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राष्ट्रीय खेल प्रशासन विधेयक कैसे एनएसएफ, खिलाड़ियों और भारत की ओलंपिक महत्वाकांक्षाओं के लिए अहम है ?

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New Delhi, 22 जुलाई . दुनिया भर के शीर्ष खेल निकायों के साथ लंबी अवधि के विचार-विमर्श के बाद ‘राष्ट्रीय खेल प्रशासन विधेयक 2025’ तैयार कर लिया गया है. विधेयक देश में खेल परिदृश्य को बदलने के लिए तैयार है.

खेल मंत्री मनसुख मंडाविया Wednesday को संसद में इस विधेयक को पेश करेंगे. विधेयक की विशेषता देश के खेल पारिस्थितिकी तंत्र में पारदर्शिता, निष्पक्षता और सुशासन सुनिश्चित करना है.

विधेयक का उद्देश्य राष्ट्रीय खेल निकायों के बिना किसी राजनीतिक या अन्य दबाव के सुचारू संचालन और उन्हें एक मंच के अंतर्गत लाना है. इतना ही नहीं, विधेयक में खेल निकायों, खिलाड़ियों और पदाधिकारियों के बीच किसी भी विवाद के समाधान के लिए एक खेल न्यायाधिकरण स्थापित करने का भी प्रस्ताव है. हालांकि, न्यायालयों के पास न्यायिक समीक्षा की शक्तियां बनी रहती हैं, न्यायाधिकरण केवल त्वरित समाधान में सक्षम बनाता है.

यह विधेयक बुनियादी शासन मानकों को लागू करते हुए स्वायत्तता सुनिश्चित करता है. यह टकराव की स्थिति में ओलंपिक चार्टर को स्पष्ट रूप से प्राथमिकता देता है.

इसके अलावा, यह विधेयक भारत के 2036 तक एक खेल महाशक्ति बनने और ओलंपिक में शीर्ष 10 में स्थान पाने के लक्ष्य के अनुरूप है.

प्रमुख उपायों में अनिवार्य एथलीट प्रतिनिधित्व, अंतर्राष्ट्रीय उच्च-प्रदर्शन शासन मानकों के अनुरूप होना, और ओलंपिक की तैयारी में बाधा डालने वाले आंतरिक संघर्षों को कम करने के लिए योग्यता-आधारित चयन को बढ़ावा देना शामिल है.

सुरक्षित खेल पहलों और सुलभ शिकायत निवारण प्रणालियों के माध्यम से एथलीट कल्याण को प्राथमिकता दी जाती है. राष्ट्रीय खेल महासंघों का नियमित ऑडिट ओलंपिक की तैयारी के लिए आवंटित सार्वजनिक धन का कुशल उपयोग सुनिश्चित करेगा. शासन संबंधी कानूनी स्पष्टता आईओसी जैसी वैश्विक संस्थाओं के साथ भारत की प्रतिष्ठा को और बढ़ाती है, जिससे अंतर्राष्ट्रीय साझेदारियों और भविष्य में मेजबानी के अवसरों में वृद्धि के रास्ते खुलते हैं.

खिलाड़ियों के संदर्भ में, यह विधेयक यह सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया है कि एथलीट भारत में खेल प्रशासन के केंद्र में हों. प्रत्येक एनएसएफ में एथलीट समितियों और उत्कृष्ट योग्यता वाले खिलाड़ियों के माध्यम से निर्णय लेने वाली संस्थाओं में प्रतिनिधित्व अनिवार्य करके, एथलीटों को नीतियों और नैतिक मानकों को आकार देने में प्रत्यक्ष आवाज मिलती है.

यह ढांचा सुरक्षित, उत्पीड़न-मुक्त वातावरण की गारंटी देता है और शिकायत निवारण के लिए स्पष्ट, सुलभ माध्यम स्थापित करता है. इसका उद्देश्य लंबे कानूनी विवादों के कारण होने वाली करियर संबंधी बाधाओं को रोकना भी है, जिससे खिलाड़ियों के कल्याण की रक्षा हो सके और खेल प्रशासन के सभी स्तरों पर जवाबदेही और समावेश की संस्कृति को बढ़ावा मिले.

पीएके/जीकेटी

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