आजकल बढ़ती अर्थव्यवस्था की खूब चर्चा है- प्रधानमंत्री विदेशों में और वित्त मंत्री देश में भी चर्चा कर रही हैं। इन सब चर्चाओं के बीच, केंद्र सरकार के सांख्यिकी मंत्रालय ने एक रिपोर्ट प्रकाशित कर बताया है कि देश की आबादी में पोषण का स्तर कम हो रहा है। प्रधानमंत्री मोदी के विकसित भारत का यह पहला पड़ाव है। यही नहीं, इस रिपोर्ट से यह भी स्पष्ट है कि पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह के कार्यकाल में देश में, विशेष तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में, पोषण का स्तर तेजी से बढ़ा था।
सांख्यिकी मंत्रालय की रिपोर्ट संख्या 594, न्यूट्रीशनल इनटेक इन इंडिया 2022-23 और 2023-24, से एक आश्चर्यजनक तथ्य भी उजागर होता है- बिहार में पोषण का स्तर देश के अन्य राज्यों की तुलना में सबसे अधिक है। जाहिर है, बिहार के चूड़ा, सत्तू, लिट्टी-चोखा और दूसरे स्थानीय व्यंजनों का पोषण स्तर सबसे अधिक है।
वर्ष 2009-2010 में ग्रामीण क्षेत्रों में लोग खाने के साथ 2147 किलोकैलोरी का अपग्रहण करते थे, यह वर्ष 2011-2012 तक 2233 किलोकैलोरी तक पहुंच गया। इस रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2011-12 से वर्ष 2022-23 के बीच कैलोरी के संदर्भ में पोषण में कोई अंतर नहीं आया, और फिर 2023-24 में यह घटकर 2212 किलोकैलोरी ही रह गया। इस पूरी अवधि में शहरी क्षेत्रों की स्थिति कुछ बेहतर रही। शहरी क्षेत्रों में वर्ष 2009-10 में औसत कैलोरी अपग्रहण 2133 किलोकैलोरी था, जो वर्ष 2011-12 में 2206, वर्ष 2022-23 में 2250 और वर्ष 2023-24 में घट कर 2240 किलोकैलोरी तक रह गया।
हमारे प्रधानमंत्री लगातार उत्तर प्रदेश और गुजरात को विकास का पैमाना बताते हैं। गुजरात में वर्ष 2022-23 में ग्रामीण क्षेत्रों में कैलोरी अपग्रहण 2165 किलोकैलोरी प्रति व्यक्ति प्रतिदिन था जो वर्ष 2023-24 में महज 2105 किलोकैलोरी रह गया, हालांकि शहरी क्षेत्रों में इन दोनों वर्षों में कैलोरी अपग्रहण क्रमशः 2304 और 2310 किलोकैलोरी रहा।
मोदी-योगी के डबल इंजन वाले प्रदेश, उत्तर प्रदेश में वर्ष 2009-10 में ग्रामीण क्षेत्रों में कैलोरी अपग्रहण 2181 किलोकैलोरी प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन था, जो वर्ष 2011-12 तक छलांग लगाकर 2548 किलो कैलोरी तक पहुंचा। इसके बाद वर्ष 2022-23 तक यह गिरकर 2118 किलो कैलोरी तक पहुंच गया और फिर वर्ष 2023-24 में 2086 किलोकैलोरी तक पहुंच गया। उत्तर प्रदेश के शहरी क्षेत्रों में भी यही हाल रहा- इन चारों वर्षों में कैलोरी अपग्रहण क्रमशः 2072, 2363, 2084 और 2080 किलोकैलोरी प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन रहा।
देश में घटता पोषण स्तर बताने के लिए तमाम सरकारी रिपोर्टें मौजूद हैं, बस विकास का राग अलापते मीडिया को कुछ नजर नहीं आता। महिलाओं में पोषण से जुड़ी समस्या, खून की कमी, अनेमिया, पर पिछले कुछ दशकों से चर्चा की जा रही है, पर मोदी सरकार में पहले से अधिक महिलाएं इसका शिकार हो रही हैं। सांख्यिकी मंत्रालय की ही दूसरी रिपोर्ट, वुमन एंड मेन इन इंडिया 2022 नामक रिपोर्ट में अनेमिया से संबंधित वर्ष 2015-16 में आयोजित राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 4 और वर्ष 2019-21 के बीच किए गए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 5 के आँकड़े साथ-साथ दिए गए हैं।
