डॉ. आशीष कुमार त्रिपाठी, अमेठी: पूर्व केंद्रीय मंत्री और अमेठी से सांसद रहीं स्मृति इरानी 25 साल बाद फिर छोटे पर्दे पर वापसी कर रही हैं। स्मृति 29 जुलाई से ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी-2’ में तुलसी वीरानी के किरदार में फिर टीवी पर दिखाई देंगी। उनकी छोटे पर्दे पर वापसी का फैसला अमेठी सहित पूरे देश में चर्चा का विषय है।
गांव, घरों से लेकर सत्ता के गलियारों में चर्चा है कि क्या स्मृति राजनीति से दूर हो जाएंगी? आगामी लोकसभा चुनाव में अमेठी से भाजपा का उम्मीदवार कौन होगा? क्या स्मृति अमेठी की राजनीति में सक्रिय रहेंगी या फिर अदाकारी की दुनिया में वापस चली जाएंगी?
ऐसे जुड़ी अमेठी से पहचान
स्मृति टीवी सीरियल 'क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ से लोकप्रिय हुई थीं। इसका प्रीमियर साल 2000 में शुरू हुआ था। तुलसी के किरदार के तौर पर स्मृति को घर-घर तक पहचान मिली। बाद में छोटे पर्दे की दुनिया को अलविदा कहकर स्मृति ने राजनीति में कदम रखा। वह 19 अगस्त, 2011 से 23 मई, 2019 तक गुजरात से भाजपा की राज्यसभा सदस्य रहीं।
साल 2019 में वह अमेठी लोकसभा सीट से कांग्रेस का किला भेदकर सांसद बनीं। अमेठी के अब तक के चुनावी इतिहास में भाजपा केवल दो बार ही लोकसभा चुनाव जीत सकी है। साल 1998 में भाजपा के डॉ. संजय सिंह ने कांग्रेस के सतीश शर्मा को हराया था। 2019 में स्मृति ने तीन बार के सांसद और कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष राहुल गांधी को 55,120 वोट से हराकर बड़ी जीत दर्ज की।
इससे पहले 2014 के चुनाव में स्मृति को अमेठी से हार मिली थी, लेकिन उन्होंने अमेठी नहीं छोड़ा और यहां लोगों के बीच काम करती रहीं। इस दौरान स्मृति केंद्र में मंत्री रहीं और लगातार हर मंच से गांधी परिवार को सियासी रूप से घेरती रहीं।
अब सवाल ही सवाल
कांग्रेस ने 2024 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी की जगह उनके परिवार के करीबी रहे किशोरी लाल शर्मा को अमेठी से टिकट दिया। इस चुनाव में स्मृति को 1.67 लाख वोटों से हार मिली। हालांकि, चुनावी परिणाम के दिन प्रेस वार्ता में स्मृति ने कहा था कि हमारा रिश्ता अमेठी से है और हमेशा बना रहेगा।
राजनीतिक भविष्य के सवाल पर उन्होंने कहा था, 'बहन से भविष्य पूछते हो, बहनों से रिश्ता तब टूटता है जब अर्थी उठती है बहन की।' तब से अब तक स्मृति केवल एक दिन के लिए अमेठी आईं, जबकि गौरीगंज में उन्होंने अपना घर भी बनाया है। पार्टी के सूत्र बताते हैं कि कार्यकर्ताओं के बीच इस बात की सुगबुगाहट है की क्या स्मृति अमेठी की राजनीति में सक्रिय रहेंगी? कुछ लोग यह सवाल भी उठा रहे हैं कि कहीं छोटे पर्दे पर वापसी उन्हें राजनीति से दूर ना कर दे और स्मृति अमेठी से भाजपा का चेहरा नहीं होंगी तो इस गैप को कैसे भरा जाएगा?
गांव, घरों से लेकर सत्ता के गलियारों में चर्चा है कि क्या स्मृति राजनीति से दूर हो जाएंगी? आगामी लोकसभा चुनाव में अमेठी से भाजपा का उम्मीदवार कौन होगा? क्या स्मृति अमेठी की राजनीति में सक्रिय रहेंगी या फिर अदाकारी की दुनिया में वापस चली जाएंगी?
ऐसे जुड़ी अमेठी से पहचान
स्मृति टीवी सीरियल 'क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ से लोकप्रिय हुई थीं। इसका प्रीमियर साल 2000 में शुरू हुआ था। तुलसी के किरदार के तौर पर स्मृति को घर-घर तक पहचान मिली। बाद में छोटे पर्दे की दुनिया को अलविदा कहकर स्मृति ने राजनीति में कदम रखा। वह 19 अगस्त, 2011 से 23 मई, 2019 तक गुजरात से भाजपा की राज्यसभा सदस्य रहीं।
साल 2019 में वह अमेठी लोकसभा सीट से कांग्रेस का किला भेदकर सांसद बनीं। अमेठी के अब तक के चुनावी इतिहास में भाजपा केवल दो बार ही लोकसभा चुनाव जीत सकी है। साल 1998 में भाजपा के डॉ. संजय सिंह ने कांग्रेस के सतीश शर्मा को हराया था। 2019 में स्मृति ने तीन बार के सांसद और कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष राहुल गांधी को 55,120 वोट से हराकर बड़ी जीत दर्ज की।
इससे पहले 2014 के चुनाव में स्मृति को अमेठी से हार मिली थी, लेकिन उन्होंने अमेठी नहीं छोड़ा और यहां लोगों के बीच काम करती रहीं। इस दौरान स्मृति केंद्र में मंत्री रहीं और लगातार हर मंच से गांधी परिवार को सियासी रूप से घेरती रहीं।
अब सवाल ही सवाल
कांग्रेस ने 2024 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी की जगह उनके परिवार के करीबी रहे किशोरी लाल शर्मा को अमेठी से टिकट दिया। इस चुनाव में स्मृति को 1.67 लाख वोटों से हार मिली। हालांकि, चुनावी परिणाम के दिन प्रेस वार्ता में स्मृति ने कहा था कि हमारा रिश्ता अमेठी से है और हमेशा बना रहेगा।
राजनीतिक भविष्य के सवाल पर उन्होंने कहा था, 'बहन से भविष्य पूछते हो, बहनों से रिश्ता तब टूटता है जब अर्थी उठती है बहन की।' तब से अब तक स्मृति केवल एक दिन के लिए अमेठी आईं, जबकि गौरीगंज में उन्होंने अपना घर भी बनाया है। पार्टी के सूत्र बताते हैं कि कार्यकर्ताओं के बीच इस बात की सुगबुगाहट है की क्या स्मृति अमेठी की राजनीति में सक्रिय रहेंगी? कुछ लोग यह सवाल भी उठा रहे हैं कि कहीं छोटे पर्दे पर वापसी उन्हें राजनीति से दूर ना कर दे और स्मृति अमेठी से भाजपा का चेहरा नहीं होंगी तो इस गैप को कैसे भरा जाएगा?
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