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आखिर शिव मंदिर को लेकर क्यों आमने-सामने हैं थाईलैंड कंबोडिया, क्या है जगह की कहानी कितना पुराना है धार्मिक स्थल

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दुनियाभर में अभी हाल ऐसा हो गया है कि कोई भी देश किसी भी सीमा विवाद को लेकर जंग छेड़ दे रहा है। इस लिस्ट में थाईलैंड और कंबोडिया भी शामिल हो चुके हैं और इनके बीच तनाव की वजह है एक मंदिर। थाईलैंड और कंबोडिया के बीच विवाद का कारण सदियों पुराना एक शिव मंदिर है। 1962 में मंदिर के विवाद को लेकर इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस भी बीच में आया था, लेकिन फिर भी ये मामला सुलझ नहीं पाया।

मंदिर पर दोनों ही देश का दावा है और इसे लेकर हाल ही में दोनों देशों के सैनिकों के बीच झड़प चल रही है। ये मंदिर प्रीह विहियर यानी प्राचीन शिव मंदिर है। इसे थाई भाषा में फ्रा विहान कहते हैं। चलिए आपको बताते हैं, क्या है शिव मंदिर की कहानी और कितना है ये पुराना।
(All photo: wikimedia commons)

शिव मंदिर की सीमा पर क्यों चल रहा है विवाद? image

टीओआई की रिपोर्ट के अनुसार, 2008 में तनाव तब बढ़ गया जब कंबोडिया ने प्रीह विहार मंदिर को यूनेस्को द्वारा विश्व-धरोहर का देने की मांग उठाई। जुलाई 2008 में मंदिर को मान्यता मिलने के बाद सीमा क्षेत्र के नजदीक कम्बोडियाई और थाई सैनिकों के बीच सैन्य झड़प शुरू हो गईं। ये लड़ाई सालों तक चलीं और 2011 में चरम सीमा पर पहुंच गई।

उस साल अप्रैल में लड़ाई के चरम पर होने की वजह से 36,000 लोग अलग-थलग हो गए। करीबन इसी समय, कंबोडिया 1962 के फैसले को मजबूत करवाने के लिए फिर से इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में गया। अदालत ने दो साल बाद अपने पिछले फैसले पर फिर से पुष्टि की, जिसके बाद आज भी थाईलैंड इस फैसले को मन से स्वीकार नहीं कर सका है।




कहां स्थित है ये मंदिर image

प्रीह विहियर मंदिर थाईलैंड और कंबोडिया की सीमा पर डोंगरेक पहाड़ियों की चोटी पर मौजूद है। इस मंदिर में 5 मुख्य प्रवेश द्वार हैं, जो सीढ़ियों और गलियारों से जुड़े हैं। मंदिर के प्रवेश द्वार पर शिव का वाहन नंदी की प्रतिमा स्थापित है। मंदिर जाने का मुख्य रास्ता थाईलैंड की ओर से है लेकिन दो रास्ते ऐसे हैं जो पूर्वी और पश्चिम की ओर से कंबोडिया के शहरों से जुड़े हैं।




मंदिर का इतिहास image

कंबोडिया में स्थित प्रेह विहियार मंदिर आज के समय की दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों की सीमाओं से कहीं आगे है। यह मंदिर ज्यादातर 11वीं और 12वीं सदी के खमेर साम्राज्य के समय का है। आज के कंबोडियाई लोग खुद को 'खमेर' कहते हैं, क्योंकि वे उन्हीं प्राचीन खमेर लोगों के वंशज हैं। ये लोग 9वीं से 15वीं सदी तक पूरे मुख्य दक्षिण-पूर्वी एशिया (जिसमें आज का थाईलैंड, जिसे पहले स्याम कहा जाता था, भी शामिल है) पर राज करते थे और उन्होंने ही प्रसिद्ध अंगकोर वाट मंदिर समूह का निर्माण किया था।




भव्य सीढ़ीदार रास्ता जाता है थाईलैंड सीमा तक image

इसमें 5 क्रूस के आकार के गोपुरम (प्रवेश द्वार मंडप) बने हुए हैं, जो बेहद खूबसूरत नक्काशी से सजाए गए हैं। हर गोपुरम के बीच में करीब 275 मीटर तक फैला खुला मैदान है। पार्किंग से आपको पहाड़ी पर चढ़ना होगा, जहां सबसे उत्तर में स्थित गोपुरम V अब गिर चुका है और खंडहर में बदल चुका है। यहीं से एक भव्य सीढ़ीदार रास्ता नीचे थाईलैंड की सीमा की ओर जाता है।




मैदान से दिखता है कंबोडिया image

गोपुरा V से ढलान पर दक्षिण दिशा में चढ़ते हुए अगला मंडप जो सामने आता है, वह गोपुरा IV है। इसके दक्षिणी दरवाजे के ऊपर बने शिखर पर "समुद्र मंथन" की एक शुरुआती कलाकृति देखी जा सकती है, यही नजारा बाद में अंगकोर वाट में भव्य रूप से उकेरा गया था।

हालांकि, बीच में बना मंदिर अब सिर्फ पत्थरों का ढेर बनकर रह गया है। मंदिर के बाहर की चट्टान से आप कम्बोडिया के उत्तरी मैदानों का शानदार नजारा देख सकते हैं, और दूर आपको पवित्र पहाड़ी “फ्नोम कुलन” (487 मीटर ऊंची) दिखाई देगी। यह जगह पिकनिक मनाने के लिए बेहतरीन है।



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