नई दिल्ली: हिंदू मैरिज एक्ट (HMA) के तहत सप्तपदी की रस्म को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट ने बहुत ही बड़ा और दूरगामी फैसला सुनाया है। अदालत ने कहा कि अगर किसी हिंदू विवाह में सप्तपदी (सात फेरे) की रस्म पूरी न भी हुई हो, फिर भी वह विवाह अमान्य नहीं होगा। बता दें कि हिंदू रीति के तहत शादी के लिए सात फेरे को सबसे महत्वपूर्ण रिवाज माना जाता रहा है, लेकिन अदालत ने कह दिया है कि अगर किसी वजह से यह रस्म पूरी नहीं की गई, तो भी हिंदू मैरिज एक्ट के तहत यह शादी वैध मानी जाएगी।
महिला की दलील पर कोर्ट की मुहर
बार एंड बेंच की एक रिपोर्ट के अनुसार यह फैसला दिल्ली हाई कोर्ट की जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की बेंच ने सुनाया है। दरअसल, इस मामले में एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी की तलाक याचिका को यह कहकर रद्द करने की दलील दी थी कि, वे अनुसूचित जनजाति (बंजारा समुदाय- लंबाडा) से हैं, ऐसे में हिंदू मैरिज एक्ट (HMA) का प्रावधान उनके केस पर लागू नहीं होता। लेकिन, अदालत ने यह आपत्ति खारिज कर दी।
'बंजारा हिंदू व्यवस्था को अपना चुके'
अदालत ने कहा है कि बंजारा समुदाय अब काफी हद तक हिंदू बन गया है और हिंदू रीति-रिवाजों के साथ संपन्न हुई बंजारा शादी भी हिंदू मैरिज एक्ट के दायरे में आती है। इसी आधार पर हाई कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के 2024 के उस आदेश को बरकरार रखा, जिसमें कहा गया था कि एक बंजारा महिला की ओर से दायर तलाक याचिका भी हिंदू विवाह अधिनियम के तहत ही सुनवाई योग्य है। दिल्ली हाई कोर्ट ने महिला की ओर से विशेष साहित्यों और एथ्नोग्राफिक अध्ययनों के हवाले पर भरोसा करते हुए कहा कि हालांकि ऐतिहासिक रूप से बंजारा समुदाय अनुसूचित जनजाति (ST) है, लेकिन इसने धीरे-धीरे हिंदू प्रक्रियाओं को अपना लिया है। इस समुदाय के वैवाहिक कार्यक्रमों में हिंदू रीति-रिवाज शामिल कर लिए गए हैं और तथ्य यह है कि लंबाडा हिंदू व्यवस्था के हिस्सा हो चुके हैं।
सप्तपदी वाली दलील भी नहीं चली
इसी केस में HT की एक रिपोर्ट के अनुसार इस दंपति की शादी 1998 में हुई थी और उनका एक बच्चा भी है। पति की ओर से हाई कोर्ट में यह दलील भी दी गई कि उनकी शादी लंबाडा परंपरा के अनुसार हुई, जिसमें सप्तपदी (सात फेरे) की प्रक्रिया पूर नहीं हुई, इसलिए इसमें हिंदू विवाह अधिनियम लागू नहीं होता। लेकिन, अदालत ने इस दलील को भी ठुकरा दिया।
सात फेरे के बिना भी 'हम तेरे'
पहले फैमिली कोर्ट ने भी इन दलीलों को खारिज कर दिया था और अब दिल्ली हाई कोर्ट ने भी याचिका ठुकराते हुए कहा है,'यह एक पक्का कानून है कि अधिनियम (हिंदू विवाह अधिनियम) सप्तपदी को कानूनी मान्यता देता है। लेकिन, यह प्रत्येक हिंदू विवाह को मान्य कराने के लिए आवश्यक नहीं है। अगर सप्तपदी के होने का सीधा सबूत न भी मिले, तो भी शादी को वैध माना जाएगा।' इस मामले में महिला ने सप्तसदी समेत सारे हिंदू वैवाहिक रीति-रिवाज पूरे किए जाने का दावा किया था, लेकिन पति इस बात पर अड़ा रहा कि सात फेरे की रस्म पूरे नहीं किए गए थे और न ही उसके कोई सबूत हैं।
