ईरान में फ़ोर्दो ऐसी जगह है, जिस पर शायद हाल के दिनों में दुनिया की सबसे ज्यादा नज़रें रही हैं.
पश्चिमी ख़ुफ़िया एजेंसियों ने पहली बार 2009 में सार्वजनिक तौर पर यह बताया था कि यहां (फ़ोर्दो में) एक गुप्त परमाणु संयंत्र है.
अब अमेरिका की ओर से यहां किए गए हवाई हमले ये तय करने में अहम होंगे कि आख़िर ये संघर्ष किस ओर बढ़ेगा.
डिफेंस इंटेलिजेंस एजेंसी (डीआईए) से लीक हुए एक आकलन के मुताबिक़ अमेरिकी हमलों में ईरान के परमाणु कार्यक्रम के प्रमुख हिस्से नष्ट नहीं हुए हैं.
ये हमले ईरान की परमाणु महत्वाकांक्षाओं को कई साल नहीं, बल्कि कुछ महीने ही पीछे धकेल पाए हैं.
हालांकि ये एक शुरुआती आकलन है और इसे 'कम विश्वसनीय' माना जा रहा है क्योंकि शुरुआती दिनों में इसकी वास्तविक स्थिति को समझना बेहद कठिन है. ये ऐसी जगह है जिसे जानबूझकर लोगों की नज़रों से दूर रखा गया है.
ईरान के परमाणु कार्यक्रम को कितना नुक़सान?डीआईए अमेरिकी रक्षा मंत्रालय यानी पेंटागन की अपनी एजेंसी है, जो सैन्य अभियानों के लिए ख़ास तौर पर ख़ुफिया जानकारी एकत्र करती है.
यह बड़ी तादाद में तकनीकी ख़ुफिया जानकारी इकट्ठा करती है. लेकिन ये सीआईए जैसी दूसरी एजेंसियों से अलग है.
ज्वाइंट चीफ्स के चेयरमैन जनरल डैन केन ने हमलों के बाद तुरंत कहा, "अंतिम रूप से कितना नुक़सान हुआ है उसका आकलन करने में समय लगेगा.''
लेकिन सवाल यह है कि किसी परमाणु कार्यक्रम को नष्ट करना या नुकसान पहुंचाना वास्तव में क्या मायने रखता है और इसकी जानकारी कैसे हासिल की जाए?
हमलों के बाद सैटेलाइट से दिखने वाले गड्ढे या धूल के गुबार इस बारे में बहुत कम जानकारी देते हैं कि ज़मीन के नीचे कितना नुक़सान हुआ.
सैटेलाइट से हासिल तस्वीरें ये नहीं बता पा रही हैं यहां जमीन बहुत अधिक धंस गई है या पहाड़ के अंदर बहुत गहरे छेद हो गए हैं.
संभवतः ये हमला ये दिखा रहा है कि भले ही अमेरिका ने कई बमों का इस्तेमाल किया हो, लेकिन ईरान ने इतने मज़बूत कंक्रीट स्ट्रक्चर खड़े कर रखे थे कि वे उस मुख्य हॉल तक नहीं पहुंच पाए और न ही अंदर की मशीनरी को नष्ट कर पाए.
ये बम (बंकर बस्टर बम) पहली बार किसी मिशन के लिए इस्तेमाल किए गए . इसने हालात में और अनिश्चिचतता पैदा कर दी है.
फिर भी सेंट्रीफ्यूज मशीनें ( जो बेहद तेजी से घूमकर यूरेनियम को एनरिच करती हैं) काफ़ी संवेदनशील होती हैं.
इसलिए विस्फ़ोटों के झटके से उनमें से कई अपनी धुरी से हटकर खराब हो गई होंगी.
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नुक़सान कितना हुआ है उसकी एक साफ तस्वीर के लिए खुफ़िया एजेंसियों को अन्य माध्यमों से भी जानकारी जुटानी होगी.
इसके तहत सिस्मिक डिटेक्टर (इनका इस्तेमाल भूकंप का विश्लेषण के लिए किया जाता है) का इस्तेमाल किया जा सकता है.
