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ऑपरेशन सिंदूर के बाद अमेरिका से हथियार के सौदे में आई तेजी, ट्रंप के पाकिस्तान 'प्रेम' के बीच बदलाव का पूरा सीन समझिए

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नई दिल्ली: भारत और अमेरिका के बीच रक्षा मामलों में खरीद पर बातचीत अहम मोड़ पर आ गई है। ऑपरेशन सिंदूर के बाद यह बदलाव आया है। पाकिस्तान के पास चीन के आधुनिक हथियार हैं। चार दिन तक चली लड़ाई के बाद इन हथियारों की तादाद और भी बढ़ने तय हैं। इसे देखते हुए भारत अपने हथियार सप्लायरों के साथ तेजी से काम कर रहा है। अमेरिका इसमें सबसे महत्वपूर्ण है। इस मामले में भारत, पाकिस्तान से हर हाल में आगे रहना चाहता है। साथ ही, वह चीन के सैन्य सिस्टम का भी मुकाबला करना चाहता है। अमेरिका से कुछ जरूरी हथियार खरीदने की मंजूरी का इंतजार है। भारत को जल्दी से नए हथियारों की जरूरत है। पाकिस्तान के साथ हुई लड़ाई से पता चला है कि अमेरिका भविष्य में हथियारों का एक जरूरी सप्लायर बन सकता है।



भारत को जीपीएस से चलने वाली मिसाइलों की जरूरत

ऑपरेशन सिंदूर के पहले दिन नौ आतंकी ठिकानों पर हमला किया गया। इनमें से सात ठिकाने एक्सकैलिबर मिसाइलों से तबाह हुए। ये मिसाइलें M777 155 mm हल्की तोपों से दागी गईं। भारत को ऐसी और जीपीएस से चलने वाली मिसाइलें चाहिए। ये मिसाइलें 40 किलोमीटर दूर तक 15-20 मीटर की सटीकता से निशाना लगा सकती हैं। जीपीएस एक ऐसा सिस्टम है, जो सैटेलाइट से चलता है और जगह बताता है।

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जैवलिन मिसाइलों को लेकर भी एक बड़े सौदे पर बात

भारत ने अमेरिका से तुरंत जैवलिन एंटी-टैंक मिसाइलें खरीदने की बात भी की है। इसके अलावा, जैवलिन मिसाइलों का एक बड़ा सौदा पहले से ही चल रहा है। इसका जिक्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान भारत-अमेरिका के संयुक्त बयान में भी हुआ था। भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौते पर बातचीत चल रही है। इसके साथ ही, रक्षा मामलों पर भी काफी बातचीत हो रही है। भारत चाहता है कि उसे जल्दी से हथियार मिलें। पेंटागन ने भारत को भरोसा दिलाया है कि अमेरिका तुरंत हथियार देने पर विचार करेगा।



P8I समुद्री गश्ती विमान खरीदने में हो सकती है मुश्किल

हालांकि, भारत को छह P8I समुद्री गश्ती विमान खरीदने में थोड़ी मुश्किल हो सकती है। अमेरिका ने इनकी कीमत 50% तक बढ़ा दी है। अमेरिका का कहना है कि सप्लाई चेन की लागत बढ़ गई है। वाशिंगटन कीमत कम करने को तैयार नहीं है। इसलिए, भारत को या तो अधिक पैसे देने होंगे या सिर्फ पांच विमान खरीदने होंगे। यह फैसला इस बात पर निर्भर करेगा कि अमेरिका भारत की जरूरी हथियारों की मांग पर कितनी जल्दी कार्रवाई करता है।



हथियारों की सप्लाई में नीतिगत बदलाव चाहता है भारत

भारत कुछ जरूरी नीतिगत बदलावों पर भी बात करना चाहता है। ये बदलाव फरवरी में तय हुए थे। इनमें हथियारों के ट्रांसफर के नियमों को मिलाना शामिल है। खासकर, इंटरनेशनल ट्रैफिक इन आर्म्स रेगुलेशंस में बदलाव करना और एक रेसिप्रोकल डिफेंस प्रोक्योरमेंट एग्रीमेंट पर काम करना शामिल है। अगर ये बदलाव होते हैं, तो भारत को एक अलग श्रेणी में रखा जाएगा। इससे मंजूरी मिलने में आसानी होगी और भारत को अमेरिकी टेक्नोलॉजी तक अधिक पहुंच मिलेगी। साथ ही, अमेरिका से मिलने वाले रक्षा सिस्टम की मरम्मत और रखरखाव भारत में ही हो सकेगा।



हाई-एल्टीट्यूड लॉन्ग एंड्योरेंस MQ9B प्रीडेटर ड्रोन भी जरूरी

यह बात साफ होती जा रही है कि रूस के S400 जैसे हथियार अच्छा काम कर रहे हैं। लेकिन, रूस चीन पर निर्भर है। इसलिए, भारत को अमेरिका के साथ सप्लाई चेन को भी मजबूत करके रखना होगा। चीन के साथ उत्तरी सीमाओं पर हुई झड़प में अमेरिका में बने हाई-एल्टीट्यूड लॉन्ग एंड्योरेंस MQ9B प्रीडेटर ड्रोन काफी उपयोगी साबित हुए थे। नौसेना के पास पहले से ही ये ड्रोन लीज पर थे। अमेरिका ने भारत को चीन की सीमा पर निगरानी रखने के लिए तुरंत इन्हें तैनात करने की इजाजत दी। इसके बाद, भारत ने 31 MQ9B प्रीडेटर ड्रोन खरीदने का फैसला किया। यह प्रस्ताव लंबे समय से लंबित था।



"भारत और अमेरिका के बीच रक्षा सहयोग के बढ़ते संबंधों को देखते हुए, क्या आप मानते हैं कि यह भारत की सुरक्षा आवश्यकताओं को पूरा करने और क्षेत्रीय शांति बनाए रखने में सहायक होगा? अपनी राय हिंदी या अंग्रेजी में कमेंट बॉक्स में ज़रूर शेयर करें! लॉग इन करें और अपनी बात रखें।

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