जब बच्चे इस दुनिया में आते हैं, तो यह उनके परिवार के लिए खुशी का पल होता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि बच्चे जन्म लेते ही क्यों रोने लगते हैं? इसके पीछे एक महत्वपूर्ण कारण है। विशेषज्ञों के अनुसार, जब नवजात शिशु जन्म लेते हैं, तो वे एक नए और अनजान वातावरण में प्रवेश करते हैं। इस नए माहौल में उनके शरीर के विभिन्न सिस्टम को सक्रिय करने के लिए ऑक्सीजन, पोषक तत्वों और तापमान की आवश्यकता होती है, और रोना इस आवश्यकता को व्यक्त करने का एक तरीका है।
पर्यावरणीय प्रतिक्रियाएं और रोने के कारण
एक स्वास्थ्य विशेषज्ञ के अनुसार, बच्चे नए अनुभवों को महसूस करते हैं और इसे व्यक्त करने का सबसे सरल तरीका रोना होता है। बच्चे अपनी आवश्यकताओं को व्यक्त करने के साथ-साथ विभिन्न पर्यावरणीय प्रतिक्रियाएं भी दिखा सकते हैं, जैसे ठंड, गर्मी, खुशी, दुख, भूख, थकान, असंतुलन, डर, और अचानक ध्यान का बदलाव। नवजात शिशुओं का ध्यान समय-समय पर संकुचित होता है, जिससे वे रोने लगते हैं।
भूख और अन्य कारण
बच्चे भूख के कारण भी रोते हैं और जब उन्हें दूध मिलता है, तो वे चुप हो जाते हैं। जन्म के बाद के तीन महीनों में, शिशु को हर घंटे भूख लगती है और वे इसे धीमी आवाज में रोकर व्यक्त करते हैं। छह महीने की उम्र में, बच्चे खुद सोना सीख जाते हैं, लेकिन कभी-कभी वे अपनी मां या पिता के बिना नहीं सोते।
स्वास्थ्य का संकेत
यह भी माना जाता है कि नवजात शिशु का दिन में दो से तीन घंटे रोना आवश्यक है। कई संस्कृतियों में बच्चे के रोने को शुभ माना जाता है, क्योंकि यह उनके जीवित और स्वस्थ होने का संकेत है। यदि बच्चा जन्म के बाद जोर से रोता है, तो यह दर्शाता है कि वह स्वस्थ है। वहीं, यदि बच्चा धीमी आवाज में रोता है, तो यह स्वास्थ्य संबंधी समस्या का संकेत हो सकता है।
असंतुलन और अन्य कारण
कभी-कभी बच्चे बुखार, दर्द या अन्य कारणों से भी रोने लगते हैं। उनकी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए माता-पिता का ध्यान आकर्षित करने का यह एक तरीका है।
विकासात्मक प्रक्रिया
हालांकि, यह सच है कि समय के साथ रोने की प्रक्रिया कम होती जाती है। जैसे-जैसे बच्चे विकसित होते हैं और भाषा तथा सामाजिक कौशल सीखते हैं, वे अपनी आवश्यकताओं को व्यक्त करने के लिए अन्य तरीकों का उपयोग करना भी सीखते हैं। यह एक सामान्य विकासात्मक प्रक्रिया है और अधिकांश बच्चे इसे जल्दी ही सीख लेते हैं।