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Happy Guru Purnima 2025 Quotes in Sanskrit: गुरु पूर्णिमा के लिए संस्कृत श्लोक, शुभकामनाएं और उनके हिंदी अर्थ

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Guru Purnima Ki Shubhkamnaye in Sanskrit Status: गुरु पूर्णिमा एक पावन पर्व है, जो हमारे जीवन में गुरु के महत्व को सम्मानित करने और उनके प्रति आभार व्यक्त करने के लिए मनाया जाता है। इस दिन हम अपने अध्यात्मिक, शैक्षिक और जीवन के मार्गदर्शकों को नमन करते हैं। यहां पर कुछ शक्तिशाली संस्कृत श्लोक, शुभकामनाएं और उनके हिंदी अर्थ दिए गए हैं, जिन्हें आप अपने गुरु को समर्पित कर सकते हैं।



गुरुपूर्णिमायाः हार्दिक शुभकामनाः

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1. गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।

गुरुर्साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः॥



अर्थ: गुरु ब्रह्मा हैं, गुरु विष्णु हैं, गुरु ही महेश्वर (शिव) हैं। गुरु ही साक्षात् परम ब्रह्म हैं, ऐसे श्रीगुरु को मैं नमन करता हूं।



2. अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया।

चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः॥



अर्थ: जो गुरु अज्ञानरूपी अंधकार में डूबे हुए शिष्य की आँखों को ज्ञानरूपी अंजन से खोलते हैं, ऐसे श्रीगुरु को मैं नमन करता हूं।



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3. गुरवे सर्वलोकानां विष्णवे स्थवरोपि च।

निःस्वरूपाय शान्ताय श्रीदक्षिणामूर्तये नमः॥



अर्थ: सभी लोकों के गुरु, विष्णु स्वरूप, स्थिर और शांत, ऐसे श्रीदक्षिणामूर्ति को मैं नमन करता हूं।



4. माता गुरुतरा भूमेः पिता चैव महीपतेः।

गुरुत्वे स्थापिता येन तस्मै श्रीगुरवे नमः॥



अर्थ: माता और पिता से भी अधिक श्रेष्ठ स्थान गुरु का है। जिन्होंने गुरु का यह स्थान निर्धारित किया, ऐसे श्रीगुरु को प्रणाम है।



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5. न गुरोरधिकं तत्त्वं न गुरोरधिकं तपः।

तत्त्वज्ञानात् परं नास्ति तस्मै श्रीगुरवे नमः॥



अर्थ: गुरु से बड़ा कोई तत्त्व नहीं है, गुरु से बड़ा कोई तप नहीं है। तत्त्वज्ञान से बढ़कर कुछ नहीं है, ऐसे श्रीगुरु को नमन है।



6. गुरुना सहस्रं शिष्याणां यः स्यात् शिक्षितः सुधीः।

एकेनापि सदा तुष्येत् न तु मूर्खशतेन वै॥



अर्थ: गुरु को एक बुद्धिमान शिष्य ही हजार मूर्ख शिष्यों से अधिक प्रिय होता है। गुरु को चाहिए कि वह एक बुद्धिमान शिष्य से ही संतुष्ट रहें।



7. यस्य देवे परा भक्तिः यथा देवे तथा गुरौ।

तस्यैते कथिता ह्यर्थाः प्रकाशन्ते महात्मनः॥



अर्थ: जिस व्यक्ति को अपने ईश्वर के समान ही अपने गुरु में भी परम भक्ति है, उसके लिए सभी ज्ञान स्वयं प्रकाशित हो जाते हैं।



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8. शिष्यस्तु गुरुवाक्येन सत्यमेवाचरेत्सदा।

सत्ये स्थित्वा गुरुं प्राप्य मोक्षमार्गं प्रपद्यते॥



अर्थ: शिष्य को चाहिए कि वह गुरु के वचनों का सदैव पालन करे। सत्य में स्थित होकर, गुरु के मार्गदर्शन से ही मोक्ष का मार्ग प्राप्त होता है।



9. अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम्।

तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः॥



अर्थ: जिन्होंने अखंड ब्रह्माण्ड में व्याप्त चर-अचर (जड़-चेतन) तत्व का बोध कराया, ऐसे श्रीगुरु को मैं नमन करता हूं।



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10. गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म न गुरुर्अधिकं ततः।

गुरुमेव समाश्रित्य सर्वं भवति निर्मलम्॥



अर्थ: गुरु स्वयं साक्षात् परम ब्रह्म हैं, उनसे बढ़कर कुछ भी नहीं है। केवल गुरु की शरण में जाने से ही सब कुछ पवित्र और निर्मल हो जाता है।

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