यूरोपियन यूनियन (ईयू) ने नायरा एनर्जी लिमिटेड के स्वामित्व वाली गुजरात स्थित वाडीनार रिफ़ाइनरी पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की है.
ईयू ने शुक्रवार को रूस के एनर्जी सेक्टर को टारगेट करने वाले नए प्रतिबंधों की घोषणा की थी और गुजरात की रिफ़ाइनरी भी इस प्रतिबंध में शामिल हो गई है.
ईयू ने यह घोषणा तब की है, जब अमेरिकी कांग्रेस में रूस से तेल ख़रीदने वाले देशों पर कड़े प्रतिबंध लगाने की बात चल रही है.
अमेरिका के कुछ सीनेटर्स तो रूसी तेल ख़रीदने के बदले में भारत पर 500 प्रतिशत टैरिफ़ लगाने वाले बिल की तैयारी कर रहे हैं.
इसके अलावा इसी हफ़्ते नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइज़ेशन यानी नेटो के प्रमुख मार्क रूटे ने चीन, ब्राज़ील और भारत से कहा था कि वे रूस पर यूक्रेन में युद्ध बंद करने का दबाव डालें, नहीं तो अमेरिकी प्रतिबंध के लिए तैयार रहें.
अंग्रेज़ी अख़बार इकोनॉमिक टाइम्स ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है, ''ईयू का प्रतिबंध नायरा एनर्जी के लिए तो झटका है ही लेकिन रूसी कच्चे तेल से बने ईंधन पर प्रतिबंध से रिलायंस इंडस्ट्रीज़ के लिए भी चुनौती बढ़ेगी."
विश्लेषकों का कहना है कि दोनों कंपनियों पर ईयू के बाज़ार से बाहर होने का ख़तरा मंडरा रहा है. ऐसी मीडिया रिपोर्ट्स आ रही थीं कि रूसी ऊर्जा कंपनी रोज़नेफ़्ट नायरा में अपनी 49 फ़ीसदी हिस्सेदारी बेचने की तैयारी कर रही थी.
ऐसे में ईयू के प्रतिबंध से यह संभावित सौदा जटिल हो गया है. रिलायंस इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड (आरआईएल) और नायरा भारत की शीर्ष की दो ईंधन निर्यातक कंपनियां हैं.
ईटी ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है, ''रिलायंस ने रूसी एनर्जी कंपनी रोज़नेफ़्ट से कच्चा तेल ख़रीदने के लिए डील की थी. अब ईयू के प्रतिबंधों के बाद उसके सामने मुश्किल विकल्प हैं- या तो रूस से सस्ता तेल ख़रीदना बंद करे या फिर यूरोप के फ़ायदेमंद डीज़ल मार्केट से बाहर हो जाए. दोनों विकल्प रिफ़ाइनिंग बचत पर असर डाल सकते हैं.''
ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव के फ़ाउंडर अजय श्रीवास्तव से बीबीसी ने पूछा कि ईयू के प्रतिबंध का असर केवल नायरा पर पड़ेगा या दूसरी रिफ़ाइनरी कंपनियों पर भी?
अजय श्रीवास्तव कहते हैं, ''हम ये आज ठीक से कहने की स्थिति में नहीं हैं कि ईयू के प्रतिबंध की चपेट में कौन-कौन सी कंपनियां आएंगी. रूस से भारत अपनी ज़रूरत का क़रीब 40 प्रतिशत तेल आयात कर रहा है लेकिन हमें ये नहीं मालूम है कि कौन-कौन सी कंपनियां कितना तेल ख़रीद रही हैं. नायरा का नाम इसलिए आ रहा है क्योंकि इसमें रूसी तेल कंपनी रोज़नेफ़्ट की 49 प्रतिशत हिस्सेदारी है. बाक़ी की हिस्सेदारी में भी रूसी फ़र्मों का पैसा लगा है. इसके अलावा प्राइवेट इक्विटी भी है.''
अजय श्रीवास्तव कहते हैं, ''हमें इसका मुकम्मल जवाब तभी मिलेगा, जब सरकार बताए कि कौन सी कंपनी रूस से कितना तेल आयात कर रही है और उस तेल को रिफ़ाइन कर कितना और कहाँ निर्यात कर रही है. यह भी संभव है कि कई कंपनियां रूस से तेल ख़रीद रही हैं लेकिन उसका निर्यात कहीं बाहर नहीं कर रही हैं. इसका डेटा सार्वजनिक नहीं है.''
ब्लूमबर्ग की पिछले महीने की रिपोर्ट के मुताबिक़, इस साल के जून महीने तक रूसी कच्चे तेल के समुद्र के ज़रिए हुए कुल निर्यात का 80 प्रतिशत तेल भारत में आया था.
केपलर के डेटा के मुताबिक़ इस साल 24 जून तक भारत ने 23.1 करोड़ बैरल रूसी यूराल (रूसी कच्चा तेल) ख़रीदा, जिसमें से रिलायंस इंडस्ट्रीज़ और नायरा एनर्जी लिमिटेड का हिस्सा 45 प्रतिशत था.
