नई दिल्ली: भारत की चीन पर रेयर अर्थ और खनन मशीनरी के लिए निर्भरता बहुत बढ़ गई है। पिछले सात सालों में चीन से विशेष रिफाइनिंग और मैग्नेट बनाने वाले उपकरणों का आयात चार गुना हो गया है। यह स्थिति भारत के लिए बड़ी चिंता का विषय है। इसे देश की आत्मनिर्भरता की राह में बड़ी बाधा माना जा रहा है।
मनीकंट्रोल के एक विश्लेषण के मुताबिक, भारत की रेयर अर्थ और खनन से संबंधित मशीनरी के लिए चीन पर निर्भरता तेजी से बढ़ी है। पिछले सात सालों में चीन से ऐसे उपकरणों का आयात चार गुना से ज्यादा हो गया है। वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, विशेष उपकरणों का आयात वित्तीय वर्ष 2017-18 में 26.3 करोड़ डॉलर से बढ़कर वित्तीय वर्ष 2024-25 में 1.1 अरब डॉलर हो गया। इनमें रेयर अर्थ को शुद्ध करने और उत्पादन में इस्तेमाल होने वाले एजिटेटर, फर्नेस, इलेक्ट्रोलाइजर और सेपरेशन सिस्टम शामिल हैं।
इस अवधि में भारत के कुल ऐसे मशीनरी आयात में चीन की हिस्सेदारी वित्तीय वर्ष 2017-18 में 24.6 फीसदी से बढ़कर वित्तीय वर्ष 2024-25 में 44.6 फीसदी हो गई। यह इस अवधि में सबसे ज्यादा है। बढ़ती निर्भरता केवल कच्चे माल तक ही सीमित नहीं है, बल्कि उन्हें प्रोसेस करने के लिए जरूरी औजारों तक भी फैली हुई है। यह भारत के लिए एक रणनीतिक चुनौती पेश करता है। कारण है कि देश अपनी रेयर अर्थ वैल्यू चेन को मजबूत करना चाहता है।
चीन पर बहुत ज्यादा है निर्भरता चीन अब भारत की ओर से आयात की जाने वाली मशीनों का लगभग आधा हिस्सा प्रदान करता है। इनका इस्तेमाल रिफाइनिंग, सेपरेशन और मैग्नेट बनाने में होता है। ये तकनीकें स्वच्छ ऊर्जा, इलेक्ट्रिक वाहनों और रक्षा निर्माण जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों के लिए बहुत जरूरी हैं।
खासकर मैग्नेट बनाने वाली मशीनरी के आयात में चीन की हिस्सेदारी में भारी बढ़ोतरी देखी गई है। चीन से विशेष मशीनरी का आयात वित्तीय वर्ष 2018 में 15.9 करोड़ डॉलर से बढ़कर वित्तीय वर्ष 2024-25 में 86.4 करोड़ डॉलर हो गया। यह पांच गुना बढ़ोतरी है। इसमें रेयर अर्थ मैग्नेट उत्पादन में इस्तेमाल होने वाले सेडीमेंटेशन और क्रिस्टलाइजेशन एजिटेटर, मैग्नेट्रॉन स्पटरिंग और कोटिंग सिस्टम और वाइंडिंग और लैमिनेटिंग मशीनें शामिल हैं।
इसके अलावा, मेटल निकालने में इस्तेमाल होने वाले इलेक्ट्रोलाइजर का आयात दोगुना होकर 17 करोड़ डॉलर हो गया। जबकि मेटल एक्सट्रैक्शन में इस्तेमाल होने वाले इलेक्ट्रोलाइजर का आयात तीन गुना बढ़कर 3.2 करोड़ डॉलर हो गया। इलेक्ट्रोलाइजर के क्षेत्र में चीन ने जापान और जर्मनी को पीछे छोड़कर भारत का सबसे बड़ा सप्लायर बन गया है। वित्तीय वर्ष 2018-19 में भारत के आयात में इसकी हिस्सेदारी 24 फीसदी थी, जो वित्तीय वर्ष 2024-25 में बढ़कर 44 फीसदी हो गई।
हालांकि, फर्नेस के मामले में चीन अभी भी भारत को सबसे ज्यादा निर्यात करता है। लेकिन, पिछले तीन वर्षों में इसकी हिस्सेदारी थोड़ी कम हुई है। यह 56 फीसदी से घटकर 38.2 फीसदी हो गई है। यह दिखाता है कि कि इस श्रेणी में धीरे-धीरे डायवर्सिफिकेशन हो रहा है।
भारत की टेंशन क्यों बढ़ा रहे हैं आंकड़े?
