नई दिल्ली। मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों और प्रधानमंत्री को 30 दिन की गिरफ्तारी की स्थिति में पद से बर्खास्त करने वाले विधेयकों और संवैधानिक संशोधन पर गठित संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को शनिवार को विपक्षी दलों ने बड़ा झटका दिया। तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और समाजवादी पार्टी (सपा) ने इस जेपीसी का हिस्सा बनने से साफ इनकार कर दिया। टीएमसी का बहिष्कार पहले से तय माना जा रहा था, लेकिन सपा के कदम ने विपक्षी खेमे में हलचल मचा दी है। अब कांग्रेस पर भी विपक्षी एकजुटता के नाम पर दबाव बढ़ रहा है। कांग्रेस अब तक जेपीसी में शामिल होने के पक्ष में झुकी हुई थी, लेकिन सपा के रुख से पार्टी के भीतर संशय गहरा गया है।
टीएमसी सांसद डेरेक ओ’ब्रायन ने जेपीसी को सिरे से खारिज करते हुए कहा, “मोदी गठबंधन एक असंवैधानिक बिल की जांच के लिए जेपीसी बना रहा है। यह सब एक नाटक है और हमें इसे नाटक ही कहना था। मुझे खुशी है कि हमने यह कदम उठाया है।”
विधेयक की सोच ही त्रुटिपूर्ण
सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी टीएमसी का साथ देते हुए कहा, “विधेयक का विचार ही गलत है। जिसने यह बिल पेश किया (गृह मंत्री अमित शाह) उन्होंने खुद कई बार कहा है कि उन पर झूठे केस लगाए गए थे। अगर कोई भी किसी पर फर्जी केस डाल सकता है तो फिर इस बिल का मतलब क्या है?” अखिलेश ने आगे कहा कि यही कारण है कि सपा नेताओं जैसे आजम खान, रामाकांत यादव और इरफान सोलंकी जेल में डाले गए।
सपा प्रमुख ने विधेयकों को भारत के संघीय ढांचे से टकराने वाला करार दिया। उन्होंने कहा, “जैसे यूपी में हुआ मुख्यमंत्री अपने राज्यों में दर्ज आपराधिक मामले वापस ले सकते हैं। केंद्र का इस पर कोई नियंत्रण नहीं होगा क्योंकि कानून-व्यवस्था राज्य का विषय है। केंद्र सिर्फ उन्हीं मामलों में दखल दे पाएगा जो केंद्रीय एजेंसियों जैसे सीबीआई, ईडी आदि द्वारा दर्ज हों।”
जेपीसी की विश्वसनीयता पर सवाल
डेरेक ओ’ब्रायन ने जेपीसी की उपयोगिता पर सवाल उठाते हुए कहा कि पहले इसे जनहित और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए एक सशक्त तंत्र के रूप में देखा जाता था। उन्होंने कहा, “2014 के बाद से जेपीसी की भूमिका काफी हद तक खोखली हो गई है। सरकारें इसका राजनीतिक इस्तेमाल करने लगी हैं, विपक्ष के संशोधन खारिज किए जाते हैं और बहस महज औपचारिकता बनकर रह गई है।”
उन्होंने उदाहरण देते हुए कांग्रेस सरकार के दौर में हर्षद मेहता घोटाले और बोफोर्स मामले पर बनी जेपीसी का उल्लेख किया और यहां तक कहा कि बोफोर्स में कांग्रेस सांसद पर रिश्वत लेने का आरोप भी लगा था।
विपक्षी दल टीएमसी के बहिष्कार को लेकर पहले से तैयार थे, लेकिन सपा के कदम ने असमंजस पैदा कर दिया है। कई दलों का मानना है कि संसदीय समितियों में हुई बहस अदालत की सुनवाई और जनमत निर्माण में अहम साबित होती है। लेकिन सपा के बहिष्कार ने विपक्ष की सामूहिक आवाज को कमजोर किया है।
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