भारत की आज़ादी की लड़ाई से जुड़ा एक अनदेखा अध्याय अब फिर से जीवंत होने जा रहा है। केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने घोषणा की है कि जोधपुर का ऐतिहासिक माचिया किला अब एक तीर्थस्थल के रूप में विकसित किया जाएगा। यह वही स्थान है, जहां 1942–43 के बीच अंग्रेजों ने स्वतंत्रता सेनानियों को कैद करके अमानवीय यातनाएँ दी थीं।तीन लाख पर्यटक हर साल आते हैं स्वतंत्रता संघर्ष के साक्षी इस किले को देखने!
— Gajendra Singh Shekhawat (@gssjodhpur) September 1, 2025
जोधपुर का माचिया सफारी पार्क स्थित ऐतिहासिक माचिया किले का अवलोकन किया। यह अमूल्य विरासत है जो स्वतंत्रता सेनानियों के संघर्ष और बलिदान का साक्षी रहा है। प्रतिवर्ष लगभग 3 लाख पर्यटक यहां आते हैं।… pic.twitter.com/f4q9UBrTIm
शेखावत का दौरा और बड़ी घोषणा
सोमवार को माचिया किले के निरीक्षण के दौरान शेखावत ने इसे बलिदान और संघर्ष का प्रतीक बताया। उन्होंने किले के भीतर बने कीर्ति स्तंभ के सामने नतमस्तक होकर श्रद्धांजलि दी और अधिकारियों के साथ मिलकर इसे राष्ट्रीय स्मारक के रूप में विकसित करने की रूपरेखा पर चर्चा की। मंत्री का कहना था कि इस जगह के हर पत्थर में आज़ादी की कुर्बानियों की गूंज है और इसे नई पहचान दिलाना सरकार की प्राथमिकता है।
माचिया किले की पृष्ठभूमि
जोधपुर शहर से लगभग 12 किलोमीटर दूर स्थित माचिया किला मूलतः एक शाही दुर्ग था। अंग्रेजों के शासनकाल में इसे जेल में बदल दिया गया। आज़ादी के आंदोलन के दौरान यहां दर्जनों क्रांतिकारियों को लाया गया, जिन्हें महीनों तक यातनाएं झेलनी पड़ीं। दस्तावेज़ बताते हैं कि जोधपुर की जेल से करीब 30–32 स्वतंत्रता सेनानियों को माचिया किले में स्थानांतरित किया गया था। यहां 8 महीने तक उन्हें असहनीय पीड़ा दी गई। कई वीरों ने प्राण त्याग दिए, जबकि कुछ को काला पानी की सजा सुनाई गई।
बंदिशें और पीड़ा की कहानियाँ
कैद के दिनों में इन क्रांतिकारियों को अपने परिवार से मिलने की अनुमति लगभग नामुमकिन थी। यदि मुलाकात होती भी, तो केवल एक छोटी सी खिड़की से 10 फीट की दूरी बनाकर। यह व्यवस्था भी अंग्रेजों की क्रूरता का हिस्सा थी। शेखावत ने जोर देकर कहा कि इस दर्दनाक अतीत को संरक्षित करना और उसकी गवाही आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है।
पर्यटन और राष्ट्रीय महत्व
वर्तमान में, माचिया किले में हर साल लगभग तीन लाख पर्यटक आते हैं। लेकिन आम जनता के लिए इसके दरवाजे सिर्फ दो मौकों पर खुलते हैं—15 अगस्त (स्वतंत्रता दिवस) और 26 जनवरी (गणतंत्र दिवस)। सरकार की नई योजना इसे नियमित रूप से खोलने और राष्ट्रीय तीर्थस्थल का स्वरूप देने की है। इसके साथ ही, यहां आने वाले आगंतुकों के लिए बुनियादी सुविधाओं का भी विकास किया जाएगा।
देश-विदेश के पर्यटकों को मिलेगा आकर्षण
माचिया किले को जब राष्ट्रीय स्मारक का दर्जा मिलेगा, तो यह न केवल देशभर से बल्कि विदेशों से भी पर्यटकों को खींचेगा। यहां का ऐतिहासिक महत्व और स्वतंत्रता संग्राम की कहानियाँ इसे ऐसा स्थल बना देंगी, जिसे देखे बिना भारत यात्रा अधूरी मानी जाएगी।
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