वाराणसी, 22 सितंबर . शारदीय नवरात्र का दूसरा दिन मां दुर्गा के द्वितीय स्वरूप मां ब्रह्मचारिणी को समर्पित होता है. मां ब्रह्मचारिणी तपस्या, संयम और ब्रह्मचर्य का प्रतीक मानी जाती हैं. काशी के दुर्गा घाट और ब्रह्माघाट स्थित प्राचीन मंदिरों में इस दिन भक्तों की भारी भीड़ होती है.
पुराणों के अनुसार उन्होंने कठोर तप कर भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त किया था. उनकी आराधना से साधक को कठिन परिस्थितियों में धैर्य, संयम और आत्मबल मिलता है. यही कारण है कि द्वितीया तिथि पर भक्तगण मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करके जीवन में आने वाली बाधाओं को दूर करने और आंतरिक शक्ति प्राप्त करने की कामना करते हैं.
काशी के दुर्गा घाट और ब्रह्माघाट स्थित प्राचीन मंदिरों में इस दिन विशेष चहल-पहल देखने को मिलती है. सुबह से ही श्रद्धालुओं की भारी भीड़ मां के दर्शन और पूजन के लिए उमड़ पड़ती है. महिलाएं कलश सजाती हैं, दुग्ध, फल और पुष्प अर्पित करती हैं. मंदिर परिसर में घंटे की ध्वनि और भक्तों के जयकारों से वातावरण पूर्णतः भक्तिमय हो जाता है.
दुर्गा घाट स्थित ब्रह्मचारिणी मंदिर के महंत राजेश्वर सागर का कहना है कि नवरात्रि के नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है और प्रत्येक दिन का विशेष महत्व है. नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की विशेष पूजा की जाती है. इस दिन मां के दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं को धन, धान्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है.
पौराणिक कथा है कि पार्वती जी ने भगवान शिव को पाने हेतु कठोर तप किया और वर्षों तक व्रत-तपस्या कर ब्रह्मचारिणी कहलाईं. उनके तप से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार किया. इसलिए मां ब्रह्मचारिणी की पूजा से साधक को इच्छित वरदान, कठिनाइयों को सहने की शक्ति और जीवन में सफलता प्राप्त होती है. माना जाता है कि सच्चे मन से उनकी उपासना करने वाला मनवांछित फल पाता है और जीवन में सद्गति प्राप्त करता है.
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पीआईएम/एएस
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