पश्चिम बंगाल में अगले विधानसभा चुनाव की घोषणा भले ही अभी कुछ महीनों बाद होनी हो, लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने पहले ही राज्य की सियासी ज़मीन तैयार करनी शुरू कर दी है। पार्टी ने इस बार पश्चिम बंगाल को लेकर अपनी रणनीति को तीन स्तरों पर विभाजित कर लागू करना शुरू किया है। इस पूरी कवायद में भाजपा को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी आरएसएस का भी समर्थन मिल रहा है, जो जमीनी स्तर पर पार्टी के लिए वातावरण बनाने में जुटा है।
जमीनी रणनीति पर काम शुरू
भाजपा ने पश्चिम बंगाल में ग्रामीण इलाकों से लेकर सीमावर्ती क्षेत्रों तक अपनी पहुंच को और अधिक मजबूत करने का निर्णय लिया है। पार्टी का मानना है कि सत्ता में आने के लिए ज़मीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं की मजबूत पकड़ और जनसंपर्क बेहद जरूरी है। इसी को ध्यान में रखते हुए तीन-स्तरीय रणनीति अपनाई गई है, जिसमें आरएसएस के स्वयंसेवक, स्थानीय जनमत निर्माताओं और पार्टी के बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं को समन्वित रूप से मैदान में उतारा गया है। ये सभी मिलकर बिना किसी शोरगुल या प्रचार के लोगों के बीच जाकर मौजूदा सरकार के खिलाफ असंतोष को स्वर देने का प्रयास कर रहे हैं।
भाजपा का बढ़ता प्रभाव और इतिहास
बीते वर्षों में भारतीय जनता पार्टी ने पश्चिम बंगाल की राजनीति में जो मुकाम हासिल किया है, वह किसी भी राष्ट्रीय पार्टी के लिए एक मिसाल के तौर पर देखा जा सकता है। वामपंथी दलों और कांग्रेस को लगभग सियासी धरातल से बाहर कर चुकी भाजपा अब सीधे तौर पर तृणमूल कांग्रेस और ममता बनर्जी को टक्कर दे रही है। 2021 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने जहां पिछली बार केवल तीन सीटें जीती थीं, वहीं इस बार पार्टी ने 77 सीटों पर कब्जा जमाकर विपक्ष के तौर पर खुद को स्थापित कर लिया था। हालांकि उस चुनाव में ममता बनर्जी ने भारी जीत हासिल कर सत्ता में वापसी की थी, लेकिन भाजपा ने भी अपनी राजनीतिक मौजूदगी को मजबूती से दर्ज कराया था।
गांव-गांव तक पहुंच की रणनीति
भाजपा इस बार कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती। संगठन को मजबूत करने के लिए केंद्रीय नेतृत्व ने एक बार फिर सुनील बंसल जैसे अनुभवी संगठनकर्ता को बड़ी जिम्मेदारी दी है, जिन्हें उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों में पार्टी को ज़मीनी मजबूती देने के लिए जाना जाता है। सुनील बंसल के मार्गदर्शन में भाजपा ने हर विधानसभा क्षेत्र में "जनमत निर्माता" यानी स्थानीय प्रभावशाली लोगों की एक टोली तैयार की है जो मतदाताओं के मन को टटोलने और उन्हें भाजपा के पक्ष में करने का कार्य करेगी।
पार्टी के एक वरिष्ठ नेता के अनुसार, वर्तमान में पश्चिम बंगाल में घुसपैठ, कानून व्यवस्था और प्रशासनिक भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों को लेकर जनता में व्यापक असंतोष है। इसके अलावा तृणमूल कांग्रेस की सरकार के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी भी बढ़ रही है। बीजेपी अब इस असंतोष को एक संगठित चुनावी लहर में बदलने की कोशिश कर रही है। पार्टी का प्रयास है कि वह यह विश्वास लोगों के बीच बना सके कि ममता सरकार के विकल्प के रूप में केवल भाजपा ही एक सशक्त विकल्प है।
संघ की चुपचाप भूमिका
इस अभियान में आरएसएस की भूमिका भी महत्वपूर्ण है। संघ के कार्यकर्ता चुपचाप गाँव-गाँव में जाकर वैचारिक तौर पर जनता को तैयार कर रहे हैं। वे न तो भाजपा का झंडा लेकर प्रचार कर रहे हैं और न ही मंचीय भाषणों का सहारा ले रहे हैं। उनका उद्देश्य है लोगों को स्थायी और वैकल्पिक बदलाव के लिए प्रेरित करना।
भाजपा के लिए यह अभियान सिर्फ चुनाव जीतने की कवायद नहीं है, बल्कि एक दीर्घकालिक राजनीतिक बदलाव की ओर बढ़ता कदम भी है। बंगाल की राजनीति में जहां अब तक केवल एकतरफा सत्ता का दबदबा रहा है, वहीं बीजेपी अब इसे एक द्विध्रुवीय मुकाबले में बदलना चाहती है।
चुनाव में अब चाहे जितना भी समय बचा हो, लेकिन जिस प्रकार से बीजेपी ने पश्चिम बंगाल में अपनी तैयारियों को तेज किया है और आरएसएस का जिस तरह का सहयोग मिल रहा है, वह स्पष्ट संकेत देता है कि आगामी विधानसभा चुनाव केवल तृणमूल बनाम भाजपा की सीधी भिड़ंत होने वाली है।
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