संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के शारजाह में इस महीने पंद्रह दिनों के भीतर दो महिलाओं की आत्महत्या के मामलों से केरल में कई लोग सकते में है.
32 वर्षीय विपंचिका मणियन और 30 वर्षीय अतुल्या शेखर पढ़ी-लिखी और कामकाजी महिलाएं थीं.
विपंचिका एक निजी कंपनी में एचआर मैनेजर थीं, जबकि अतुल्या उसी दिन अपनी पहली नौकरी जॉइन करने वाली थीं, जिस दिन उन्होंने यह क़दम उठाया.
ये दोनों महिलाएं केरल से थीं और शादी के बाद शारजाह में अपने पतियों के साथ रह रहीं थीं.
इस बीच इन महिलाओं के परिवार का आरोप है कि इन्हें दहेज के लिए प्रताड़ित किया जा रहा था और उनके साथ घरेलू हिंसा हो रही थी.
हालांकि महिला अधिकार कार्यकर्ता इसे ''बहुत असामान्य'' बता रहे हैं क्योंकि वहां काफ़ी सख़्त क़ानून हैं.
केरल पुलिस ने इन दोनों ही मामलों में शिकायत के आधार पर एफ़आईआर दर्ज कर ली है.
(आत्महत्या एक गंभीर मनोवैज्ञानिक और सामाजिक समस्या है. अगर आप भी तनाव से गुज़र रहे हैं तो भारत सरकार की जीवन आस्था हेल्पलाइन 1800 233 3330 से मदद ले सकते हैं. आपको अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से भी बात करनी चाहिए.)
अब तक क्या सामने आया है?विपंचिका ने आत्महत्या से पहले कथित तौर पर अपनी 16 महीने की बेटी की जान भी ले ली थी.
कोल्लम ज़िले के पुलिस उपाधीक्षक मुकेश जीबी ने बीबीसी हिंदी से कहा, "जांच पूरी होने के बाद अगर किसी पर मामले में शामिल होने का शक पाया गया तो हम अदालत से रेड कॉर्नर नोटिस जारी कराने का अनुरोध करेंगे, ताकि उन्हें (अभियुक्तों को) केरल लाया जा सके."
विपंचिका की मौत 8 जुलाई को हुई थी, उनका पार्थिव शरीर गुरुवार को कोल्लम लाया गया. परिवार के आग्रह पर यहां भी क़ानूनी जांच कराई गई और पोस्टमॉर्टम के बाद शव अंतिम संस्कार के लिए परिजनों को सौंप दिया गया. इससे पहले यूएई में भी कानूनी जांच और पोस्टमॉर्टम हो चुका था.
वहीं अतुल्या की मौत 19 जुलाई को हुई थी, उनका पोस्टमॉर्टम गुरुवार को यूएई में पूरा हुआ, लेकिन उनका पार्थिव शरीर अब तक केरल नहीं लाया गया है.
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विपंचिका के मामले में आरोप है कि उन्हें कम दहेज को लेकर लगातार परेशान किया जाता था.
उनके रिश्तेदार शरण शार्नस ने बीबीसी हिंदी को बताया, "वह मेरी कज़िन थीं. मेरे मामा ने शादी में 400 ग्राम सोना और नक़द दहेज दिया था. उनके पति निधीश वलियावीथिल ज़्यादा दहेज नहीं मांग रहे थे, लेकिन वह हमेशा यही कहते थे कि कम दहेज मिला है. वह मेरी बहन को अपमानित करते थे."
शरण का आरोप है, "निधीश मैकेनिकल इंजीनियर और प्रोजेक्ट मैनेजर थे, लेकिन वह मेरी बहन की तनख़्वाह ले लेते थे. विपंचिका एक फ़ूड प्रोसेसिंग कंपनी में एचआर मैनेजर थीं. निधीश इस बात से भी नाख़ुश थे कि शादी भव्य नहीं हुई. नवंबर 2020 में शादी हुई थी, उस समय कोविड चरम पर था."
विपंचिका की मां शैलजा ने पुलिस को बताया कि "उनकी बेटी के बाल इस तरह काट दिए गए थे कि वह 'कम आकर्षक' दिखे. विपंचिका का गोरा रंग भी विवाद का कारण बन गया था, क्योंकि उनके पति सांवले रंग के थे. हालात इतने बिगड़े कि विपंचिका ने अलग अपार्टमेंट में रहने का फ़ैसला कर लिया."
