सांपों को लेकर भारत में तरह-तरह की कथाएं हैं, किंवदंतियां हैं। इन सबके बीच प्रकृति से एक तालमेल भी है। नाग देवता पर पिछले दिनों के. हरि कुमार की किताब Naaga: Discovering the Extraordinary World of Serpent Worship आई है। इसमें उन्होंने नाग, प्रकृति, परंपरा, रीति-रिवाज और विज्ञान से जुड़ी तहकीकात की है। उनसे बात की NBT के राहुल पाण्डेय ने। पेश हैं बातचीत के प्रमुख अंश :
नाग देवता कौन हैं?
नाग देवता भारतीय संस्कृति में पूजे जाने वाले सर्प देवता हैं। कुछ का संबंध पुराणों से है, जबकि अन्य क्षेत्रीय लोककथाओं और आदिवासी मान्यताओं से जुड़े हैं। मुख्यतः ये प्रजनन क्षमता और सुरक्षा के लिए पूजे जाते हैं। इन्हे खजानों का रखवाला भी माना गया है। जिस दक्षिण भारत से मैं आता हूं, वहां ‘नाग’ शब्द का इस्तेमाल भारतीय कोबरा के लिए किया जाता है। हम उन्हें ‘प्रत्यक्ष देवता’ मानते हैं- यानी जिन्हें हम मूर्तियों के विपरीत उनके वास्तविक रूप में देख सकते हैं।
सांपों की पूजा में कई अजीब रीति-रिवाज हैं। पहले लोग इन्हें क्यों निभाते थे, और अब ये कैसे अंधविश्वास बन गए? कर्नाटक और केरल में सांपों की पूजा ज्यादा होती है, क्या ऐसा है?
कुछ रीति-रिवाज अब अंधविश्वास बन गए हैं, जैसे कि नाग पंचमी पर कैद सांपों को दूध पिलाना। नाग दूध नहीं पीते। इसके अलावा उत्तर भारत के कुछ समुदायों में आज भी जहरीले सांपों को गले में लपेटने के खतरनाक अनुष्ठान होते हैं। उनके दांत निकाले जाते हैं। ऐसा करने से नागों की आयु कम होती है। मूल पूजा प्रकृति की रक्षा के लिए थी। जितना मुझे समझ आया है, पूजा का सबसे स्वीकृत स्वरूप ‘नागशिला’ (पत्थर पर बनी नाग प्रतिमा) के सामने अनुष्ठान है। दक्षिण भारत में ये नागशिलाएं कर्नाटक में ‘नागबना’ और केरल में ‘सर्पकावु’ (कावु यानी चौकसी करना) नामक पवित्र वन क्षेत्रों के भीतर स्थापित की जाती हैं। हमारे पूर्वजों ने इन वनों को ‘नागदेवता का वन’ मानकर उनकी पूजा की। यहां पेड़ काटने या जमीन को नुकसान पहुंचाने की सख्त मनाही है। आधुनिक शोधकर्ताओं ने पाया है कि ये ‘सर्पकावु’ आज दुर्लभ पौधों और जीवों के लिए एक संपन्न इकोसिस्टम हैं।
मां मनसा कौन हैं, जिनकी पूजा बंगाल और असम में होती है? उनके बारे में आपको क्या-क्या अच्छा लगा?
मां मनसा कोई ‘अदृश्य नागिन’ नहीं हैं। वह शक्ति और कृपा का प्रतीक हैं। मां मनसा की कहानी में जो बात मुझे सबसे अच्छी लगती है, वह है अपनी पहचान के लिए उनका संघर्ष। उन्हें सर्पदंश से बचाने और इलाज करने वाली देवी के रूप में पूजा जाता है। कई विद्वानों का मानना है कि मनसा देवी सुंदरबन क्षेत्र में पनपने वाली एक पुरानी pre-Aryan serpent cult की प्रतिनिधि हैं। उनका संघर्ष चांद सौदागर नामक शिव भक्त से मान्यता पाने की कोशिश में दिखता है।
सांपों की कई तरह की प्रजातियां हैं। क्या इनके लिए अलग-अलग पूजा के तरीके हैं?
भारत के अधिकांश हिस्सों में, चाहे वह नाग पंचमी हो या नाग देवता की सामान्य पूजा, यह केवल भारतीय कोबरा को समर्पित होती है। हालांकि, भारत के कुछ हिस्सों में अन्य सर्पों को भी पूजा जाता है। कर्नाटक के कुछ हिस्सों में, विशेष रूप से आदिवासी समुदायों द्वारा, किंग कोबरा को एक अलग और शक्तिशाली देवता के रूप में पूजा जाता है। उन्हें ‘काडया’ मानकर पूजा जाता है। कुछ क्षेत्रों में अजगर की भी मानते है।
आपने हिमालय में सांपों को जमीन और परंपराओं का रक्षक कहा है। क्या वजह है?
