चीन अपने उत्तरी शहर तियानजिन में 31 अगस्त से लेकर एक सितंबर तक शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक आयोजित कर रहा है. चीन इसे एससीओ के इतिहास का 'अब तक का सबसे बड़ा सम्मेलन' बता रहा है.
ये पांचवीं बार है जब चीन एससीओ सम्मेलन का आयोजन कर रहा है. इससे पहले चीन ने साल 2018 में चिंगदाओ में एससीओ सम्मेलन का आयोजन किया था.
चीन का कहना है कि इस साल तियानजिन में होने वाला एससीओ सम्मेलन "राष्ट्राध्यक्ष-स्तरीय कूटनीतिक और घरेलू कूटनीतिक बैठकों में सबसे अहम आयोजनों में से एक है."
माना जा रहा है कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग इस दौरान राष्ट्राध्यक्षों की काउंसिल की 25वीं बैठक और एससीओ प्लस बैठक को संबोधित करेंगे. यह लगातार दूसरा साल है जब एससीओ प्लस का आयोजन किया जा रहा है.
शी जिनपिंग से क्या उम्मीद है?
22 अगस्त को चीन के विदेश मंत्रालय की तरफ़ से हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा गया था कि राष्ट्रपति शी जिनपिंग "शंघाई स्पिरिट को आगे बढ़ाते हुए एससीओ के लिए चीन के विज़न और प्रस्तावों की बात करेंगे. वो समय की ज़रूरतों को अपनाने और लोगों की उम्मीदों को पूरा करने पर भी चर्चा करेंगे."
साल 2001 में शंघाई में अस्तित्व में आया एससीओ शंघाई स्पिरिट यानी शंघाई भावना को अपनाता है. इसके तहत आपसी भरोसा, साझा लाभ, समानता, परामर्श, सभ्यताओं की विविधता का सम्मान और साझा विकास की दिशा में काम करने के सिद्धांत शामिल हैं.
रविवार को शुरू हुए सम्मेलन में शी जिनपिंग "एससीओ के विकास और सहयोग को मज़बूत करने के लिए चीन की तरफ़ से उठाए जाने वाले क़दमों और व्यापक साझेदारियों" के बारे में बताएंगे और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के बचाव और वैश्विक गवर्नेंस की व्यवस्था को बेहतर बनाने में एससीओ की संभावित भूमिका के बारे में भी प्रस्ताव देंगे."
सम्मेलन के आख़िर में एससीओ सदस्य देश मिलकर तियानजिन घोषणापत्र जारी करेंगे. वो अगले एक दशक के लिए एससीओ के विकास की रणनीति को भी मंज़ूरी देंगे.
इसके अलावा इस दौरान सुरक्षा, अर्थव्यवस्था, आपसी संबंधों और सांस्कृतिक सहयोग पर कई दस्तावेज़ भी जारी किए जाएंगे.
शंघाई के अख़बार जिफ़ांग डेली ने 26 अगस्त को छपी एक रिपोर्ट में कहा गया था कि एससीओ के विकास की 10 साल की रणनीति इस शिखर सम्मेलन से जारी होने वाले "सबसे अहम दस्तावेज़ों में से एक" होगी.
ये एससीओ में "सहयोग की प्राथमिक दिशा" तय करेगी जो इस संगठन के "सतत विकास" और "स्वनिर्माण" के लिए अहम है.
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मूल रूप से 2001 में चीन, रूस, कज़ाख़स्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उज़्बेकिस्तान ने मिलकर एससीओ की स्थापना की थी. लेकिन अब इस संगठन में 10 सदस्य देश हैं. 2017 में भारत और पाकिस्तान इस संगठन से जुड़े और पिछले दो सालों में ईरान और बेलारूस भी इसमें शामिल हुए.
तियानजिन में हो रहे शिखर सम्मेलन में इन 10 सदस्य देशों के नेता मौजूद रहेंगे.
इनके अलावा पर्यवेक्षक के तौर पर मंगोलिया और संगठन के 14 डायलॉग पार्टनर्स में से 8 - अज़रबैजान, आर्मीनिया, कंबोडिया, मालदीव, नेपाल, तुर्की, मिस्र और म्यांमार भी इसमें शामिल होंगे.
सम्मेलन में दक्षिण-पूर्व एशिया पर ज़्यादा ज़ोर दिया जाएगा.
इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया और वियतनाम को भी अतिथि देशों के रूप में सम्मेलन में आमंत्रित किया गया है. उम्मीद है कि इन देशों के प्रतिनिधि तुर्कमेनिस्तान के साथ मिलकर एससीओ प्लस बैठक में शामिल होंगे.
साल 2024 में कज़ाख़स्तान की राजधानी अस्ताना में हुई एससीओ प्लस की पहली बैठक में डायलॉग पार्टनर्स अज़रबैजान, क़तर, यूएई और तुर्की के साथ मेहमान देश के तौर पर तुर्कमेनिस्तान ने शिरकत की थी
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग सम्मेलन में हिस्सा लेने वाले नेताओं के स्वागत में एक भोज का आयोजन करेंगे और उम्मीद है कि इसके इतर वह कई नेताओं के साथ द्विपक्षीय मुलाक़ातें भी करेंगे.