निधीश की बहन नीतू बेरी ने विपंचिका के परिवार की तरफ़ से लगाए गए आरोपों पर कोई प्रतिक्रिया देने से इनकार कर दिया. उनका कहना है, "हम इस मामले में क़ानूनी रास्ता अपनाएंगे. बाद में जवाब देंगे."
शैलजा ने पुलिस में दर्ज अपनी शिकायत में निधीश, नीतू बेरी और उनके पिता मोहनन के नाम लिए हैं.
पुलिस ने इस मामले में भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 85 (पति और उनके रिश्तेदारों द्वारा स्त्री के साथ क्रूरता) और धारा 108 (उकसावे) के अलावा दहेज निषेध क़ानून की धारा 3 और 4 के तहत केस दर्ज किया है.
गल्फ़ न्यूज़ की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, फॉरेंसिक जांच में यह बात सामने आई है कि बच्ची की मौत का कारण 'सांस रुकना था, ऐसा हो सकता है कि तकिए से दबाव पड़ने की वजह से मौत हुई हो.''
अतुल्या शेखर का मामलाअतुल्या के मामले में उनकी 10 साल की बेटी कोल्लम ज़िले में अपने नाना-नानी के पास रह रही हैं.
उनके पति सतीश, जो एक निजी कंपनी में साइट इंजीनियर के तौर पर काम करते हैं, उन्होंने बीबीसी हिंदी से कहा, "मैं भी फ़ॉरेंसिक रिपोर्ट का इंतज़ार कर रहा हूं. हमारी शादी 2014 में हुई थी. उस समय मेरे ससुर ने कहा था कि वह मकान बनवा रहे हैं और आर्थिक तंगी में हैं. मैंने उन्हें साफ़ कहा था कि मुझे सिर्फ़ आपकी बेटी चाहिए, मैंने कभी दहेज की मांग नहीं की. अब वह मेरे ख़िलाफ़ अलग-अलग वीडियो में कुछ भी कह सकते हैं, लेकिन वह (अतुल्या) अब नहीं रहीं."
सतीश ने बताया, "पिछले साल नवंबर में वो मेरी अनुमति के बिना गर्भपात कराने भारत चली गई थीं. यही इसकी मुख्य वजह बनी. उसके बाद से वह लगातार स्टूडेंट्स के पेरेंट्स के एक ग्रुप में ही रहती थीं. मैं सुबह 5:30 बजे काम पर निकल जाता और रात 9 बजे लौटता था. छुट्टी के दिन भी वह बस अपने कमरे में ही रहती थीं. उन्होंने कहा था कि वह नौकरी करना चाहती हैं. मैंने उन्हें कहा था कि नौकरी कर सकती हो."
सतीश ने कहा, "उन्हें मॉल की एक शॉप में नौकरी मिल गई थी. हम उस दुकान पर भी गए जहां वह काम करना चाहती थीं. वहां कुछ महिलाएं बाहर आईं और उन्हें समझाने लगीं कि वहां काम न करें क्योंकि वेतन नहीं मिल रहा है. अगले दिन मेरी पत्नी ने मुझे फ़ोन करके कहा कि वह यहीं नौकरी करना चाहती हैं, वरना अलग होना चाहती हैं. मैंने कहा, नौकरी कर लो. हां, गर्भपात के बाद वह काफ़ी परेशान रहने लगी थीं."
सतीश के मुताबिक़, अतुल्या फरवरी में ही बेटी और अपनी मां के साथ शारजाह लौटी थीं.
सतीश का कहना है, "वे सब खुश थे. मेरे पास फ़ोटो और वीडियो हैं. हर महीने मैं बैंक लोन की किस्त भर रहा हूं, जो उनके परिवार ने अतुल्या की बहन अखिला की शादी के लिए लिया था. नवंबर 2022 में अखिला की शादी में मैंने 40 ग्राम सोना भी दिया था.''
हालांकि, अतुल्या के पिता राजशेखरन जो कहानी बताते हैं, वो बिल्कुल अलग है.
उन्होंने बीबीसी हिंदी से कहा, "मुझे नहीं पता वहां क्या हुआ था. मैं फ़ॉरेंसिक रिपोर्ट और शारजाह पुलिस की जांच का इंतज़ार कर रहा हूं. रिपोर्ट आने दो, उसके बाद जवाब दूंगा."