अगर आप उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी रास्तों पर निकलेंगे, तो आपको सड़क के किनारे छोटे-छोटे नाग देवताओं के थाने मिलेंगे। स्थानीय लोगों में वे स्थानीय देवताओं के रूप में पूजे जाते हैं जिन्हें ‘ग्राम देवता’ या ‘कुल देवता’ की श्रेणी में रखा जाता है। हार्पर कॉलिंस से आई मेरी किताब में हिमालय के विभिन्न हिस्सों में नागों की खूबसूरत लोककथाएं हैं। इनमें सबसे खास है कश्मीर की उत्पत्ति की कहानी, जहां नीलनाग की भूमिका प्रमुख है। नागों को अक्सर हिमालय के जलस्रोतों, झीलों और नदियों का संरक्षक माना जाता है, जो जीवन के लिए सबसे आवश्यक तत्व हैं।
हिमालयी क्षेत्र में हिंदू और बौद्ध दोनों ही धर्मों में सर्पों को अत्यधिक सम्मान मिलता है। मुख्य कारण पुराना स्थानीय विश्वास है। हिंदू धर्म में वासुकी और शेषनाग हैं। बौद्ध धर्म में नागों ने बुद्ध को ज्ञान प्राप्ति के बाद तूफान से बचाया था। बौद्ध कला और iconography में बुद्ध को अक्सर एक विशाल नाग मुचलिंद के फन के नीचे दर्शाया जाता है। यह नागों को धम्मपाल के रूप में स्थापित करता है। दक्षिण भारत में भी नागराज और नागायक्षी की पूजा होती है। यह क्षेत्रीय दैवी शक्ति और वैदिक कर्मकांडों का एक स्पष्ट मिश्रण है।
रिसर्च में क्या आपको सांपों के अलावा अन्य जहरीले कीड़े या रेंगने वाले जीवों से जुड़ी कोई परंपरा दिखी?
मुझे बिच्छुओं और अन्य विषैले जीवों से जुड़ी एक कथा पुराणों में मिली। समुद्र मंथन से जब हलाहल निकला, तो भगवान शिव ने सृष्टि को बचाने के लिए उसे पी लिया। विष पीते हुए कुछ बूंदें गलती से नीचे गिर गईं। ये बूंदें बिच्छुओं और अन्य रेंगने वाले जीवों पर गिरीं, तो वे भी जहरीले हो गए। यह कहानी दर्शाती है कि हमारी परंपराएं प्रकृति में मौजूद हर बुराई या खतरे को भी एक दैवीय या पौराणिक घटना से जोड़कर उसका मूल तलाशने की कोशिश करती हैं।
नाग देवता कौन हैं?
नाग देवता भारतीय संस्कृति में पूजे जाने वाले सर्प देवता हैं। कुछ का संबंध पुराणों से है, जबकि अन्य क्षेत्रीय लोककथाओं और आदिवासी मान्यताओं से जुड़े हैं। मुख्यतः ये प्रजनन क्षमता और सुरक्षा के लिए पूजे जाते हैं। इन्हे खजानों का रखवाला भी माना गया है। जिस दक्षिण भारत से मैं आता हूं, वहां ‘नाग’ शब्द का इस्तेमाल भारतीय कोबरा के लिए किया जाता है। हम उन्हें ‘प्रत्यक्ष देवता’ मानते हैं- यानी जिन्हें हम मूर्तियों के विपरीत उनके वास्तविक रूप में देख सकते हैं।
सांपों की पूजा में कई अजीब रीति-रिवाज हैं। पहले लोग इन्हें क्यों निभाते थे, और अब ये कैसे अंधविश्वास बन गए? कर्नाटक और केरल में सांपों की पूजा ज्यादा होती है, क्या ऐसा है?
कुछ रीति-रिवाज अब अंधविश्वास बन गए हैं, जैसे कि नाग पंचमी पर कैद सांपों को दूध पिलाना। नाग दूध नहीं पीते। इसके अलावा उत्तर भारत के कुछ समुदायों में आज भी जहरीले सांपों को गले में लपेटने के खतरनाक अनुष्ठान होते हैं। उनके दांत निकाले जाते हैं। ऐसा करने से नागों की आयु कम होती है। मूल पूजा प्रकृति की रक्षा के लिए थी। जितना मुझे समझ आया है, पूजा का सबसे स्वीकृत स्वरूप ‘नागशिला’ (पत्थर पर बनी नाग प्रतिमा) के सामने अनुष्ठान है। दक्षिण भारत में ये नागशिलाएं कर्नाटक में ‘नागबना’ और केरल में ‘सर्पकावु’ (कावु यानी चौकसी करना) नामक पवित्र वन क्षेत्रों के भीतर स्थापित की जाती हैं। हमारे पूर्वजों ने इन वनों को ‘नागदेवता का वन’ मानकर उनकी पूजा की। यहां पेड़ काटने या जमीन को नुकसान पहुंचाने की सख्त मनाही है। आधुनिक शोधकर्ताओं ने पाया है कि ये ‘सर्पकावु’ आज दुर्लभ पौधों और जीवों के लिए एक संपन्न इकोसिस्टम हैं।
मां मनसा कौन हैं, जिनकी पूजा बंगाल और असम में होती है? उनके बारे में आपको क्या-क्या अच्छा लगा?