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अजय श्रीवास्तव कहते हैं, ''भारत सरकार बस ये बताती है कि रूस से कितना तेल भारत आया. हमारे पास ये डेटा भी नहीं है कि रूस का कितना तेल भारत से रिफ़ाइन होकर यूरोप जा रहा है. भारत सरकार किसी निजी कंपनी का डेटा नहीं बताती है. यह सच्चाई है कि रूसी तेल बड़े पैमाने पर भारत से रिफ़ाइन होकर यूरोप में जा रहा था लेकिन किस कंपनी का कितना था, इसका डेटा नहीं है.''
ईयू के प्रतिबंध के बाद रूस का जो कच्चा तेल भारत में रिफ़ाइन होकर यूरोप जाता है, ये अब संभव नहीं होगा.
अजय श्रीवास्तव कहते हैं, ''प्रतिबंध तत्काल प्रभाव से लागू हो गया है. अब रूस का कच्चा तेल भारत से रिफ़ाइन होकर यूरोपियन यूनियन के देशों में नहीं जा सकता है. भारत के कुल आयात का एक तिहाई तेल रूस से आ रहा था और इसका बड़ा हिस्सा यूरोप के बाज़ार में रिफ़ाइन होकर जा रहा था. ईयू के प्रतिबंध के बाद यूरोप में भारत का पेट्रोलियम निर्यात बुरी तरह से प्रभावित होगा.''
ब्लूमबर्ग ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है, ''रूसी एनर्जी कंपनी रोज़नेफ़्ट की योजना भारत की नायरा एनर्जी लिमिटेड में अपनी हिस्सेदारी बेचने की थी. लेकिन ईयू के प्रतिबंध के बाद यह योजना अधर में लटक सकती है.''
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, रोज़नेफ़्ट मुकेश अंबानी के स्वामित्व वाली रिलायंस इंडस्ट्रीज़ से नायरा में अपनी हिस्सेदारी बेचने के लिए बातचीत कर रही थी.
लेकिन ईयू के प्रतिबंधों के कारण रिलायंस के लिए अपनी प्रतिस्पर्धी कंपनी में हिस्सेदारी ख़रीदना मुश्किल हो जाएगा क्योंकि इससे यूरोप में कंपनी का कारोबार ख़तरे में पड़ सकता है. यूरोप ऐसा मार्केट है, जहाँ नियमित रूप से डीज़ल सहित भारतीय ईंधन बेचा जाता है.
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ब्लूमबर्ग ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है, ''नायरा चार लाख बैरल प्रतिदिन उत्पादन क्षमता वाली एक रिफ़ाइनरी का संचालन करती है और पूरे भारत में इसके लगभग 7,000 ईंधन आउटलेट हैं. यह अपनी रिफ़ाइनरी के बगल में एक पेट्रोकेमिकल संयंत्र भी विकसित कर रही है. दुनिया का सबसे बड़ा रिफ़ाइनिंग कॉम्प्लेक्स, रिलायंस जामनगर प्रोसेसर, नायरा की वाडीनार यूनिट से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर है.''
पूरे मामले पर नायरा या रिलायंस की तरफ़ से कुछ भी नहीं कहा गया है लेकिन भारत के विदेश मंत्रालय ने ईयू के फ़ैसले की आलोचना की है.
विदेश मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया है, ''भारत किसी भी एकतरफ़ा प्रतिबंध को नहीं मानता है. हम एक ज़िम्मेदार देश हैं और अपने क़ानूनी दायित्व को लेकर प्रतिबद्ध हैं. भारत की सरकार ऊर्जा सुरक्षा की ज़िम्मेदारी को बहुत अहम मानती है और यह हमारे नागरिकों की बुनियादी ज़रूरत है. हम फिर इस बात को दोहराते हैं कि ऊर्जा व्यापार के मामले में दोहरा मानदंड नहीं अपनाया जाना चाहिए.''
अजय श्रीवास्तव कहते हैं, ''भारत संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों को मानता है, इसलिए इसे एकतरफ़ा प्रतिबंध कह रहा है लेकिन भारत आलोचना के सिवा कुछ कर भी नहीं सकता है. यूरोप लगातार अपना बाज़ार बंद कर रहा है. स्टील के मामले में भी ऐसा ही हुआ है. यूरोप में भारत का ऊर्जा निर्यात भी लगातार कम हो रहा है.''
ब्लूमबर्ग ने स्थानीय मीडिया का हवाला देते हुए लिखा है, रोज़नेफ़्ट भारत से निकलना चाह रही है क्योंकि कंपनी प्रतिबंधों की वजह से अपनी कमाई वापस भेज नहीं पा रही है.
इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक़, रोज़नेफ़्ट की सऊदी अरब की सरकारी कंपनी अरामको समेत कई ख़रीदारों से बातचीत चल रही है. रोज़नेफ़्ट और इसके सहयोगियों ने साल 2017 में नायरा को एस्सार ग्रुप से 12.9 अरब डॉलर में ख़रीदा था.
ईयू ने किसी तीसरे देश के ज़रिए रूसी तेल के आयात पर भी पाबंदी लगा दी है. इससे यूरोप में भारत के ईंधन निर्यात पर भी असर पड़ना तय है.
केपलर के डेटा के मुताबिक़ भारत से ईयू को रिफ़ाइन पेट्रोलियम उत्पादों का निर्यात 2023 में एक साल पहले की तुलना में दोगुना हो गया था. 2023 में औसतन महीने में हर दिन दो लाख बैरल से भी ज़्यादा पेट्रोलियम उत्पाद का निर्यात हुआ.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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