हालांकि सबसे ज़्यादा नज़रें शी जिनपिंग की रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मुलाक़ातों पर है, जो चीन के साथ इस संगठन के सबसे अहम देश हैं.
पुतिन ने आख़िरी बार मई 2024 में चीन का दौरा किया था, जबकि मोदी सात साल बाद पहली बार चीन गए हैं. मोदी का ये दौरा ऐसे वक़्त में हो रहा है जब पिछले एक साल में दोनों देशों के रिश्तों पर जमी बर्फ़ थोड़ी पिघलती दिख रही है.
अगस्त 2021 में अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान के क़ब्ज़े के बाद से उसने इस कार्यक्रम के लिए कोई उच्च-स्तरीय प्रतिनिधि नहीं भेजा है. इस बार सम्मेलन में हिस्सा लेने वालों की जो लिस्ट जारी की गई है उसके अनुसार अफ़ग़ानिस्तान इस बार भी सम्मेलन में शिरकत नहीं करेगा.
अफ़ग़ानिस्तान को साल 2012 में पर्यवेक्षक का दर्जा मिला था. इसी साल जुलाई में अफ़ग़ानिस्तान को रूस से राजनयिक मान्यता भी मिली. वहीं सप्ताह भर पहले चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने काबुल का एकदिवसीय दौरा किया.
इस दोस्ताना पहल के बावजूद, सम्मेलन में उसकी अनुपस्थिति यह संकेत देती है कि संगठन के भीतर अब भी तालिबान की भागीदारी को लेकर मतभेद हैं.
28 अगस्त को मीडिया में आई रिपोर्टों के अनुसार, शिखर सम्मेलन में भाग लेने वाले 22 में से 18 विदेशी नेता इसके बाद तीन सितंबर को बीजिंग में होने वाली सैन्य परेड में भी शामिल होंगे.
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रविवार को शुरू हुए एससीओ सम्मेलन से पहले चीनी मीडिया में इस संगठन के विकास की तारीफ़ की जा रही है. रिपोर्टों में कहा जा रहा है कि ये संगठन अब "दुनिया की लगभग आधी आबादी, एक-चौथाई भूभाग और वैश्विक जीडीपी का लगभग एक-चौथाई" हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है.
चीन के वाणिज्य मंत्रालय ने 27 अगस्त को बताया कि 2024 में एससीओ सदस्य देशों के साथ चीन का व्यापार 512.4 अरब डॉलर तक पहुँच गया है, जो "रिकॉर्ड" है.
सरकारी अख़बार ग्लोबल टाइम्स ने चीन की शीर्ष थिंक टैंक द चाइनीज़ एकेडमी के एक रिसर्च फैलो के हवाले से लिखा है कि एससीओ का वैश्विक अर्थव्यवस्था और राजनीति में मज़बूत प्रभाव "क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा देने में योगदान दे सकता है."
चीन की कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े अख़बार पीपुल्स डेली ने 23 अगस्त को लिखा कि "एससीओ एक नए तरह के अंतरराष्ट्रीय संबंधों और क्षेत्रीय सहयोग का मॉडल है, साथ ही ये एक रचनात्मक ताक़त है जिसका महत्वपूर्ण वैश्विक प्रभाव है."
अख़बार ने यह भी लिखा कि एससीओ "इतिहास के सही पक्ष" की तरफ़ खड़ा है और "न्याय और निष्पक्षता" का पक्षधर है.
साथ ही लिखा कि "क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर इस संगठन की साझा आवाज़ 'ग्लोबल गवर्नेंस' को अधिक न्यायपूर्ण और तर्कसंगत दिशा में ले जाएगी और ग्लोबल साउथ में एकजुटता को और बढ़ाकर मानवता के एक साझा भविष्य की तरफ़ ले जाएगी."
कई अख़बारों में शंघाई स्पिरिट का ज़िक्र किया गया जो मूल रूप से इस संगठन में आपसी सहयोग का दिशादर्शक सिद्धांत है.

23 अगस्त को शिन्हुआ में छपे एक लेख में कहा गया कि "बदलते समय के साथ, इसकी समकालीन अहमियत और स्पष्ट होती जा रही है. ये ग्लोबल गवर्नेंस के मौजूदा संकट को हल करने, अंतरराष्ट्रीय मतभेदों को ख़त्म करने और मानवता के साझा भविष्य को बढ़ावा देने की वैचारिक प्रेरणा देती है."
एससीओ में कोऑर्डिनेशन के काम के लिए ज़िम्मेदार राजदूत फ़ैन शियानरोंग ने "शंघाई स्पिरिट" को संगठन का "मूल और उसकी आत्मा" बताया.
उन्होंने कहा कि यह भावना "स्थिरता, विकास और एकजुटता की एससीओ देशों की मांगों से पूरी तरह मेल खाती है" और "शीत युद्ध की मानसिकता और सभ्यताओं के टकराव जैसी पुरानी अवधारणाओं से अलग" है.
