तिरुपुर (तमिलनाडु), 18 अप्रैल . तमिलनाडु के तिरुपुर जिले में खदान और क्रशर मालिकों की हड़ताल के कारण लगातार तीसरे दिन भी निर्माण कार्य पूरी तरह ठप रहा.
राज्यव्यापी विरोध के तहत प्रदर्शनकारी तमिलनाडु सरकार से भूविज्ञान और खनन विभाग की नई प्रक्रियाओं को वापस लेने की मांग कर रहे हैं. इस हड़ताल ने निर्माण सामग्री की कीमतों में उछाल और सरकारी परियोजनाओं के रुकने को लेकर चिंता बढ़ा दी है.
हड़ताल की वजह खदान और क्रशर मालिकों की 24 सूत्री मांगें हैं, जिनमें नए लगाए गए लघु खनिज भूमि कर को रद्द करना, हाल ही में लागू करों को वापस लेना और पुरानी क्यूबिक मीटर माप प्रणाली को बहाल करना शामिल है.
मालिकों का कहना है कि नई नीतियां और कर उनके व्यवसाय को नुकसान पहुंचा रहे हैं, जिससे खनन और क्रशर उद्योग पर संकट मंडरा रहा है.
प्रदर्शन के तहत तिरुपुर जिले के पल्लदम के पास करनमपेट्टई, कोडंगीपलायम, इचीपट्टी और वेलमपलायम जैसे प्रमुख क्षेत्रों में खदान और क्रशर इकाइयां पूरी तरह बंद हैं. इन क्षेत्रों में सैकड़ों इकाइयों ने कामकाज रोक दिया है, जिससे कच्चे माल की आपूर्ति पर गंभीर असर पड़ा है. हड़ताल के कारण जिले में कई सरकारी और निजी निर्माण परियोजनाएं रुक गई हैं. कुछ क्षेत्रों में सामग्री का सीमित स्टॉक बचा है, लेकिन अधिकांश परियोजनाएं निलंबित हो चुकी हैं.
इस हड़ताल का असर निर्माण सामग्री की कीमतों पर भी पड़ने की आशंका है. विशेषज्ञों का मानना है कि लंबे समय तक हड़ताल जारी रहने से रेत, बजरी और अन्य सामग्रियों की कीमतें बढ़ सकती हैं, जिससे निर्माण लागत में इजाफा होगा. इसके अलावा, हड़ताल से सरकार को प्रतिदिन लगभग 40 करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान हो रहा है.
हड़ताल का सबसे बड़ा प्रभाव हजारों श्रमिकों की आजीविका पर पड़ा है. खदान और क्रशर इकाइयों के बंद होने से सैकड़ों श्रमिक बेरोजगार हो गए हैं, जिससे उनके परिवारों के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया है. स्थानीय श्रमिक यूनियनों ने भी सरकार से इस मुद्दे पर तुरंत हस्तक्षेप की मांग की है.
खदान और क्रशर मालिकों ने सरकार से तत्काल बातचीत शुरू करने का आग्रह किया है. उनका कहना है कि यदि उनकी मांगें नहीं मानी गईं, तो वे अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जा सकते हैं, जिससे स्थिति और गंभीर हो सकती है.
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एकेएस/डीएससी
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