नई दिल्ली: भारत दुर्लभ पृथ्वी तत्वों (REEs) के मामले में चीन के दबदबे को तोड़ने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। रेयर अर्थ एलिमेंट्स ऐसे खनिज हैं, जो दुनिया के ग्रीन और डिजिटल भविष्य के लिए बहुत जरूरी हैं। क्वाड देशों - भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया की मदद से भारत रेयर अर्थ मेटल्स की खोज, उत्पादन और प्रोसेसिंग को आगे बढ़ा सकता है। इससे भारत दुर्लभ खनिजों के मामले में आत्मनिर्भर बन सकेगा और उसकी अर्थव्यवस्था भी मजबूत होगी और इस मामले में चीन का एकाधिकार तोड़ने में भी सफलता मिलेगी।
कोयला खदानों के कचरे में मिल रहा रेयर अर्थ मेटल
CNBC-TV18 की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत दुर्लभ पृथ्वी तत्व की खोज में आगे बढ़ रहा है। भारत की कोयला खदानें इसमें मदद कर रही हैं। सरकार कोयला खदानों से निकलने वाले कचरे से रेयर अर्थ मेटल्स निकालने को बढ़ावा दे रही है। सरकारी सूत्रों के अनुसार, यह खोज सिर्फ मौजूदा खदानों तक ही सीमित नहीं है। इसे पेट्रोलियम सेक्टर और कम खोजे गए खनिज क्षेत्रों तक भी बढ़ाया जा रहा है। यह भारत के नेशनल क्रिटिकल मिनरल मिशन (NCMM) का हिस्सा है। इसका लक्ष्य इलेक्ट्रिक वाहन, रिन्यूएबल एनर्जी और आधुनिक रक्षा प्रणालियों के लिए जरूरी खनिजों के मामले में आत्मनिर्भर बनना है।
स्कैंडियम और स्ट्रोंटियम ने बढ़ाई भारत की उम्मीद
इस मामले में सिंगरेनी कोलियरीज कंपनी लिमिटेड (SCCL) को एक बड़ी सफलता मिली है। इसके चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर एन बलराम ने बताया कि सरकारी अध्ययनों से पता चला है कि तेलंगाना के सत्तुपल्ली और रामागुंडम की खुली खदानों से निकलने वाली हर 15 टन मिट्टी में 1 किलोग्राम स्कैंडियम और स्ट्रोंटियम जैसे कीमती खनिज पाए जाते हैं। इन खदानों से अगस्त 2025 से व्यावसायिक आपूर्ति शुरू होने की उम्मीद है। स्कैंडियम एक खास धातु है, जिसका इस्तेमाल हवाई जहाज के पार्ट्स, ईंधन सेल और स्पोर्ट्स के सामान बनाने में होता है। वहीं, स्ट्रोंटियम का इस्तेमाल फेराइट मैग्नेट, दवा, सिरेमिक और इलेक्ट्रॉनिक्स में होता है।
निजी कंपनियां भी रेयर अर्थ मैग्नेट में देख रही हैं भविष्य
भारत की निजी कंपनियां भी रेयर अर्थ मैग्नेट के क्षेत्र में देश को आगे ले जाने की योजनाएं बना रही हैं। बिजनेस स्टैंडर्ड के अनुसार वेदांता हिंदुस्तान जिंक के माध्यम से नियोडिमियम का खनन और प्रोसेसिंग करने की योजना बना रही है। नियोडिमियम का इस्तेमाल इलेक्ट्रिक वाहनों, पवन टर्बाइन और आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक्स में इस्तेमाल होने वाले परमानेंट मैग्नेट बनाने में होता है। हालांकि, कंपनी का अनुमान है कि उत्पादन शुरू होने में पांच साल तक लग सकते हैं। लेकिन इसके सीईओ अरुण मिश्रा ने कहा है कि खोज और बुनियादी ढांचे का काम शुरू हो चुका है।
दुर्लभ पृथ्वी तत्वों पर क्वाड की पहल ने बढ़ाया हौसला
दरअसल, क्वाड देशों से भारत को खनिज सुरक्षा के लिए मदद मिलने की उम्मीद है। 1 जुलाई, 2025 को वाशिंगटन डीसी में क्वाड के विदेश मंत्रियों की बैठक में क्वाड क्रिटिकल मिनरल्स इनिशिएटिव शुरू किया गया है। इसका मकसद लिथियम, कोबाल्ट, निकल और दुर्लभ पृथ्वी तत्वों जैसे खनिजों के लिए सुरक्षित और मजबूत सप्लाई चेन तैयार करना है। इस बैठक में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर, अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो,ऑस्ट्रेलियाई विदेश मंत्री पेनी वोंग और जापानी विदेश मंत्री ताकेशी इवाया शामिल हुए थे।
रेयर अर्थ मेटल दुनिया के लिए क्यों जरूरी है?