कुल मिलाकर भारत ने वित्तीय वर्ष 2024-25 में रेयर अर्थ और खनन से संबंधित मशीनरी का 2.47 अरब डॉलर का आयात किया, जो वित्तीय वर्ष 2017-18 के 1.07 अरब डॉलर से काफी अधिक है। इसमें से 1.1 अरब डॉलर का आयात चीन से हुआ, जबकि सात साल पहले यह आंकड़ा केवल 26.3 करोड़ डॉलर था।
यह स्थिति तब और गंभीर हो जाती है जब चीन की ओर से हाल ही में निर्यात प्रतिबंधों का ख्याल आता है। अक्टूबर में चीन के वाणिज्य मंत्रालय और सीमा शुल्क प्रशासन ने अधिसूचनाओं 57, 58 और 61 के माध्यम से रेयर अर्थ से संबंधित वस्तुओं पर नए निर्यात नियंत्रण लागू किए। इससे वैश्विक स्तर पर रिफाइनिंग तकनीकों और उपकरणों तक पहुंच और कठिन हो गई है।
जैसे-जैसे भारत महत्वपूर्ण खनिजों की घरेलू खोज और प्रसंस्करण का विस्तार करने की कोशिश कर रहा है, देश का तकनीकी और उपकरण इकोसिस्टम अभी भी काफी हद तक चीन पर निर्भर है। बीजिंग की ओर से ऐसे उपकरणों पर नए निर्यात प्रतिबंध लगाने के साथ महत्वपूर्ण खनिजों में 'आत्मनिर्भरता' हासिल करना उम्मीद से कहीं अधिक चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है।
मनीकंट्रोल के एक विश्लेषण के मुताबिक, भारत की रेयर अर्थ और खनन से संबंधित मशीनरी के लिए चीन पर निर्भरता तेजी से बढ़ी है। पिछले सात सालों में चीन से ऐसे उपकरणों का आयात चार गुना से ज्यादा हो गया है। वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, विशेष उपकरणों का आयात वित्तीय वर्ष 2017-18 में 26.3 करोड़ डॉलर से बढ़कर वित्तीय वर्ष 2024-25 में 1.1 अरब डॉलर हो गया। इनमें रेयर अर्थ को शुद्ध करने और उत्पादन में इस्तेमाल होने वाले एजिटेटर, फर्नेस, इलेक्ट्रोलाइजर और सेपरेशन सिस्टम शामिल हैं।
इस अवधि में भारत के कुल ऐसे मशीनरी आयात में चीन की हिस्सेदारी वित्तीय वर्ष 2017-18 में 24.6 फीसदी से बढ़कर वित्तीय वर्ष 2024-25 में 44.6 फीसदी हो गई। यह इस अवधि में सबसे ज्यादा है। बढ़ती निर्भरता केवल कच्चे माल तक ही सीमित नहीं है, बल्कि उन्हें प्रोसेस करने के लिए जरूरी औजारों तक भी फैली हुई है। यह भारत के लिए एक रणनीतिक चुनौती पेश करता है। कारण है कि देश अपनी रेयर अर्थ वैल्यू चेन को मजबूत करना चाहता है।
चीन पर बहुत ज्यादा है निर्भरता चीन अब भारत की ओर से आयात की जाने वाली मशीनों का लगभग आधा हिस्सा प्रदान करता है। इनका इस्तेमाल रिफाइनिंग, सेपरेशन और मैग्नेट बनाने में होता है। ये तकनीकें स्वच्छ ऊर्जा, इलेक्ट्रिक वाहनों और रक्षा निर्माण जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों के लिए बहुत जरूरी हैं।
