अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की बहुप्रतीक्षित मुलाक़ात पर पूरी दुनिया की निगाहें हैं.
ट्रंप और शी जिनपिंग 30 अक्टूबर को दक्षिण कोरिया में होने वाले एशिया-पैसिफ़िक इकोनॉमिक को-ऑपरेशन सम्मेलन के दौरान मिलने वाले हैं. व्हाइट हाउस ने इसकी पुष्टि की है.
ये मुलाक़ात लंबे समय से तय थी लेकिन हाल ही में दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच ट्रेड वॉर की वजह से ये लगभग रद्द होने की कगार पर पहुंच गई थी.
इस महीने की शुरुआत में चीन ने राष्ट्रीय सुरक्षा को आधार बना कर रेयर अर्थ के निर्यात पर नई पाबंदियों का एलान किया था.
रेयर अर्थ पर चीन का लगभग एकाधिकार है और ये कई हाई-टेक प्रोडक्ट्स बनाने के लिए बेहद ज़रूरी है.
इसके जवाब में ट्रंप ने नवंबर से सभी चीनी सामानों पर 100 फ़ीसदी टैरिफ बढ़ाने का एलान कर दिया.
इसके बाद दोनों देशों ने अपने रुख़ को कुछ नरम किया और बातचीत की गुंजाइश के संकेत दिए.
हालांकि दोनों अब भी एक-दूसरे पर तनाव बढ़ाने और बाज़ार में अस्थिरता फैलाने का आरोप लगा रहे हैं.
ट्रंप ने कहा है कि वे चीन के साथ टैरिफ से लेकर रेयर अर्थ तक "हर चीज़ पर डील" करेंगे. लेकिन शायद उन्होंने चीन के इरादे को कम आंका है. क्योंकि चीन ट्रंप की ओर से छेड़े गए टैरिफ़ वॉर का अब तक का सबसे सख़्त जवाब दे रहा है.
अमेरिकी थिंक टैंक अटलांटिक काउंसिल के चीन विशेषज्ञ वें-टी सुंग के मुताबिक़, "दोनों पक्ष एक ऐसा 'चिकन गेम' खेल रहे हैं जिसमें काफी बड़ा दांव लगा है.''
सिंगापुर की नेशनल यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान के एसोसिएट प्रोफ़ेसर चोंग जा इयान कहते हैं, "दोनों देश मानते हैं कि उनमें एक-दूसरे से ज़्यादा दर्द सहने की क्षमता है. और शायद यही बातचीत की प्रक्रिया का हिस्सा है."
सुंग का कहना है कि ट्रंप की एक रणनीति "वर्चस्व की परीक्षा'' है. अगर चीन दबाव में झुकता है तो यह आने वाले महीनों के लिए अमेरिका-चीन संबंधों की दिशा तय कर सकता है.
हालांकि चीन के झुकने की संभावना कम है.
वो कहते हैं, "चीन की सत्ता में शी जिनपिंग का ये लगातार 13वां साल है.और उन्हें खुद को साबित करने के लिए ट्रंप के साथ किसी द्विपक्षीय शिखर बैठक की ज़रूरत नहीं है.''
रेयर अर्थ के अलावा चीन ने अमेरिका के सोयाबीन सेक्टर को भी निशाना बनाया है. जबकि अमेरिकी किसान ट्रंप के प्रमुख समर्थक वर्गों में से एक हैं.
सितंबर में चीन को अमेरिकी सोयाबीन की शिपमेंट नवंबर 2018 के बाद पहली बार बिल्कुल ख़त्म हो गई. जबकि ब्राज़ील और अर्जेंटीना से आयात बढ़ गया है.
चीन दुनिया का सबसे बड़ा सोयाबीन आयातक है. वह इसे मुख्य रूप से पशुओं के चारे के तौर पर इस्तेमाल करता है.
एनालिसिस फर्म कैपिटल इकोनॉमिक्स के चीन इकॉनॉमिक्स प्रमुख जूलियन इवांस-प्रिचर्ड लिखते हैं कि अमेरिकी टैरिफ़ के बावजूद चीन का निर्यात "उम्मीद से कहीं ज़्यादा मज़बूत" रहा है. हालांकि सितंबर में इससे उसकी जीडीपी में 0.3 फ़ीसदी की गिरावट आई.
क्या चीन अमेरिकी जवाबी कार्रवाई झेल सकता है?
Reuters रेयर अर्थ चीन और अमेरिका के बीच विवाद का एक प्रमुख मुद्दा है. अमेरिका के साथ ट्रेड वॉर लंबे समय तक चला तो चीन की स्थिति कमजोर हो सकती है.
क्योंकि अमेरिकी आयातक वैकल्पिक सप्लायरों और सप्लाई चेन की तलाश तेज़ कर देंगे.
जैसे, एपल ने इस साल की शुरुआत में कहा था कि वह अमेरिका में बेचे जाने वाले आईफ़ोन का ज़्यादातर प्रोडक्शन चीन से भारत ले जाएगा.
जून में नाइकी ने भी अपने कुछ उत्पादन केंद्र चीन से बाहर ले जाने की योजना बनाई.
इवांस-प्रिचर्ड के मुताबिक़ यह मान लेना "अक़्लमंदी नहीं होगी" कि चीन ने अमेरिकी टैरिफ़ से "स्थायी प्रतिरोधक क्षमता" विकसित कर ली है. क्योंकि रेनमिन्बी (युआन) अमेरिकी डॉलर के अलावा अन्य करेंसी के मुक़ाबले कमजोर हुआ है. इससे चीन निर्यात में प्रतिस्पर्द्धी बना हुआ है.
