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क्या एक बार फिर भारत और चीन आ रहे करीब, हाल के घटनाक्रम से समझिए

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नई दिल्लीः भारत ने चीनी नागरिकों के लिए टूरिस्ट देना शुरू कर दिया है। यह कदम गलवान घाटी में सैन्य झड़प के बाद प्रभावित हुए द्विपक्षीय संबंधों को सुधारने के लिए उठाया गया है। भारत ने 2020 में मुख्य तौर पर कोविड-19 महामारी के कारण चीनी नागरिकों को टूरिस्ट वीजा जारी करना स्थगित कर दिया था, और पूर्वी लद्दाख सीमा विवाद के मद्देनजर ये प्रतिबंध जारी रहे।



बहरहाल, भारत द्वारा फिर से टूरिस्ट वीजा जारी करने के फैसले का चीन के विदेश मंत्रालय ने स्वागत किया। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गुओ जियाकुन ने मीडिया के भारत के फैसले पर एक सवाल का जवाब देते हुए कहा कि यह पॉजिटिव कदम है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर द्वारा बीजिंग में अपने चीनी समकक्ष वांग यी के साथ वार्ता के लगभग डेढ़ सप्ताह बाद भारतीय दूतावास द्वारा टूरिस्ट वीजा फिर से शुरू किए जाने का निर्णय लिया गया है।



विदेश मंत्री एस. जयशंकर की वर्ष 2019 के बाद पहली चीन यात्रा से ही दोनों देशों में संबंधों में सुधार के संकेत मिल गए थे। जयशंकर की यात्रा यह संकेत देती है कि भारत-चीन संबंधों में धीरे-धीरे सुधार हो रहा है और सहयोग की संभावनाएं फिर से उभर रही हैं, खासकर वैश्विक मंचों पर। हालांकि अब भी कई मतभेद बने हुए हैं, लेकिन BRICS और शंघाई सहयोग संगठन (SCO) जैसे मंचों के ज़रिए दोनों देशों के बीच संवाद फिर से सक्रिय होता दिख रहा है। चीन की यात्रा पर जयशंकर ने कहा...

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जयशंकर ने यह यात्रा अक्टूबर 2024 में कज़ान में प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच हुई मुलाकात के बाद की, जिसने द्विपक्षीय संबंधों को पुनर्जीवित करने की शुरुआत की थी। यह यात्रा SCO के विदेश मंत्रियों की बैठक के लिए थी, लेकिन चीन ने इसका विशेष महत्व दिया और उन्हें न केवल अपने समकक्ष वांग यी, बल्कि उपराष्ट्रपति हान झेंग से भी मुलाकात का अवसर दिया।



नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर में साउथ एशियन स्टडीज में विजिटिंग रिसर्च फेलो डॉ. इवान लिडारेव कहते हैं कि पिछले कुछ महीनों में दोनों देशों के बीच कई बैठकों का दौर चला है, जो यह दर्शाता है कि मई 2025 में पाकिस्तान के साथ हुए संघर्ष में चीन के समर्थन और दलाई लामा के मुद्दे को लेकर मतभेदों के बावजूद रिश्तों में गर्माहट बनी हुई है।

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मोदी की संभावित चीन यात्रा

प्रधानमंत्री मोदी के अगस्त 2025 में SCO नेताओं के शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए चीन जाने की संभावना है। यह दौरा इस दोनों देशों के बीच बर्फ पिघलने की प्रक्रिया को औपचारिक रूप से मजबूत करने वाला कदम होगा। माना जा रहा है कि तब तक सीमा पर हालात भी स्थिर हो जाएंगे, जिससे द्विपक्षीय संबंधों में आगे बढ़ने की संभावनाएं खुलेंगी।



वैश्विक मंच पर सहयोग की ज़रूरत, लेकिन सीमाएं बरकरार

डॉ. इवान लिडारेव कहते हैं कि जयशंकर की यात्रा इस बात का भी प्रतीक है कि वैश्विक स्तर पर बदलती परिस्थितियों में भारत और चीन के पास सहयोग के कई अवसर हैं – जैसे आर्थिक अस्थिरता, बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था को बढ़ावा देना, और पश्चिमी दबावों का मुकाबला करना। SCO की बैठक में उन्होंने “बहुध्रुवीयता” को बढ़ाने और वैश्विक अस्थिरता से निपटने की बात की।



अमेरिका की सख्ती और भारत-चीन संबंधचीन और भारत दोनों अमेरिका के डोनाल्ड ट्रंप के तहत सख्त नीतियों, रूसी तेल पर प्रतिबंध, और BRICS पर दबाव जैसी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। ऐसे में आपसी सहयोग दोनों देशों की रणनीतिक स्थिति को मजबूत कर सकता है।



BRICS में बढ़ती सक्रियताहाल में BRICS ने अनाज आपूर्ति और सदस्य देशों की मुद्राओं के ज़्यादा उपयोग जैसे मुद्दों पर सहयोग बढ़ाया है, जो अमेरिका के वर्चस्व के विरुद्ध एक रणनीति है। यहां तक कि इज़राइल द्वारा ईरान पर हमले जैसे विवादास्पद मुद्दे पर भी समूह ने साझा रुख अपनाया – जो पहले असामान्य था। लेकिन सीमाएं भी स्पष्ट हैं...हालांकि सहयोग की संभावना है, फिर भी कई पुराने विवाद इस रिश्ते की सीमा रेखा खींचते हैं।



सीमा विवाद: जयशंकर ने स्पष्ट किया कि द्विपक्षीय संबंधों की प्रगति के लिए सीमा पर तनाव कम करना जरूरी है।

पाकिस्तान का मुद्दा: चीन का पाकिस्तान को समर्थन, खासकर आतंकवाद के मुद्दे पर, भारत के लिए चिंता का विषय है।

आर्थिक दबाव: चीन द्वारा भारत पर कुछ निर्यातों (जैसे रियर अर्थ और उर्वरक) को लेकर लगाए गए प्रतिबंध।

दलाई लामा का विवाद: यह मुद्दा भी राजनीतिक तनाव का कारण बना हुआ है।



इन सभी मुद्दों ने इस यात्रा के दौरान भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई और यह दिखाया कि चाहे रिश्तों में सुधार हो रहा हो, लेकिन विश्वास और स्थिरता की राह अभी भी लंबी है। एस. जयशंकर की चीन यात्रा भारत-चीन संबंधों में एक नए अध्याय की शुरुआत का प्रतीक है। लेकिन यह एक ऐसा अध्याय है जिसमें उम्मीदें और बाधाएं साथ-साथ चल रही हैं। वैश्विक स्तर पर सहयोग की जरूरत और अवसर तो हैं, परंतु तब तक उसका पूरा लाभ नहीं उठाया जा सकता, जब तक कि पुराने द्विपक्षीय विवादों का समाधान या बेहतर प्रबंधन नहीं किया जाता।

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