अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने घोषणा की है कि 1 अक्टूबर 2025 से अमेरिका में आने वाले ब्रांडेड और पेटेंटेड दवा आयातों पर 100% टैरिफ लगाया जाएगा. ये नियम तब तक लागू रहेगा जब तक निर्यातक कंपनी अमेरिका में अपनी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट का निर्माण नहीं करती या फिर निर्माणाधीन नहीं होती.
इस फैसले के बाद भारतीय फार्मा इंडस्ट्री में हलचल जरूर हुई, लेकिन उद्योग विशेषज्ञों का कहना है कि इसका भारत पर बहुत बड़ा असर नहीं पड़ेगा.
भारत पर क्यों असर कम होगा?भारत दुनिया का सबसे बड़ा जेनेरिक दवाओं का सप्लायर है. जेनेरिक दवाएं मूल रूप से सस्ती और किफायती दवाएं होती हैं, जिन्हें पेटेंट खत्म होने के बाद बनाया और बेचा जाता है. अमेरिका के लिए भारत इन दवाओं का सबसे बड़ा स्रोत है. भारत अमेरिका की 47% दवा जरूरतें पूरी करता है. अमेरिका को भारतीय जेनेरिक आयात से हर साल लगभग 200 अरब डॉलर की बचत होती है.
पिछले 10 सालों से अमेरिका जेनेरिक दवाओं पर इस लागत-बचत का लाभ उठा रहा है. इसी वजह से विशेषज्ञ मानते हैं कि टैरिफ का असर भारतीय दवा निर्यात पर फिलहाल बहुत ज्यादा नहीं पड़ेगा.
Pharmexcil का बयानफार्मा एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल ऑफ इंडिया यानी Pharmexcil ने कहा कि ये कदम भारत के लिए तुरंत चिंता का कारण नहीं है. दरअसल, बड़ी भारतीय दवा कंपनियों की अमेरिका में पहले से ही मैन्युफैक्चरिंग और रीपैकेजिंग यूनिट्स मौजूद हैं.
काउंसिल के अध्यक्ष नमित जोशी ने बताया भारत का सबसे बड़ा योगदान जेनेरिक दवाओं में है. जीवन रक्षक कैंसर दवाओं, एंटीबायोटिक्स और पुरानी बीमारियों की दवाओं की सप्लाई भारत करता है. आने वाले समय में अमेरिका को भारतीय निर्यात में सालाना 10-11% की वृद्धि की उम्मीद है.
Entod Pharma के CEO निखिल के. मसुरकर भारत की ताकत सस्ती जेनेरिक दवाओं की आपूर्ति में है. जेनेरिक दवाओं को टैरिफ से बाहर रखा गया है, इसलिए भारत का निर्यात अप्रभावित रहेगा.
भारत को आगे क्या करना चाहिए?विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को केवल अमेरिका पर निर्भर नहीं रहना चाहिए. भारत को API (Active Pharmaceutical Ingredients) और थोक दवाओं में अपनी लागत को मजबूत करना चाहिए. नए वैश्विक बाजार तलाशने चाहिए, ताकि भविष्य में किसी नीति बदलाव का बड़ा असर न पड़े.
इस फैसले के बाद भारतीय फार्मा इंडस्ट्री में हलचल जरूर हुई, लेकिन उद्योग विशेषज्ञों का कहना है कि इसका भारत पर बहुत बड़ा असर नहीं पड़ेगा.
भारत पर क्यों असर कम होगा?भारत दुनिया का सबसे बड़ा जेनेरिक दवाओं का सप्लायर है. जेनेरिक दवाएं मूल रूप से सस्ती और किफायती दवाएं होती हैं, जिन्हें पेटेंट खत्म होने के बाद बनाया और बेचा जाता है. अमेरिका के लिए भारत इन दवाओं का सबसे बड़ा स्रोत है. भारत अमेरिका की 47% दवा जरूरतें पूरी करता है. अमेरिका को भारतीय जेनेरिक आयात से हर साल लगभग 200 अरब डॉलर की बचत होती है.
पिछले 10 सालों से अमेरिका जेनेरिक दवाओं पर इस लागत-बचत का लाभ उठा रहा है. इसी वजह से विशेषज्ञ मानते हैं कि टैरिफ का असर भारतीय दवा निर्यात पर फिलहाल बहुत ज्यादा नहीं पड़ेगा.
Pharmexcil का बयानफार्मा एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल ऑफ इंडिया यानी Pharmexcil ने कहा कि ये कदम भारत के लिए तुरंत चिंता का कारण नहीं है. दरअसल, बड़ी भारतीय दवा कंपनियों की अमेरिका में पहले से ही मैन्युफैक्चरिंग और रीपैकेजिंग यूनिट्स मौजूद हैं.
काउंसिल के अध्यक्ष नमित जोशी ने बताया भारत का सबसे बड़ा योगदान जेनेरिक दवाओं में है. जीवन रक्षक कैंसर दवाओं, एंटीबायोटिक्स और पुरानी बीमारियों की दवाओं की सप्लाई भारत करता है. आने वाले समय में अमेरिका को भारतीय निर्यात में सालाना 10-11% की वृद्धि की उम्मीद है.
Entod Pharma के CEO निखिल के. मसुरकर भारत की ताकत सस्ती जेनेरिक दवाओं की आपूर्ति में है. जेनेरिक दवाओं को टैरिफ से बाहर रखा गया है, इसलिए भारत का निर्यात अप्रभावित रहेगा.
भारत को आगे क्या करना चाहिए?विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को केवल अमेरिका पर निर्भर नहीं रहना चाहिए. भारत को API (Active Pharmaceutical Ingredients) और थोक दवाओं में अपनी लागत को मजबूत करना चाहिए. नए वैश्विक बाजार तलाशने चाहिए, ताकि भविष्य में किसी नीति बदलाव का बड़ा असर न पड़े.
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