भारतीय आमों की खेप को अमेरिका ने अपने यहां पहुंचने के बाद रिजेक्ट कर दिया जिससे भारतीय आम निर्यातकों को भारी नुक़सान का सामना करना पड़ा है.
निर्यातकों का कहना है कि अमेरिकी अधिकारियों ने इन आमों को वापस लेने या नष्ट करने की सूचना संबंधित एक्सपोर्टर्स को दी थी.
हालांकि पेरिशेबल प्रोडक्ट (जल्द ख़राब होने वाला उत्पाद) होने और भारी परिवहन खर्च के चलते भारतीय निर्यातकों ने इसे वापस भेजने की बजाय नष्ट करने का विकल्प चुना.
बीबीसी ने इस घटना के बारे में जानने के लिए कई निर्यातकों से बात की जिन्होंने नाम न ज़ाहिर करने की शर्त पर इस वाकये के बारे में बताया. एक निर्यातक ने बताया कि इससे निर्यातकों को लगभग पांच लाख डॉलर यानी क़रीब 4.2 करोड़ रुपये का नुक़सान उठाना पड़ा है.
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हालांकि भारत के फ़्रेश वेजीटेबल्स एंड फ़्रूट एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन (वाफ़ा) ने कहा है कि इस घटना के बाद से आम का एक्सपोर्ट जारी है और पिछले साल से अच्छा एक्सपोर्ट होने की उम्मीद है.
वाफ़ा से जुड़े एक एक्सपोर्टर ने बीबीसी को बताया कि रिजेक्शन के बाद से हर दिन 10 से 12 हज़ार आम की पेटियों का निर्यात किया जा रहा है.
आठ और नौ मई को मुंबई से आमों की एक बड़ी खेप अमेरिका भेजी गई थी. वहां पहुंचने पर फ़ूड एंड सेफ़्टी मामले देखने वाले अमेरिकी अधिकारियों ने इस खेप को रिजेक्ट कर दिया था.
निर्यातकों ने बीबीसी को बताया कि क़रीब 15 से 17 टन आमों का शिपमेंट रिजेक्ट हुआ है. उनका कहना है कि इसे नष्ट कर दिया गया क्योंकि इसे वापस लाने और फिर से वापस भेजने में उन्हें और अधिक खर्च पड़ता.
आमों की ये खेप अमेरिका के लॉस एंजेलिस, सैन फ़्रांसिस्को और अटलांटा हवाई अड्डों पर उतारी गई थी.
एक निर्यातक ने बताया कि मुंबई से आम निर्यात करने से पहले कीड़ों को मारने और उनकी गुणवत्ता बनाए रखने के लिए नवी मुंबई स्थित एक फ़ेसेलिटी में इररेडिएशन की प्रक्रिया की जाती है, जो अमेरिकी कृषि विभाग (यूएसडीए) के एक अधिकारियों की देखरेख में होती है.
इसके लिए निर्यातकों को एक सर्टिफ़िकेट दिया जाता है. लेकिन निर्यातकों का कहना है कि अमेरिका पहुंचने पर दस्तावेज़ों में कमी का हवाला देते हुए इन आमों को वापस लेने या नष्ट करने का आदेश जारी कर दिया गया.
प्रभावित निर्यातकों ने बताया कि नोटिस में कहा गया था कि "इस शिपमेंट में आगे जो भी होगा, उसका खर्च अमेरिकी सरकार नहीं उठाएगी."
निर्यातकों का कहना है कि यूएसडीए अधिकारी की ओर से जारी किया गया सर्टिफ़िकेट एक्सपोर्टर के पास मौजूद था. लेकिन भारत में मौजूद यूएसडीए अधिकारियों को आम के ट्रीटमेंट को लेकर कुछ संदेह हुआ इसलिए अमेरिका में उस सर्टिफ़िकेट को रद्द कर दिया गया.