मां मनसा कोई ‘अदृश्य नागिन’ नहीं हैं। वह शक्ति और कृपा का प्रतीक हैं। मां मनसा की कहानी में जो बात मुझे सबसे अच्छी लगती है, वह है अपनी पहचान के लिए उनका संघर्ष। उन्हें सर्पदंश से बचाने और इलाज करने वाली देवी के रूप में पूजा जाता है। कई विद्वानों का मानना है कि मनसा देवी सुंदरबन क्षेत्र में पनपने वाली एक पुरानी pre-Aryan serpent cult की प्रतिनिधि हैं। उनका संघर्ष चांद सौदागर नामक शिव भक्त से मान्यता पाने की कोशिश में दिखता है।
सांपों की कई तरह की प्रजातियां हैं। क्या इनके लिए अलग-अलग पूजा के तरीके हैं?
भारत के अधिकांश हिस्सों में, चाहे वह नाग पंचमी हो या नाग देवता की सामान्य पूजा, यह केवल भारतीय कोबरा को समर्पित होती है। हालांकि, भारत के कुछ हिस्सों में अन्य सर्पों को भी पूजा जाता है। कर्नाटक के कुछ हिस्सों में, विशेष रूप से आदिवासी समुदायों द्वारा, किंग कोबरा को एक अलग और शक्तिशाली देवता के रूप में पूजा जाता है। उन्हें ‘काडया’ मानकर पूजा जाता है। कुछ क्षेत्रों में अजगर की भी मानते है।
आपने हिमालय में सांपों को जमीन और परंपराओं का रक्षक कहा है। क्या वजह है?
अगर आप उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी रास्तों पर निकलेंगे, तो आपको सड़क के किनारे छोटे-छोटे नाग देवताओं के थाने मिलेंगे। स्थानीय लोगों में वे स्थानीय देवताओं के रूप में पूजे जाते हैं जिन्हें ‘ग्राम देवता’ या ‘कुल देवता’ की श्रेणी में रखा जाता है। हार्पर कॉलिंस से आई मेरी किताब में हिमालय के विभिन्न हिस्सों में नागों की खूबसूरत लोककथाएं हैं। इनमें सबसे खास है कश्मीर की उत्पत्ति की कहानी, जहां नीलनाग की भूमिका प्रमुख है। नागों को अक्सर हिमालय के जलस्रोतों, झीलों और नदियों का संरक्षक माना जाता है, जो जीवन के लिए सबसे आवश्यक तत्व हैं।
हिमालयी क्षेत्र में हिंदू और बौद्ध दोनों ही धर्मों में सर्पों को अत्यधिक सम्मान मिलता है। मुख्य कारण पुराना स्थानीय विश्वास है। हिंदू धर्म में वासुकी और शेषनाग हैं। बौद्ध धर्म में नागों ने बुद्ध को ज्ञान प्राप्ति के बाद तूफान से बचाया था। बौद्ध कला और iconography में बुद्ध को अक्सर एक विशाल नाग मुचलिंद के फन के नीचे दर्शाया जाता है। यह नागों को धम्मपाल के रूप में स्थापित करता है। दक्षिण भारत में भी नागराज और नागायक्षी की पूजा होती है। यह क्षेत्रीय दैवी शक्ति और वैदिक कर्मकांडों का एक स्पष्ट मिश्रण है।
रिसर्च में क्या आपको सांपों के अलावा अन्य जहरीले कीड़े या रेंगने वाले जीवों से जुड़ी कोई परंपरा दिखी?
मुझे बिच्छुओं और अन्य विषैले जीवों से जुड़ी एक कथा पुराणों में मिली। समुद्र मंथन से जब हलाहल निकला, तो भगवान शिव ने सृष्टि को बचाने के लिए उसे पी लिया। विष पीते हुए कुछ बूंदें गलती से नीचे गिर गईं। ये बूंदें बिच्छुओं और अन्य रेंगने वाले जीवों पर गिरीं, तो वे भी जहरीले हो गए। यह कहानी दर्शाती है कि हमारी परंपराएं प्रकृति में मौजूद हर बुराई या खतरे को भी एक दैवीय या पौराणिक घटना से जोड़कर उसका मूल तलाशने की कोशिश करती हैं।
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