आज के उद्योगों के लिए महत्वपूर्ण खनिज बहुत जरूरी हैं। दरअसल,जैसे-जैसे दुनिया की अर्थव्यवस्थाएं साफ ऊर्जा और डिजिटल तकनीक की ओर बढ़ रही हैं, इन खनिजों की मांग तेजी से बढ़ रही है। लेकिन, असली चुनौती सिर्फ सप्लाई की नहीं है, बल्कि निर्भरता की भी है। इनका इस्तेमाल इन निम्नलिखित चीजों में होता है:-
दुर्लभ पृथ्वी तत्वों में अभी चीन का है एकाधिकार
आज चीन दुनिया के लगभग 90% से दुर्लभ पृथ्वी तत्वों (REEs) की रिफाइनिंग और प्रोसेसिंग को कंट्रोल करता है, भले ही वह सारे कच्चे माल का खनन न करता हो। इससे बहुत ही कमजोर सिस्टम तैयार हो चुका है, जिसमें चीन की ओर से एक्सपोर्ट पर रोक लगाने, कीमतों में हेरफेर करने या भू-राजनीतिक तनाव से ग्लोबल सप्लाई चेन बाधित होती है। अमेरिका के साथ हालिया ट्रेड वॉर शुरू होने के बाद शी जिनपिंग की सरकार ने यही किया है, जिससे भारत समेत दुनिया भर के देशों में दुर्लभ पृथ्वी चुंबकों की सप्लाई चेन बिखर चुकी है और हाहाकार मचा हुआ है।
क्वाड दुर्लभ पृथ्वी तत्वों में कैसे मदद करेगा?
क्वाड का क्रिटिकल मिनरल इनिशिएटिव चीन के एकाधिकार की इसी समस्या को दूर करने पर ध्यान देता है। इसका मकसद है:-
क्वाड से भारत को दुर्लभ खनिजों में क्या फायदे होंगे?
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कोयला खदानों के कचरे में मिल रहा रेयर अर्थ मेटल
CNBC-TV18 की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत दुर्लभ पृथ्वी तत्व की खोज में आगे बढ़ रहा है। भारत की कोयला खदानें इसमें मदद कर रही हैं। सरकार कोयला खदानों से निकलने वाले कचरे से रेयर अर्थ मेटल्स निकालने को बढ़ावा दे रही है। सरकारी सूत्रों के अनुसार, यह खोज सिर्फ मौजूदा खदानों तक ही सीमित नहीं है। इसे पेट्रोलियम सेक्टर और कम खोजे गए खनिज क्षेत्रों तक भी बढ़ाया जा रहा है। यह भारत के नेशनल क्रिटिकल मिनरल मिशन (NCMM) का हिस्सा है। इसका लक्ष्य इलेक्ट्रिक वाहन, रिन्यूएबल एनर्जी और आधुनिक रक्षा प्रणालियों के लिए जरूरी खनिजों के मामले में आत्मनिर्भर बनना है।
स्कैंडियम और स्ट्रोंटियम ने बढ़ाई भारत की उम्मीद
इस मामले में सिंगरेनी कोलियरीज कंपनी लिमिटेड (SCCL) को एक बड़ी सफलता मिली है। इसके चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर एन बलराम ने बताया कि सरकारी अध्ययनों से पता चला है कि तेलंगाना के सत्तुपल्ली और रामागुंडम की खुली खदानों से निकलने वाली हर 15 टन मिट्टी में 1 किलोग्राम स्कैंडियम और स्ट्रोंटियम जैसे कीमती खनिज पाए जाते हैं। इन खदानों से अगस्त 2025 से व्यावसायिक आपूर्ति शुरू होने की उम्मीद है। स्कैंडियम एक खास धातु है, जिसका इस्तेमाल हवाई जहाज के पार्ट्स, ईंधन सेल और स्पोर्ट्स के सामान बनाने में होता है। वहीं, स्ट्रोंटियम का इस्तेमाल फेराइट मैग्नेट, दवा, सिरेमिक और इलेक्ट्रॉनिक्स में होता है।
निजी कंपनियां भी रेयर अर्थ मैग्नेट में देख रही हैं भविष्य
