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एल्युमिनियम बर्तनों के स्वास्थ्य पर प्रभाव: जानें क्या हैं खतरे

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एल्युमिनियम बर्तनों का इतिहास और स्वास्थ्य पर प्रभाव

भारत में एल्युमिनियम बर्तनों का उपयोग लगभग 100-200 साल पहले शुरू हुआ था। इससे पहले, लोग पीतल, कांसा, चांदी और मिट्टी के बर्तनों का उपयोग करते थे। ब्रिटिश शासन के दौरान, जेलों में कैदियों के लिए एल्युमिनियम बर्तनों का इस्तेमाल किया गया, क्योंकि यह धीरे-धीरे शरीर में जहर छोड़ता है। एल्युमिनियम बर्तनों के उपयोग से कई गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं, जैसे अस्थमा, टीबी, और मधुमेह। पुराने समय में, कांसा और पीतल के बर्तन स्वास्थ्य के लिए बेहतर माने जाते थे। यदि संभव हो, तो इन्हीं बर्तनों का उपयोग करें।


एल्युमिनियम फॉयल का उपयोग और सावधानियाँ

लंच के लिए टिफिन में पराठे या रोटी को गर्म रखने के लिए एल्युमिनियम फॉयल का उपयोग आम हो गया है। यह खाने को मुलायम भी बनाए रखता है। हालांकि, एल्युमिनियम खाने के साथ प्रतिक्रिया कर सकता है, जिससे यह सेहत के लिए हानिकारक हो सकता है।


किचन में एल्युमिनियम का व्यापक उपयोग होता है, लेकिन इसके कई नुकसान भी हैं। अत्यधिक एल्युमिनियम का सेवन हड्डियों और किडनी से संबंधित गंभीर बीमारियों का कारण बन सकता है। कुछ सावधानियों का पालन करके इन खतरों से बचा जा सकता है।


बहुत गर्म भोजन को फॉयल में लपेटने से बचें, क्योंकि इससे एल्युमिनियम पिघलकर भोजन में मिल सकता है, जो अल्जाइमर और डिमेंशिया के जोखिम को बढ़ा सकता है। अच्छी गुणवत्ता वाले एल्युमिनियम का उपयोग करें और एसिडिक खाद्य पदार्थों को फॉयल में न रखें। टमाटर या सिरके से बने खाद्य पदार्थों को फॉयल में लपेटने से बचें, क्योंकि ये एल्युमिनियम के साथ मिलकर उसे खराब कर सकते हैं। बचे हुए भोजन को भी एल्युमिनियम में पैक न करें, बल्कि किसी कांच के बर्तन में रखें।


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