एक निर्यातक ने बताया, "इररेडिएशन का जो ट्रीटमेंट होना था, वह हुआ, लेकिन अमेरिकी अधिकारियों को अमेरिका में ट्रीटमेंट के सर्टिफ़िकेट में कुछ कमी लगी. क्योंकि भारत में मौजूद यूएसडीए अधिकारी ने प्रॉपर ट्रीटमेंट को लेकर शक़ ज़ाहिर किया था."


कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण के अधिकारी पीबी सिंह ने बीबीसी को बताया कि इररेडिएशन की प्रक्रिया मुंबई में महाराष्ट्र राज्य कृषि विपणन बोर्ड (एमएसएएमबी) और यूएसडीए के एनिमल एंड प्लांट हेल्थ इंस्पेक्शन सर्विस (एपीएचआईएस) की देखरेख में होती है.
अमेरिका को होने वाले आम के निर्यात से पहले उसकी जांच के दौरान यूएसडीए की तरफ से उनके इंस्पेक्टर मौजूद रहते हैं और वही निर्यातक को सर्टिफ़िकेट जारी करते हैं. वह आम के पूरे सीज़न यानी अप्रैल से अगस्त तक मौजूद रहते हैं.
एमएसएएमबी ने इसी सप्ताह एक कहा था कि "मसले के बारे में ज़रूरी एजेंसियों को या फैसिलिटी को पहले से ही बताने की बजाय उन्होंने (इंसपेक्टर्स ने) अमेरिका में अपने वरिष्ठ अधिकारियों से बात की, जिसके बाद आम के खेप रिजेक्ट कर दी गई."
भारत में इररेडिएशन की फैसिलिटी वाशी (नवी मुंबई), नाशिक, बेंगलुरु और अहमदाबाद में है.
एपीडा के अधिकारी के मुताबिक़, "प्रक्रिया के दौरान क्या हुआ, एमएसएएमबी अपने स्तर पर इस बारे में देख रही है. अधिकारी जांच कर रहे हैं कि चूक कहां हुई, ताकि आगे इस तरह की कोई समस्या न पैदा हो, इसके लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं."
इस संबंध में बीबीसी ने वाणिज्य एवं उद्योग राज्य मंत्री जितिन प्रसाद से प्रतिक्रिया जानने की कोशिश की. उनका जवाब आने पर स्टोरी अपेडट की जाएगी.
रिजेक्शन का सामना करने वाले एक एक्सपोर्टर ने नाम न ज़ाहिर करने की शर्त पर बताया कि "उन्हें 10 लाख रुपये से अधिक का नुक़सान उठाना पड़ा है."
उन्होंने बताया, "अमेरिकी अधिकारियों ने मुंबई में इररेडिएशन प्रक्रिया के सर्टिफ़िकेट में कुछ कमियां बताईं और पूरी खेप वापस लेने को कहा. बाद में निर्यातकों ने पूरे शिपमेंट को वहीं नष्ट करने का विकल्प चुना और वहीं पर बायो सिक्यूरिटी वेस्ट फैसिलिटी में इन्हें नष्ट कर दिया गया."
हालांकि उन्होंने कहा, "इस घटना का ट्रेड वॉर से संबंध नहीं है और यह एक स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर है जो पेरिशेबल प्रोडक्ट समेत सभी उत्पादों पर लागू होता है."
वहीं आम निर्यातकों का कहना है कि "भारत सरकार कई स्तरों पर निर्यातकों को मदद करने में नाकाम रही."
उन्होंने कहा, "आम जैसे पेरिशेबल प्रोडक्ट में एक्सपोर्टरों को नुक़सान उठाना पड़ता है और उनके प्रोटेक्शन के कोई उपाय नहीं हैं. पिछले कुछ सालों में निर्यातकों को दिए जाने वाले इंसेंटिव को धीरे-धीरे ख़त्म कर दिया गया, ख़ासकर 2016 से 2020 के बीच."
वह कहते हैं, "जिस तरह किसानों के लिए फसल बीमा का प्रावधान है, निर्यातकों के लिए ऐसी कोई सुविधा नहीं है. लॉजिस्टिक्स की भी भारी कमी है."
