यर्पण क्या है?प्रत्यर्पण एक क़ानूनी प्रक्रिया है, जिसमें राष्ट्रों के बीच द्विपक्षीय समझौता ज़रूरी होता है.
आसान शब्दों में कहें तो प्रत्यर्पण के तहत किसी अपराधी को उस देश को वापस लौटाया जाता है जहां से वो अपराध करके भागा होता है.
दो देशों के बीच ये तभी हो सकता है जब उनके बीच इस संबंध में द्विपक्षीय समझौता हो.
भारतीय विदेश मंत्रालय के अनुसार जिन मामलों की जांच चल रही है या जो मामले विचाराधीन हैं, उनमें प्रत्यर्पण की मांग की जा सकती है. जिन मामलों में सज़ा मिल चुकी है उनमें भी अपराधियों के प्रत्यर्पण की मांग की जा सकती है.
जिन मामलों में जांच चल रही है उनमें क़ानूनी जांच एजेंसियों को इस बात का विशेष ध्यान रखना होता है कि विदेशी न्यायालयों में आरोप सिद्ध करने के लिए उनके पास पर्याप्त सबूत होने चाहिए.
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में फ़ैकल्टी ऑफ़ लॉ के प्रोफ़ेसर और अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों के जानकार डॉ. अजेंद्र श्रीवास्तव कहते हैं, "ऐसा नहीं है कि यहां की पुलिस ने दूसरे देश की पुलिस से कहा कि आप इस व्यक्ति को हमें सौंप दीजिए और उन्होंने सौंप दिया. यह एक क़ानूनी प्रक्रिया है, जिसमें दोनों देशों के कोर्ट शामिल होते हैं. प्रत्यर्पण के लिए दोनों देशों के बीच संधि होती है और एक क़ानून होता है, जिसके तहत प्रत्यर्पण किया जाता है."
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प्रत्यर्पण की प्रक्रिया और चुनौतियांये सवाल मन में आ सकता है कि जब अपराध हुआ है, मुकदमा दर्ज है और जांच एजेंसियों के पास सबूत भी हैं तो भी अभियुक्तों का प्रत्यर्पण क्यों नहीं हो पाता है या इतना लंबा समय क्यों लगता है?
इस पर डॉ. अजेंद्र श्रीवास्तव कहते हैं, "जिस व्यक्ति के प्रत्यर्पण की मांग कर रहे हैं. उस व्यक्ति के ख़िलाफ़ देश में कोई केस होना चाहिए. तब आप उस केस को दूसरे देश के सामने रखते हैं. उस देश का भी अपना एक क़ानून होता है, जिसमें यह बताया गया होता है कि जब कोई देश किसी व्यक्ति के प्रत्यर्पण की मांग करता है तो हम उस व्यक्ति को सौंपेंगे या नहीं."
प्रोफ़ेसर अजेंद्र कहते हैं, "उस देश के कोर्ट के सामने आपको मामले को रखना पड़ता है और कहना पड़ता है कि संबंधित व्यक्ति ने हमारे देश में प्रथम दृष्टया अपराध किया है. आपको उस देश के कोर्ट में अपराध को साबित करना होता है. यह सुनिश्चित करना होता है कि उस व्यक्ति के ख़िलाफ़ मुक़दमा क़ानूनी प्रक्रिया के तहत चलाया जाएगा. जब उस देश का कोर्ट संतुष्ट हो जाएगा कि वास्तव में अपराध किया गया है तो ही वह देश प्रत्यर्पण की अनुमति देगा."
वह कहते हैं, "जब आप किसी अपराधी की मांग करते हैं और उस पर मुक़दमा चलाते हैं तो यह अधिकार का भी मामला बनता है. चूंकि यह अधिकार का मामला बन जाता है तो ऐसे में दूसरे देश प्रत्यर्पण के मामलों में काफ़ी एहतियात बरतते हैं."
प्रोफ़ेसर अजेंद्र कहते हैं, "एक जरूरी बात यह भी है कि आपके देश में किया गया अपराध संबंधित देश में भी अपराध की श्रेणी में आना चाहिए. अगर कोई अपराध जो आपके यहां बड़ा है लेकिन संबंधित देश में तुलनात्मक रूप से बहुत छोटा है तो वह देश कह सकता है कि इतने छोटे अपराध के लिए हम प्रत्यर्पण क्यों करें."
प्रोफ़ेसर कहते हैं, "अभियुक्त यह भी कह सकता है कि जिस देश में मुझे भेजा जा रहा है, वहां पर मेरे मौलिक और मानवाधिकारों का उल्लंघन हो सकता है. मेरे ख़िलाफ़ निष्पक्ष मुकदमा नहीं चलाया जाएगा या मेरी जान को ख़तरा हो सकता है. इस आधार पर वह संबंधित कोर्ट में प्रत्यर्पण को चुनौती दे सकता है."