क्या वाकई सतीश बैंक लोन चुका रहे थे और क्या उन्होंने अखिला की शादी में सोना दिया?
इस सवाल के जवाब में राजशेखरन ने कहा, "बैंक लोन? ऐसा कुछ नहीं है. दस साल पहले जब शादी हुई थी तब सतीश ने 320 ग्राम सोना मांगा था जो हमने दिया था. मेरी दूसरी बेटी (अखिला) को जो सोना दिया गया था, वह अतुल्या का ही सोना था और वो उसने अपनी बहन को खुद दिया था."
सतीश ने बताया, ''वीडियो सामने आने के बाद जिस कंपनी में मैं काम कर रहा था, वहां मेरी सर्विस ख़त्म कर दी गई.'"
क्या दहेज सिर्फ़ बहाना बनता जा रहा है?
सामाजिक कार्यकर्ता रेजिता गोपालकृष्णन और मशहूर मनोचिकित्सक डॉ. सीजे जॉन का मानना है कि नौकरी के कारण महिलाओं की आर्थिक स्थिति मज़बूत होने के बावजूद उन्हें बराबरी का दर्जा नहीं मिल पाता और इससे दहेज जैसी प्रथाएं ख़त्म नहीं होतीं.
डॉ. जॉन ने बीबीसी हिंदी से कहा, "यह स्थिति तभी बदलेगी जब संपत्ति का समान बंटवारा अनिवार्य हो और दहेज को पूरी तरह से ना कहा जाए. पुरुष प्रधान समाज में यह संभव नहीं हो पाता. दहेज, महिलाओं की आत्महत्या का सिर्फ़ एक कारण है."
रेजिता गोपालकृष्णन का कहना है, "आर्थिक रूप से बेहतर स्थिति में होने के बावजूद उनकी ज़िंदगी नहीं बच सकी. असली समस्या यह है कि समाज एक महिला के शादी से बाहर निकलने को स्वीकार नहीं करता. माता-पिता भी उन्हें उसी रिश्ते में रहने के लिए दबाव डालते हैं."
डॉ. जॉन ने कहा, "उत्पीड़न झेल रही महिला के लिए मायके लौटने की ताक़त धीरे-धीरे कमज़ोर हो जाती है. अफ़सोस की बात यह है कि समाज एक पीड़ित बेटी या बहन को बचाने के बजाय शादी नाम के रिश्ते को बचाने को प्राथमिकता देता है."
रेजिता गोपालकृष्णन कहती हैं, "समाज में यह धारणा बनी हुई है कि अगर बड़ी बेटी की शादी टूट जाए तो छोटी बेटी के लिए अच्छा रिश्ता नहीं मिलेगा. इस तरह के सामाजिक दबाव का सबसे दुखद पहलू यह है कि महिलाएं अपने बच्चों की जान तक ले रही हैं. इसका मतलब है कि उन्हें न अपने परिवार पर भरोसा रह गया और न ही पति के परिवार पर."
डॉ. जॉन का ध्यान इस बात पर भी है कि लोग अक्सर यह समझने की कोशिश नहीं करते कि उनका साथी किस वजह से मानसिक दबाव में है या अवसाद का शिकार हो रहा है, और मदद लेने में देर हो जाती है. उन्होंने कहा, "बायोलॉजिकल वजहों से होने वाला गर्भपात महिलाओं को अवसाद की ओर धकेल सकता है. अगर गर्भपात किसी चाही हुई गर्भावस्था का हो तो वह और गंभीर सामाजिक कारण बन सकता है."
उन्होंने यह भी कहा, "हमारे समाज में गोरे रंग को लेकर जो जुनून है, वह सांवली त्वचा वाले लोगों की ज़िंदगी को बहुत मुश्किल बना देता है. अगर रंग को लेकर पति या उसके परिवार वाले ताने देते हैं, जहां से सहारा मिलना चाहिए, तो परेशानी और बढ़ जाती है."
((आत्महत्या एक गंभीर मनोवैज्ञानिक और सामाजिक समस्या है. अगर आप भी तनाव से गुजर रहे हैं तो भारत सरकार की जीवन आस्था हेल्पलाइन 1800 233 3330 से मदद ले सकते हैं. आपको अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से भी बात करनी चाहिए.))
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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