महिला की दलील पर कोर्ट की मुहर
बार एंड बेंच की एक रिपोर्ट के अनुसार यह फैसला दिल्ली हाई कोर्ट की जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की बेंच ने सुनाया है। दरअसल, इस मामले में एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी की तलाक याचिका को यह कहकर रद्द करने की दलील दी थी कि, वे अनुसूचित जनजाति (बंजारा समुदाय- लंबाडा) से हैं, ऐसे में हिंदू मैरिज एक्ट (HMA) का प्रावधान उनके केस पर लागू नहीं होता। लेकिन, अदालत ने यह आपत्ति खारिज कर दी।
'बंजारा हिंदू व्यवस्था को अपना चुके'
अदालत ने कहा है कि बंजारा समुदाय अब काफी हद तक हिंदू बन गया है और हिंदू रीति-रिवाजों के साथ संपन्न हुई बंजारा शादी भी हिंदू मैरिज एक्ट के दायरे में आती है। इसी आधार पर हाई कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के 2024 के उस आदेश को बरकरार रखा, जिसमें कहा गया था कि एक बंजारा महिला की ओर से दायर तलाक याचिका भी हिंदू विवाह अधिनियम के तहत ही सुनवाई योग्य है। दिल्ली हाई कोर्ट ने महिला की ओर से विशेष साहित्यों और एथ्नोग्राफिक अध्ययनों के हवाले पर भरोसा करते हुए कहा कि हालांकि ऐतिहासिक रूप से बंजारा समुदाय अनुसूचित जनजाति (ST) है, लेकिन इसने धीरे-धीरे हिंदू प्रक्रियाओं को अपना लिया है। इस समुदाय के वैवाहिक कार्यक्रमों में हिंदू रीति-रिवाज शामिल कर लिए गए हैं और तथ्य यह है कि लंबाडा हिंदू व्यवस्था के हिस्सा हो चुके हैं।
सप्तपदी वाली दलील भी नहीं चली
इसी केस में HT की एक रिपोर्ट के अनुसार इस दंपति की शादी 1998 में हुई थी और उनका एक बच्चा भी है। पति की ओर से हाई कोर्ट में यह दलील भी दी गई कि उनकी शादी लंबाडा परंपरा के अनुसार हुई, जिसमें सप्तपदी (सात फेरे) की प्रक्रिया पूर नहीं हुई, इसलिए इसमें हिंदू विवाह अधिनियम लागू नहीं होता। लेकिन, अदालत ने इस दलील को भी ठुकरा दिया।
सात फेरे के बिना भी 'हम तेरे'
पहले फैमिली कोर्ट ने भी इन दलीलों को खारिज कर दिया था और अब दिल्ली हाई कोर्ट ने भी याचिका ठुकराते हुए कहा है,'यह एक पक्का कानून है कि अधिनियम (हिंदू विवाह अधिनियम) सप्तपदी को कानूनी मान्यता देता है। लेकिन, यह प्रत्येक हिंदू विवाह को मान्य कराने के लिए आवश्यक नहीं है। अगर सप्तपदी के होने का सीधा सबूत न भी मिले, तो भी शादी को वैध माना जाएगा।' इस मामले में महिला ने सप्तसदी समेत सारे हिंदू वैवाहिक रीति-रिवाज पूरे किए जाने का दावा किया था, लेकिन पति इस बात पर अड़ा रहा कि सात फेरे की रस्म पूरे नहीं किए गए थे और न ही उसके कोई सबूत हैं।
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