महाराष्ट्र की राजनीति में शनिवार को कुछ ऐसा देखने को मिला, जिसने भाषा के सवाल को एक भावनात्मक और एकजुट आवाज़ दे दी। सालों की राजनीतिक दूरियों को किनारे रखकर राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे एक मंच पर आए और एक-दूसरे को गले लगाकर एकता का संदेश दिया। इस भावुक लम्हे में भाषाई सम्मान की भावना साफ झलक रही थी।இந்தித் திணிப்பை முறியடிக்க திராவிட முன்னேற்றக் கழகமும், தமிழ்நாட்டு மக்களும் தலைமுறை தலைமுறையாக நடத்திவரும் மொழி உரிமைப் போர், மாநில எல்லைகளைக் கடந்து இப்போது மராட்டியத்தில் போராட்டச் சூறாவளியாகச் சுழன்றடித்துக் கொண்டிருக்கிறது.
— M.K.Stalin (@mkstalin) July 5, 2025
தமிழ்நாட்டுப் பள்ளிகளில் மூன்றாவது மொழியாக…
मुंबई में आयोजित ‘वॉयस ऑफ मराठी’ रैली, महाराष्ट्र सरकार की तीन-भाषा नीति को वापस लेने की घोषणा के स्वागत में आयोजित की गई थी। इस मौके पर ठाकरे बंधुओं ने साफ किया कि मराठी की गरिमा और प्राथमिकता से कोई समझौता नहीं हो सकता। हिंदी किसी पर थोपी नहीं जानी चाहिए – यही उनका साझा मत था।
तमिलनाडु से भी गूंजा समर्थन
इस दृश्य से प्रभावित होकर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन भी भावुक प्रतिक्रिया देने से खुद को रोक नहीं सके। उन्होंने कहा, "यह शुरुआत बहुत उम्मीद जगाने वाली है। क्षेत्रीय भाषाओं की रक्षा अब सिर्फ एक राज्य की चिंता नहीं रही, यह आंदोलन अब सीमाओं को पार कर रहा है।"
स्टालिन ने इस रैली पर प्रतिक्रिया देते हुए X (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा – "तमिलनाडु की जनता और DMK पीढ़ियों से हिंदी थोपे जाने के खिलाफ संघर्ष करती आई है। अब यह संघर्ष महाराष्ट्र तक पहुंच गया है, जो बताता है कि भारत की भाषाई विविधता को दबाना आसान नहीं।"
तीन-भाषा नीति पर क्यों है विरोध?
इस नीति के अनुसार, छात्रों को तीन भाषाएं सीखनी होती हैं, जिनमें एक हिंदी भी हो सकती है। लेकिन तमिलनाडु में लंबे समय से दो-भाषा प्रणाली (तमिल और अंग्रेज़ी) ही लागू है। स्टालिन का कहना है कि तमिल मेरी मातृभाषा है, इसे पीछे धकेलने की कोशिश हमें कभी मंज़ूर नहीं।
भाषा के सम्मान की लड़ाई अब राष्ट्रीय बहस बनी
जब ठाकरे बंधु मंच पर साथ आए, तो केवल राजनीति नहीं बदली – बल्कि मराठी अस्मिता की एकजुट आवाज़ देशभर में गूंजी। और जब स्टालिन जैसे द्रविड़ नेता उसमें अपना समर्थन जोड़ते हैं, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि अब यह सिर्फ भाषाओं की लड़ाई नहीं, यह पहचान और सम्मान की लड़ाई बन चुकी है।
देश की विविध भाषाएं हमारी आत्मा की तरह हैं, और इन्हें थोपना नहीं, सम्मान देना ही भारत की एकता का आधार हो सकता है। शनिवार की ये रैली भावनाओं, संस्कृति और भाषाई स्वाभिमान की एक मिसाल बन गई है।
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