उन्होंने कहा कि निर्यातकों को हवाई किराये में कोई राहत नहीं है, जबकि एयरलाइंस, सीज़न में किराया बढ़ा देती हैं और समय से शिपमेंट न पहुंचने पर भी पूरा किराया वसूलती हैं.
उनके अनुसार, "सबसे बड़ी मुश्किल एयर फ़्रेट पर लागू जीएसटी है. मान लीजिए अमेरिका में आम 2000 रुपये की दर से बिकता है, जिसका हवाई किराया ही 1200 बैठता है. इस किराए पर सरकार 18 प्रतिशत जीएसटी वसूल लेती है. यह रिफंडेबल है लेकिन इसे वापस पाने में दो से तीन महीने लग जाते हैं. इस बारे में वित्त मंत्री से ध्यान देने की अपील की गई है."
वो कहते हैं, "आम तौर पर जीएसटी देश के भीतर गुड्स और सर्विसेज़ पर लगता है लेकिन इसे दूसरे देशों को भेजे जाने वाले आम पर भी वसूला जा रहा है. इससे निर्यातकों का काफ़ी पैसा फंस जाता है."
इस बार निर्यातकों को टार्गेट तक पहुंचने में भी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है.
महाराष्ट्र के एक मैंगो एक्सपोर्टर ने बीबीसी से कहा कि अभी महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के आम के आने का समय है जो आम तौर पर पांच जून तक जारी रहता है. इस दौरान अलफांसो, केसर, बंगनापल्ली, लंगड़ा, दशहरी समेत 10-12 किस्म के आम निर्यात किए जाते हैं.
उन्होंने कहा, "अलफांसो आम तौर पर महाराष्ट्र के रत्नागिरी और कोंकण इलाके़ में उगाया जाता है और बारिश की वजह से इनके उत्पादन पर असर पड़ा है."
उन्होंने बताया, "लोगों का कहना है कि पिछले साल की तुलना में इस बार आम की फसल उतनी अच्छी नहीं है. इसके अलावा मौसम भी ख़राब है. महाराष्ट्र क्षेत्र में पिछले एक हफ़्ते से असमय बारिश की वजह से अच्छी गुणवत्ता के आम के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है."
उनके अनुसार, "महाराष्ट्र में आम का सीज़न मई के अंत तक या जून के प्रथम सप्ताह तक चलता था. लेकिन लंबे समय तक ख़राब मौसम के चलते 20 मई तक आम का आना लगभग ख़त्म हो गया है और अब गुणवत्ता वाले आम मिलना मुश्किल हो गए हैं."
उन्होंने कहा कि 50 से 60 हज़ार से अधिक मैंगो उत्पादक किसान निर्यात की प्रणाली से जुड़े हुए हैं और रजिस्टर्ड हैं यानी एक्सपोर्टर इन किसानों से आम ले सकते हैं. ख़राब मौसम की वजह से इन किसानों पर भी असर पड़ेगा.
भारत के के अनुसार, वित्त वर्ष 2023-24 में भारत ने 4.8 करोड़ डॉलर मूल्य के कुल 27,330 मिट्रिक टन आम का निर्यात किया था.
पिछले साल आम के पूरे सीज़न में अमेरिका को 2.43 मिट्रिक टन भारतीय आम निर्यात किए गए थे जो उससे पिछले साल यानी 2022-23 के मुक़ाबले 19 प्रतिशत अधिक था.
भारत और अमेरिका के बीच 2007 में एक मैंगो एक्सपोर्ट प्रोग्राम का समझौता हुआ था, जिसके तहत ही आम निर्यात से संबंधित नियम बने.
इसके अलावा भारतीय आम जापान, न्यूज़ीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ़्रीका और खाड़ी के देशों में भी निर्यात किए जाते हैं.
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पिछले महीने ही भारत पर रेसिप्रोकल टैरिफ़ लगाने की घोषणा की थी.
हालांकि इस पर 90 दिन की अस्थायी रोक लगा दी गई है, लेकिन कहा जा रहा है कि इसका असर आम निर्यात पर भी पड़ सकता है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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