भारत की निजी कंपनियां भी रेयर अर्थ मैग्नेट के क्षेत्र में देश को आगे ले जाने की योजनाएं बना रही हैं। बिजनेस स्टैंडर्ड के अनुसार वेदांता हिंदुस्तान जिंक के माध्यम से नियोडिमियम का खनन और प्रोसेसिंग करने की योजना बना रही है। नियोडिमियम का इस्तेमाल इलेक्ट्रिक वाहनों, पवन टर्बाइन और आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक्स में इस्तेमाल होने वाले परमानेंट मैग्नेट बनाने में होता है। हालांकि, कंपनी का अनुमान है कि उत्पादन शुरू होने में पांच साल तक लग सकते हैं। लेकिन इसके सीईओ अरुण मिश्रा ने कहा है कि खोज और बुनियादी ढांचे का काम शुरू हो चुका है।
दुर्लभ पृथ्वी तत्वों पर क्वाड की पहल ने बढ़ाया हौसला
दरअसल, क्वाड देशों से भारत को खनिज सुरक्षा के लिए मदद मिलने की उम्मीद है। 1 जुलाई, 2025 को वाशिंगटन डीसी में क्वाड के विदेश मंत्रियों की बैठक में क्वाड क्रिटिकल मिनरल्स इनिशिएटिव शुरू किया गया है। इसका मकसद लिथियम, कोबाल्ट, निकल और दुर्लभ पृथ्वी तत्वों जैसे खनिजों के लिए सुरक्षित और मजबूत सप्लाई चेन तैयार करना है। इस बैठक में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर, अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो,ऑस्ट्रेलियाई विदेश मंत्री पेनी वोंग और जापानी विदेश मंत्री ताकेशी इवाया शामिल हुए थे।
रेयर अर्थ मेटल दुनिया के लिए क्यों जरूरी है?
आज के उद्योगों के लिए महत्वपूर्ण खनिज बहुत जरूरी हैं। दरअसल,जैसे-जैसे दुनिया की अर्थव्यवस्थाएं साफ ऊर्जा और डिजिटल तकनीक की ओर बढ़ रही हैं, इन खनिजों की मांग तेजी से बढ़ रही है। लेकिन, असली चुनौती सिर्फ सप्लाई की नहीं है, बल्कि निर्भरता की भी है। इनका इस्तेमाल इन निम्नलिखित चीजों में होता है:-
- इलेक्ट्रिक वाहन (EV) बैटरी
- सोलर पैनल और पवन टर्बाइन
- मोबाइल फोन और लैपटॉप
- एयरोस्पेस और रक्षा प्रणालियां
दुर्लभ पृथ्वी तत्वों में अभी चीन का है एकाधिकार
आज चीन दुनिया के लगभग 90% से दुर्लभ पृथ्वी तत्वों (REEs) की रिफाइनिंग और प्रोसेसिंग को कंट्रोल करता है, भले ही वह सारे कच्चे माल का खनन न करता हो। इससे बहुत ही कमजोर सिस्टम तैयार हो चुका है, जिसमें चीन की ओर से एक्सपोर्ट पर रोक लगाने, कीमतों में हेरफेर करने या भू-राजनीतिक तनाव से ग्लोबल सप्लाई चेन बाधित होती है। अमेरिका के साथ हालिया ट्रेड वॉर शुरू होने के बाद शी जिनपिंग की सरकार ने यही किया है, जिससे भारत समेत दुनिया भर के देशों में दुर्लभ पृथ्वी चुंबकों की सप्लाई चेन बिखर चुकी है और हाहाकार मचा हुआ है।
क्वाड दुर्लभ पृथ्वी तत्वों में कैसे मदद करेगा?
क्वाड का क्रिटिकल मिनरल इनिशिएटिव चीन के एकाधिकार की इसी समस्या को दूर करने पर ध्यान देता है। इसका मकसद है:-
- महत्वपूर्ण खनिज सप्लाई चेन को अलग-अलग देशों से जोड़ना और इसे सुरक्षित बनाना
- खनन, रिफाइनिंग और रीप्रोसेसिंग इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश बढ़ाना
- खनिजों के दोबारा इस्तेमाल के लिए ई-कचरे को बढ़ावा देना
- साझीदार देशों के बीच तकनीक के ट्रांसफर और नियमों को एक जैसा बनाना
- इंडो-पैसिफिक देशों में नए खनिज केंद्र बनने की क्षमता बढ़ाना
क्वाड से भारत को दुर्लभ खनिजों में क्या फायदे होंगे?
- आधुनिक रिफाइनिंग और प्रोसेसिंग तकनीक मिलेगी
- खनन क्षेत्र के लिए निवेश और इंफ्रास्ट्रक्चर सपोर्ट मिलेगा
- अलग-अलग खनिज व्यापार मार्ग मिलेंगे, जो भू-राजनीतिक रुकावटों से बचाएंगे
- खनिज विज्ञान में कौशल विकास और तकनीकी ट्रेनिंग के लिए पार्टनरशिप होगी
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