रेडिएशन सूंघने वाले उपकरणों का भी इस्तेमाल किया जा सकता है (ये विकिरण का पता लगाते हैं). हालांकि अंतरराष्ट्रीय निरीक्षकों ने अभी तक ऐसा कोई संकेत नहीं देखा है.
लिडार ( लाइट डिटेक्शन एंड रेंजिंग) जैसे सेंसर विमानों या ड्रोन से निकले लेज़र पल्स के ज़रिये पहाड़ के भीतर की थ्री डी मैपिंग कर सकते हैं.
इसके अलावा सूत्रों और पकड़े गए (बीच में ही सुन लिए गए) ईरानी संदेशों की भूमिका बेहद अहम होगी, जो यह बता सकते हैं कि ईरानी अधिकारी नुकसान और उसके असर पर क्या चर्चा कर रहे हैं.
इन सभी स्रोतों को लगातार अपडेट करते रहना होगा ताकि एक अधिक विश्वसनीय आकलन तैयार किया जा सके.
भले ही फ़ोर्दो जैसे स्थानों को गंभीर नुक़सान पहुंचा हो और फ़िलहाल के लिए वे इस्तेमाल के लायक नहीं रह गए हैं (जैसा कि अमेरिकी अधिकारी दावा कर रहे हैं), फिर भी इसका मतलब यह नहीं कि ईरान का पूरा परमाणु कार्यक्रम समाप्त हो गया है. क्योंकि यह कार्यक्रम नई जगहों पर फिर से शुरू किया जा सकता है.
हमले से ठीक पहले फ़ोर्दो में कई ट्रक देखे गए थे. लेकिन अहम सवाल यह है कि वे क्या ले जा रहे थे और वह सामग्री अब कहां है.
सभी संकेत यही बताते हैं कि ईरान ने अपने उच्च गुणवत्ता वाले संवर्धित यूरेनियम का भंडार किसी दूसरी जगह भेज दिया है.
एक और पहाड़, "पिकऐक्स" अब दुनियाभर की नज़रों में आया है और यह भी संभावना है कि ईरान ने वहां कुछ सेंट्रीफ्यूज मशीनें भी पहुंचा दी हों. हालांकि वे इतनी नहीं हैं कि ईरान पहले की तरह तेज़ी से अपना परमाणु कार्यक्रम आगे बढ़ा सके.
और भले ही आपके पास पर्याप्त एनरिच्ड यूरेनियम हो, परमाणु हथियार बनाने के लिए वेपनाइजेशन और डिलीवरी सिस्टम जैसे कई और चरण पूरे करने होते हैं.

ये सब बेहद आला दर्जे की वैज्ञानिक विशेषज्ञता की मांग करते हैं.
इस संघर्ष की शुरुआत में इसराइल ने एक बड़ा कदम उठाते हुए ईरान के परमाणु कार्यक्रम से जुड़े वैज्ञानिकों को मार दिया था ताकि ईरान की परमाणु बम तैयार करने की टाइमलाइन बड़ी हो जाए.
इस अमेरिकी हमले ने निश्चित तौर पर ईरान के परमाणु कार्यक्रम को पीछे धकेला है.
लेकिन कितना पीछे? इसका उत्तर इस बात पर निर्भर करेगा कि हमले के बाद वास्तव में बचा क्या है. यह कोई निश्चित जवाब नहीं होगा. सिर्फ अनुमान भर होगा.
इसका मतलब ये है कि आने वाले महीनों में ईरान के परमाणु कार्यक्रम को समझने में ख़ुफ़िया एजेंसियों का काम और भी ज़्यादा गहन और निर्णायक होने जा रहा है.
और अगर संकेत यह मिलते हैं कि ईरान गुप्त रूप से अपने कार्यक्रम को फिर से शुरू कर रहा है या परमाणु बम बनाने की रेस में जुट गया है तो संघर्ष एक बार फिर भड़क सकता है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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