चीन की अर्थव्यवस्था में निर्यात अभी भी ग्रोथ का मुख्य इंजन है, क्योंकि वह घरेलू खपत बढ़ाने और रियल एस्टेट संकट से उबरने के लिए संघर्ष कर रहा है.
कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि चीन ट्रंप को आंकने में गलती भी कर सकता है.
Reuters चीन सोयाबीन आयात के लिए अब ब्राज़ील और अर्जेंटीना का रुख़ कर रहा है. अमेरिकी थिंक टैंक स्टिम्सन सेंटर की सुन युन के मुताबिक़, ''चीन ने अमेरिका की पलटकर वार करने क्षमता को कम आंकने की "ख़तरनाक आदत" विकसित कर ली है.''
ऑस्ट्रेलिया की एडिथ कोवान यूनिवर्सिटी में इंटरनेशनल ट्रेड के प्रोफ़ेसर नॉइस मैकडॉनाघ के मुताबिक़ अमेरिका चीन के टेक्नोलॉजी सेक्टर को निशाना बनाकर उस पर नई ट्रेड पाबंदियां लगा सकती है.
जैसे, अमेरिका पहले ही चीन को एनवीडिया के सबसे एडवांस चिप्स ख़रीदने से रोक चुका है.
हालांकि, प्रोफ़ेसर मैकडॉनाघ कहते हैं कि टेक्नोलॉजी सेक्टर को निशाना बनाने से चीन की गति धीमी हो सकती है, लेकिन ये इसे पूरी तरह "रोक नहीं पाएगा.''
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कुछ विश्लेषकों का मानना है कि बाज़ार जिस तरह से प्रतिक्रिया दे रहा है उसमें ट्रंप को अपना रुख़ नरम करना पड़ा.
10 अक्तूबर को चीन के रेयर अर्थ एलान के बाद ट्रंप की सख़्त प्रतिक्रिया के बाद अमेरिकी शेयर बाज़ार को 2 ट्रिलियन डॉलर का नुक़सान हुआ.
जबकि चीन की नीतियां मार्केट सेंटिमेंट से बहुत कम प्रभावित होती हैं. देश का निर्णय लेने का तंत्र काफ़ी सेंट्रलाइज्ड है. शी जिनपिंग को हाल के दशकों के सबसे ताक़तवर चीनी नेता माना जाता है.
चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी सरकार के नियंत्रण वाले उद्योगों पर पर सख़्त नियंत्रण रखती है. ये केंद्र सरकार के निर्देशों का पालन करते हैं.
कुछ विश्लेषक मानते हैं कि चीन, ट्रंप के दूसरे कार्यकाल के लिए पूरी तरह तैयार है. वह ट्रंप की शैली और रणनीति- टैरिफ़, टेक युद्ध और कोविड-19 महामारी से निपटने के दीर्घकालिक अध्ययन के आधार पर एक 'हार्ड गेम' खेल रहा है.
अमेरिकी थिंक टैंक ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूशन के सीनियर रिसर्चर रयान हास के मुताबिक़, चीन अब "छात्र से प्रोफ़ेसर" बन चुका है.
उनके मुताबिक़, शी जिनपिंग के सत्ता में आने के बाद चीन "रिएक्टिव हमले'' (सिर्फ़ तब जवाब देना हो) से "अवसरवादी सक्रियता" की ओर बढ़ा है. यानी मौका देखकर खुद पहल करने की रणनीति.
यह बदलाव चीन की बढ़ती ताक़त से जुड़ा है. ट्रंप के पहले कार्यकाल में शुरू हुए अमेरिका-चीन ट्रे़ड वॉर ने शी के "आत्मनिर्भर चीन" के एजेंडे को और रफ़्तार दी थी.
तब से चीनी लीडरशिप ने इस ट्रेड वॉर को घरेलू राष्ट्रवाद को मज़बूत करने और अमेरिकी बाज़ार पर निर्भरता घटाने के अवसर के रूप में इस्तेमाल किया है.
इससे बीजिंग को अपनी सप्लाई चेन को रणनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने का आत्मविश्वास मिला है. रेयर अर्थ की सप्लाई रोकना इसका एक उदाहरण है.
हालांकि, अमेरिकी थिंक टैंक पैसिफ़िक फोरम की प्रोफे़सर एलिजाबेथ लारस चेतावनी देती हैं कि चीन के नेता ट्रंप के अहंकार और कमज़ोरियों को भांप चुके हैं.
वो कहती हैं, "ट्रंप सशक्त पुरुष नेताओं के साथ तब तक अच्छे रहते हैं, जब तक वो उनकी सहनशीलता की परीक्षा नहीं लेते. जब ऐसा होता है तो ट्रंप पलटवार करते हैं. चीन के नेताओं को ट्रंप के इस स्वभाव से सावधान रहना चाहिए.''
लारस ये भी कहती हैं कि चीन को ट्रंप की "अचानक फ़ैसले लेने की प्रवृत्ति" से सतर्क रहना चाहिए. उन्हें व्हाइट हाउस के डिप्टी चीफ़ ऑफ़ स्टाफ़ स्टीफन मिलर और राइट विंग कार्यकर्ता लॉरा लूमर जैसे ट्रंप के प्रभावशाली सलाहकारों के असर से भी सावधान रहना चाहिए.
एशिया-पैसिफ़िक इकोनॉमिक को-ऑपरेशन सम्मेलन में ट्रंप और शी के बीच कोई समझौता हो सकता है. लेकिन इस बात की कम ही संभावना है कि दोनों देश अपने बुनियादी मतभेदों को जल्द सुलझा पाएंगे.
ग्रेस सोई और एलेंक्जेंड्रा फॉसे की अतिरिक्त रिपोर्टिंग के साथ
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.
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