खासकर मैग्नेट बनाने वाली मशीनरी के आयात में चीन की हिस्सेदारी में भारी बढ़ोतरी देखी गई है। चीन से विशेष मशीनरी का आयात वित्तीय वर्ष 2018 में 15.9 करोड़ डॉलर से बढ़कर वित्तीय वर्ष 2024-25 में 86.4 करोड़ डॉलर हो गया। यह पांच गुना बढ़ोतरी है। इसमें रेयर अर्थ मैग्नेट उत्पादन में इस्तेमाल होने वाले सेडीमेंटेशन और क्रिस्टलाइजेशन एजिटेटर, मैग्नेट्रॉन स्पटरिंग और कोटिंग सिस्टम और वाइंडिंग और लैमिनेटिंग मशीनें शामिल हैं।
इसके अलावा, मेटल निकालने में इस्तेमाल होने वाले इलेक्ट्रोलाइजर का आयात दोगुना होकर 17 करोड़ डॉलर हो गया। जबकि मेटल एक्सट्रैक्शन में इस्तेमाल होने वाले इलेक्ट्रोलाइजर का आयात तीन गुना बढ़कर 3.2 करोड़ डॉलर हो गया। इलेक्ट्रोलाइजर के क्षेत्र में चीन ने जापान और जर्मनी को पीछे छोड़कर भारत का सबसे बड़ा सप्लायर बन गया है। वित्तीय वर्ष 2018-19 में भारत के आयात में इसकी हिस्सेदारी 24 फीसदी थी, जो वित्तीय वर्ष 2024-25 में बढ़कर 44 फीसदी हो गई।
हालांकि, फर्नेस के मामले में चीन अभी भी भारत को सबसे ज्यादा निर्यात करता है। लेकिन, पिछले तीन वर्षों में इसकी हिस्सेदारी थोड़ी कम हुई है। यह 56 फीसदी से घटकर 38.2 फीसदी हो गई है। यह दिखाता है कि कि इस श्रेणी में धीरे-धीरे डायवर्सिफिकेशन हो रहा है।
भारत की टेंशन क्यों बढ़ा रहे हैं आंकड़े?
कुल मिलाकर भारत ने वित्तीय वर्ष 2024-25 में रेयर अर्थ और खनन से संबंधित मशीनरी का 2.47 अरब डॉलर का आयात किया, जो वित्तीय वर्ष 2017-18 के 1.07 अरब डॉलर से काफी अधिक है। इसमें से 1.1 अरब डॉलर का आयात चीन से हुआ, जबकि सात साल पहले यह आंकड़ा केवल 26.3 करोड़ डॉलर था।
यह स्थिति तब और गंभीर हो जाती है जब चीन की ओर से हाल ही में निर्यात प्रतिबंधों का ख्याल आता है। अक्टूबर में चीन के वाणिज्य मंत्रालय और सीमा शुल्क प्रशासन ने अधिसूचनाओं 57, 58 और 61 के माध्यम से रेयर अर्थ से संबंधित वस्तुओं पर नए निर्यात नियंत्रण लागू किए। इससे वैश्विक स्तर पर रिफाइनिंग तकनीकों और उपकरणों तक पहुंच और कठिन हो गई है।
जैसे-जैसे भारत महत्वपूर्ण खनिजों की घरेलू खोज और प्रसंस्करण का विस्तार करने की कोशिश कर रहा है, देश का तकनीकी और उपकरण इकोसिस्टम अभी भी काफी हद तक चीन पर निर्भर है। बीजिंग की ओर से ऐसे उपकरणों पर नए निर्यात प्रतिबंध लगाने के साथ महत्वपूर्ण खनिजों में 'आत्मनिर्भरता' हासिल करना उम्मीद से कहीं अधिक चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है।
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