पटना: असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिममीन ( एआईएमआईएम ) अपनी मुस्लिम पार्टी की छवि को बदलने की कोशिश कर रही है। उसने बिहार विधानसभा चुनाव में अपने 25 उम्मीदवार उतारे हैं, जिनमें दो गैर-मुस्लिम चेहरे भी शामिल हैं। एआईएमआईएम भले ही खुद को धर्मनिरपेक्ष पार्टी कहती हो, लेकिन उसे हमेशा से एक धर्म विशेष की पार्टी माना जाता रहा है। अब यह पार्टी अपनी पुरानी छवि से हटकर खुद को एक सामाजिक न्याय वाली, सभी समुदायों के लिए लड़ने वाली पार्टी के तौर पर पेश करना चाह रही है। एआईएमआईएम का यह कदम ओवैसी की लंबी रणनीति का हिस्सा है।
एआईएमआईएम हालांकि पहले भी तेलंगाना, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में दलित, ओबीसी और हिंदू उम्मीदवारों को टिकट दे चुकी है। वह अब बिहार में भी इसी राह पर चलते हुए सिर्फ मुस्लिम बहुल इलाकों से आगे बढ़कर पूरे राज्य में अपनी पैठ बनाना चाहती है।
छवि बदलकर जनाधार बढ़ाने की कोशिश एआईएमआईएम ने बिहार में 100 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया था, लेकिन उसने 25 उम्मीदवार ही मैदान में उतारे हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में पार्टी ने 19 सीटों पर चुनाव लड़ा था और पांच सीटें जीती थीं, हालांकि बाद में उसके चार विधायक आरजेडी में शामिल हो गए थे। ओवैसी की पार्टी ने पहले आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद और उनके बेटे तेजस्वी यादव को इंडिया गठबंधन (महागठबंधन) में शामिल होने का प्रस्ताव भेजा था, लेकिन उन्हें कोई जवाब नहीं मिला।
असदुद्दीन ओवैसी इस बार दो गैर-मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारकर बिहार में अपने पारंपरिक मुस्लिम वोट बैंक से आगे बढ़कर व्यापक जनाधार तैयार करने की कोशिश कर रहे हैं। साल 2020 के विधानसभा चुनाव में एआईएमआईएम की पांचों सीटें मुस्लिम बहुल सीमांचल इलाके से आई थीं। इस बार पार्टी का लक्ष्य खुद को सिर्फ अल्पसंख्यक-केंद्रित पार्टी से ऊपर उठाकर उत्तर और दक्षिण बिहार के नए इलाकों में भी चुनाव लड़ना है।
आरजेडी के रवैये नाराज एआईएमआईएमएआईएमआईएम के बिहार के प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल इमान ने कहा है कि इस बार एनडीए और महागठबंधन दोनों को एआईएमआईएम की मौजूदगी का एहसास होगा। इमान ने दावा किया है कि महागठबंधन अब एआईएमआईएम पर धर्मनिरपेक्ष वोट काटने का आरोप नहीं लगा सकता, क्योंकि उन्होंने खुद लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव को गठबंधन के लिए प्रस्ताव भेजा था, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। अब पार्टी अपने पैर जमाने के लिए हरसंभव प्रयास करेगी।
ओवैसी और इमान दोनों ने इस बात पर जोर दिया है कि एआईएमआईएम का ध्यान सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व पर नहीं, बल्कि बिहार के सबसे कमजोर और उपेक्षित लोगों के लिए न्याय पर होगा। गैर-मुस्लिम नामों को शामिल करना ओवैसी के राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी को फिर से ब्रांड करने के प्रयास के अनुरूप है। वे एआईएमआईएम को एक अधिकार-आधारित मंच के रूप में पेश करना चाहते हैं, जो मुसलमानों के अलावा हाशिए पर पड़े हिंदुओं, दलितों और अति पिछड़ी जातियों को भी आकर्षित करे।
कमजोर और उपेक्षित लोगों के लिए न्याय की आवाज बनेंगेओवैसी ने एक्स पर अपने प्रत्याशियों की लिस्ट जारी की। उन्होंने लिखा, "हम बिहार चुनाव के लिए एआईएमआईएम के उम्मीदवारों की सूची की घोषणा करते हुए खुश हैं। उम्मीदवारों को एआईएमआईएम की बिहार इकाई ने पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व के साथ मिलकर अंतिम रूप दिया है। इंशाअल्लाह, हम बिहार के सबसे कमजोर और उपेक्षित लोगों के लिए न्याय की आवाज बनेंगे।" यह चयन उन क्षेत्रों में दलितों, ओबीसी और छोटी जातियों से जुड़कर एआईएमआईएम के सामाजिक आधार का विस्तार करने के उद्देश्य से किया गया है, जहां पार्टी की पहले बहुत कम मौजूदगी थी।