वह कहते हैं, "कुछ देशों जैसे यूरोपीय देशों में मृत्युदंड को ख़त्म कर दिया गया है. वो देश यह भी मांग करते हैं कि व्यक्ति को मृत्युदंड नहीं दिया जाएगा. आपको यह भी आश्वासन देना पड़ता है कि अभियुक्त को अच्छी तरह से जेल में रखा जाएगा और जेल की स्थिति अच्छी होगी."
प्रोफ़ेसर अजेंद्र कहते हैं, "प्रत्यर्पण एक क़ानूनी प्रक्रिया है और इसमें कोर्ट शामिल होता है. व्यक्ति के ख़िलाफ़ मुक़दमा चलाया जाता है. यह प्रक्रिया कोई विश्वास के आधार पर नहीं होती है. यह क़ानून के तहत चलती है. इसलिए प्रत्यर्पण के मामलों में लंबा समय लगता है."

द भारत में प्रत्यर्पण संबंधी क़ानून के लिए प्रत्यर्पण अधिनियम 1962 है.
भगोड़े अपराधियों के प्रत्यर्पण से संबंधित क़ानून को मजबूत करने के लिए, उसमें संशोधन करने के लिए या उससे जुड़े किसी अन्य मामले में प्रावधान के लिए प्रत्यर्पण अधिनियम 1962 को आधार माना जाएगा.
1993 के अधिनियम 66 के जरिये 1993 में भारतीय प्रत्यर्पण अधिनियम 1962 में कई संशोधन किए गए हैं.
कनाडा, थाईलैंड, ऑस्ट्रेलिया, यूनाइटेड किंगडम, बांग्लादेश, अमेरिका सहित 48 देशों के साथ भारत की प्रत्यर्पण संधि है. पाकिस्तान के साथ भारत की संधि नहीं है.
वहीं, न्यूज़ीलैंड, श्रीलंका, सिंगापुर सहित
भारत की ओर से किसी व्यक्ति के प्रत्यर्पण का अनुरोध विदेश मंत्रालय की तरफ से ही किया जा सकता है.
क्या भारत अपने नागरिकों का प्रत्यर्पण करता है?अन्य देशों की तरह भारत भी अपने नागरिकों का प्रत्यर्पण करता है. भारत अपने नागरिकों का प्रत्यर्पण दो तरीक़ों से करता है. पहला संधि के आधार पर दूसरा आपसी सहमति के आधार पर.
यदि कोई देश (जिसके साथ संधि है) अपने नागरिक को प्रत्यर्पित नहीं करता है, तो भारत भी अपने नागरिकों को प्रत्यर्पित नहीं करता है.
भारतीय विदेश मंत्रालय के अनुसार फ़्रांस, जर्मनी, स्पेन, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, नेपाल सहित बीस देश ऐसे हैं, जहां भारतीय नागरिकों का प्रत्यर्पण नहीं किया जाएगा.
साल 2008 में मुंबई में हुए आतंकवादी हमले के अभियुक्त में से एक तहव्वुर राना का भारत ने इस साल अप्रैल में अमेरिका से प्रत्यर्पण कराया है.
अमेरिका में तहव्वुर राना को वर्ष 2013 में अपने दोस्त डेविड कोलमैन हेडली के साथ मुंबई और डेनमार्क में हमले की योजना बनाने के आरोप में दोषी पाया गया था. इन मामलों में तहव्वुर हुसैन राना को अमेरिकी अदालत ने 14 साल जेल की सज़ा सुनाई थी.
अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर ख़रीद मामले में कथित तौर पर बिचौलिए की भूमिका निभाने वाले क्रिश्चियन मिशेल को साल 2018 में दुबई से प्रत्यर्पित कर भारत लाया गया था.
अगस्ता वेस्टलैंड से 12 वीवीआईपी हेलीकॉप्टर ख़रीदने का सौदा कांग्रेस की अगुआई वाली यूपीए-1 सरकार के कार्यकाल में हुआ था.
साल 2015 में इंटरपोल के रेड कॉर्नर नोटिस के बाद इंडोनेशिया पुलिस ने छोटा राजन को ऑस्ट्रेलिया से आने के बाद गिरफ़्तार किया था. 6 नवंबर 2015 को छोटा राजन को भारत लाया गया था.
मुंबई में साल 1993 में हुए बम ब्लास्ट के दोषी अबू सलेम को साल 2005 में पुर्तगाल से भारत प्रत्यर्पित कराया गया था.
अबू सलेम के भारत प्रत्यर्पण के लिए भारत की तरफ से बीजेपी के नेता देश के तत्कालीन गृह मंत्री रहे लालकृष्ण आडवाणी ने लिखित तौर पर पुर्तगाल सरकार और कोर्ट को ये आश्वासन दिया था कि वो सलेम को 25 साल से अधिक जेल में नहीं रखेंगे और मौत की सज़ा नहीं देंगे.
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