इन आंकड़ों के अनुसार 2015-16 में 53.1 प्रतिशत महिलाएं अनेमिया का शिकार थीं, पर वर्ष 2019-21 तक इनकी संख्या 57 प्रतिशत तक पहुंच गई। वर्ष 2015-16 में गर्भवती महिलाओं में से 50.4 प्रतिशत महिलाएं अनेमिया से पीड़ित थीं, जबकि वर्ष 2019-21 तक इनकी संख्या 52.2 प्रतिशत तक पहुंच गई। यदि आप बीजेपी शासित राज्यों की स्थिति देखें तो फिर यह अंतर और भी बड़ा नजर आता है। गुजरात में वर्ष 2015-16 में कुल महिलाओं में से 54.9 प्रतिशत और गर्भवती महिलाओं में से 51.3 प्रतिशत महिलाएं अनेमिया की चपेट में थीं, जबकि वर्ष 2019-21 तक कुल महिलाओं में 65 प्रतिशत और गर्भवती महिलाओं में से 62.6 प्रतिशत में यह समस्या थी। लंबे समय तक केंद्र सरकार के नियंत्रण में रहे जम्मू और कश्मीर में वर्ष 2015-16 में महज 48.9 प्रतिशत महिलाएं अनेमिया का शिकार थीं पर वर्ष 2019-21 तक यह संख्या 65.9 प्रतिशत तक पहुँच गई।
वर्ष 2022-23 के आंकड़ों के अनुसार कैलोरी के संदर्भ में पोषण के संदर्भ में सबसे आगे बिहार और सबसे पीछे केरल था। इससे इतना तो स्पष्ट होता है कि पोषण का स्तर समृद्धि, शिक्षा और विकास से परे है। वर्ष 2022-23 में बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में कैलोरी अपग्रहण 2432 किलोकैलोरी और शहरी क्षेत्रों में 2461 किलोकैलोरी था। इसकी तुलना में केरल के ग्रामीण क्षेत्रों में यह 2022 किलोकैलोरी और शहरी क्षेत्रों में 2010 किलोकैलोरी था। वर्ष 2023-24 में स्थितियाँ थोड़ी बदलीं- ग्रामीण क्षेत्रों में राजस्थान में सबसे अधिक कैलोरी अपग्रहण 2403 किलोकैलोरी और झारखंड में सबसे कम 2056 किलोकैलोरी प्रतिदिन प्रतिव्यक्ति रहा। शहरी क्षेत्रों में सबसे आगे 2455 किलोकैलोरी के साथ तेलंगाना और सबसे नीचे 2030 किलोकैलोरी के साथ उत्तर प्रदेश रहा।
देश की गरीबी और साथ ही भुखमरी का मंजर तो ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2024 में भी नजर आता है। आयरलैंड की संस्था कन्सर्न वर्ल्डवाइड और जर्मनी की संस्था वेल्थहंगरलाइफ द्वारा संयुक्त तौर पर तैयार किए गए इस इंडेक्स में भारत को कुल 27.3 अंक दिए गए है, जो गंभीर भुखमरी की श्रेणी को दर्शाता है। कुल 127 देशों के इस इंडेक्स में स्वघोषित विश्वगुरु भारत 105 वें स्थान पर है। हमारे पड़ोसी देशों में से केवल पाकिस्तान और अफगानिस्तान ही हमसे भी पीछे हैं।
दुनिया के 42 देश ऐसे हैं जहां भुखमरी की स्थिति गंभीर है, जिसमें भारत भी एक है। इस इंडेक्स में अफगानिस्तान 116वें, पाकिस्तान 108वें, भारत 105वें, बांग्लादेश 84वें, म्यांमार 74वें, नेपाल 68वें और श्रीलंका 56वें स्थान पर है। चीन इंडेक्स में शीर्ष पर काबिज 22 देशों में शामिल है, जिनके अंक 5 से कम हैं। इस इंडेक्स में अंतिम 5 देश हैं– दक्षिण सूडान, बुरुंडी, सोमालिया, येमेन और चाड।
इंडेक्स में भारत को 27.3 अंक मिले हैं। देश की 13.7 प्रतिशत आबादी कुपोषित है, 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में से 35.5 प्रतिशत की ऊंचाई और 18.7 प्रतिशत का भार सामान्य से कम है, देश में 2.9 प्रतिशत शिशु अपना 5वां जन्मदिन भी नहीं देख पाते। देश में वर्ष 2008 में 35.2 प्रतिशत आबादी भुखमरी की चपेट में थी, वर्ष 2016 तक इस आबादी में से 6 प्रतिशत आबादी बाहर हो गई और 29.3 प्रतिशत आबादी भुखमरी के दायरे में रह गई।
इस अवधि के अधिकतर समय में मनमोहन सिंह की सरकार थी, जिसे नरेंद्र मोदी लगातार देश की बर्बादी का काल बताते हैं। वर्ष 2016 से वर्ष 2024 के बीच मोदी सरकार तमाम खोखले दावों और हरेक तरफ फैले विज्ञापनों के बाद भी भुखमरी से जूझती आबादी को 29.2 प्रतिशत से 27.3 प्रतिशत तक ही पहुंचा पाई।
देश की तथाकथित कट्टर राष्ट्रवादी सत्ता और सत्ता की रखवाली करता मीडिया एक दिन पूरी आबादी को कुपोषण और भूख के चक्रव्यूह में उलझा देगा और हम विकास, बड़ी अर्थव्यवस्था और हिन्दू-मुस्लिम के सपनों में खोए रहेंगे।
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