संगठन के वैश्विक प्रभाव और अपील से आगे बढ़ते हुए मीडिया में संगठन के देशों के बीच कनेक्टिविटी, बिग डेटा, ऊर्जा और सस्टेनेबल डेवलपमेन्ट की दिशा में हुई प्रगति पर भी लिखा गया.
मीडिया में 2025 को "एससीओ ईयर ऑफ़ सस्टेनेबल डेवलपमेंट" बताया गया और कहा गया कि सस्टेनेबल डेवलपमेंट की दिशा में संगठन में "एक-दूसरे को होने वाले फ़ायदे" और "अपार संभावनाएँ" हैं.
शिन्हुआ में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार उप-वाणिज्य मंत्री लिंग जी का कहना है कि इस थीम के तहत, चीन एससीओ में अपने साझेदारों के साथ तेल, गैस, मैन्युफैक्चरिंग, ग्रीन एनर्जी और डिजिटल अर्थव्यवस्था में सहयोग को बढ़ावा दे रहा है.
उनका कहना है कि "उम्मीद है कि ये कोशिशें इंडस्ट्री में बदलाव को बढ़ावा देंगी और सदस्य देशों के बीच इंडस्ट्रियल और सप्लाई चेन को लेकर गहरे रिश्ते बनाने में मदद करेंगी."
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मूल रूप से एससीओ की शुरुआत सेंट्रल एशिया के लिए एक क्षेत्रीय सुरक्षा सहयोग संगठन के रूप में हुई थी, लेकिन अब तीन महाद्वीपों में फैले देश इस संगठन में शामिल हो चुके हैं.
इसका ये विस्तार और "ग्लोबल साउथ की आवाज़" उठाने, "बहुपक्षवाद" की वकालत करने और "प्रभुत्व कायम करने का विरोध करने" जैसे नैरेटिव अब इसे ब्रिक्स जैसा सहयोग संगठन बनाती जा रही हैं.
ब्रिक्स एक और संगठन है जिसमें चीन के साथ भारत, रूस, ब्राज़ील और दक्षिण अफ़्रीका शामिल हैं. इसे भी चीन के नेतृत्व वाला माना जाता है.
एससीओ में शामिल 26 सदस्य देशों, पार्टनरों और पर्यवेक्षकों में से नौ ब्रिक्स के साथ भी जुड़े हैं. हाल के सालों में ग्लोबल साउथ के देशों को जोड़ने की कोशिश के बीच ब्रिक्स का विस्तार हुआ है. इसमें अब 10 सदस्य और 10 डायलॉग पार्टनर्स हैं.
इस साल शुरुआत में इस तरह के संकेत मिले थे कि शायद राष्ट्रपति शी जिनपिंग ब्रिक्स को उतनी अहमियत नहीं दे रहे.
इसकी वजह ये थी कि जुलाई में ब्राज़ील में हुए ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में वो नहीं गए थे, बल्कि उनकी जगह प्रीमियर ली चियांग गए थे. उस वक्त इस संगठन के प्रभाव और एकता पर सवाल उठ रहे थे.
राष्ट्रपति बनने के बाद से शी जिनपिंग ने एससीओ के हर सम्मेलन में हिस्सा लिया है.
एससीओ के बारे में उन्होंने खुद कहा था कि "चीन ने अपनी नेबरहुड डिप्लोमेसी में हमेशा एससीओ को प्राथमिकता दी है" और वो इसे "अधिक सार्थक और मज़बूत" बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं.
अभी यह देखना बाकी है कि क्या वाकई चीन अपना झुकाव एससीओ की तरफ कर रहा है.
लेकिन फिलहाल एससीओ और ब्रिक्स दोनों ही "संरक्षणवाद और एकतरफ़ावाद का विरोध कर रहे हैं, "प्रभुत्व और बुलींग (दबंगई)" की कोशिशों को खारिज कर रहे हैं. दोनों संगठन ग्लोबल साउथ और एक न्यायपूर्ण अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था की वकालत करने जैसे संदेश आगे बढ़ा रहे हैं.
जैसा अक्सर होता है, मीडिया रिपोर्टों में यह नहीं बताया गया कि क्या ज़्यादा सदस्य और साझेदार जोड़ने से एससीओ का ऐसे मुद्दों पर असर कमज़ोर हो सकता है जो सबसे ज़्यादा अहमियत रखते हैं.
मीडिया रिपोर्टों में ये भी ज़िक्र नहीं है कि ऐसे वक्त में जब "वैश्विक स्तर पर उथल-पुथल" मची हुई है और "कुछ देश दूसरों पर मनमाने तरीक़े से अतिरिक्त टैरिफ़ थोप रहे हैं", यह संगठन केवल एकता का प्रदर्शन बनकर न रह जाए.
शिन्हुआ को दिए इंटरव्यू में राजदूत फ़ैन शियानरोंग ने कहा, "एससीओ अपने दरवाज़े खुले रखना जारी रखेगा और यह संगठन उन देशों का स्वागत करेगा जो शंघाई स्पिरिट को अपनाते हैं और इस बड़े परिवार का हिस्सा बनना चाहते हैं."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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