राजपूत और दलित एआईएमआईएम के उम्मीदवारएआईएमआईएम ने राणा रणजीत सिंह को ढाका से और मनोज कुमार दास को सिकंदरा से उम्मीदवार बनाया है। राजपूत नेता राणा रणजीत सिंह को टिकट देकर एआईएमआईएम सांप्रदायिकता के आरोपों का जवाब देने और उन मध्यम हिंदू मतदाताओं को आकर्षित करने की कोशिश कर रही है जो पार्टी की पिछली छवि को लेकर संशय में हैं। इसी तरह सिकंदरा से मनोज कुमार दास की उम्मीदवारी दी गई है। यहां दलित और एससी मतदाताओं की अच्छी खासी संख्या है। यह एआईएमआईएम का अंबेडकरवादी समूहों तक पहुंचने का प्रतीक है। यह कदम एआईएमआईएम के चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी के साथ गठबंधन को भी स्पष्ट करता है।
महागठबंधन से झटका मिलने के बाद एआईएमआईएम ने बिहार में 'गठबंधन फॉर डेमोक्रेटिक अलायंस' (GDA) का गठन किया है। इसमें आजाद समाज पार्टी और अपना जनता पार्टी (एजेपी) शामिल हैं। ओवैसी की यह रणनीति एनडीए और महागठबंधन के निचली जाति के वोटों पर एकाधिकार को चुनौती देने और यह भी संकेत देने के लिए है कि एआईएमआईएम केवल मुसलमानों के साथ ही नहीं, बल्कि हिंदुओं और दलितों के साथ भी राजनीतिक स्थान साझा करने को तैयार है।
एआईएमआईएम हालांकि पहले भी तेलंगाना, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में दलित, ओबीसी और हिंदू उम्मीदवारों को टिकट दे चुकी है। वह अब बिहार में भी इसी राह पर चलते हुए सिर्फ मुस्लिम बहुल इलाकों से आगे बढ़कर पूरे राज्य में अपनी पैठ बनाना चाहती है।
छवि बदलकर जनाधार बढ़ाने की कोशिश एआईएमआईएम ने बिहार में 100 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया था, लेकिन उसने 25 उम्मीदवार ही मैदान में उतारे हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में पार्टी ने 19 सीटों पर चुनाव लड़ा था और पांच सीटें जीती थीं, हालांकि बाद में उसके चार विधायक आरजेडी में शामिल हो गए थे। ओवैसी की पार्टी ने पहले आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद और उनके बेटे तेजस्वी यादव को इंडिया गठबंधन (महागठबंधन) में शामिल होने का प्रस्ताव भेजा था, लेकिन उन्हें कोई जवाब नहीं मिला।
असदुद्दीन ओवैसी इस बार दो गैर-मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारकर बिहार में अपने पारंपरिक मुस्लिम वोट बैंक से आगे बढ़कर व्यापक जनाधार तैयार करने की कोशिश कर रहे हैं। साल 2020 के विधानसभा चुनाव में एआईएमआईएम की पांचों सीटें मुस्लिम बहुल सीमांचल इलाके से आई थीं। इस बार पार्टी का लक्ष्य खुद को सिर्फ अल्पसंख्यक-केंद्रित पार्टी से ऊपर उठाकर उत्तर और दक्षिण बिहार के नए इलाकों में भी चुनाव लड़ना है।
आरजेडी के रवैये नाराज एआईएमआईएमएआईएमआईएम के बिहार के प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल इमान ने कहा है कि इस बार एनडीए और महागठबंधन दोनों को एआईएमआईएम की मौजूदगी का एहसास होगा। इमान ने दावा किया है कि महागठबंधन अब एआईएमआईएम पर धर्मनिरपेक्ष वोट काटने का आरोप नहीं लगा सकता, क्योंकि उन्होंने खुद लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव को गठबंधन के लिए प्रस्ताव भेजा था, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। अब पार्टी अपने पैर जमाने के लिए हरसंभव प्रयास करेगी।
ओवैसी और इमान दोनों ने इस बात पर जोर दिया है कि एआईएमआईएम का ध्यान सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व पर नहीं, बल्कि बिहार के सबसे कमजोर और उपेक्षित लोगों के लिए न्याय पर होगा। गैर-मुस्लिम नामों को शामिल करना ओवैसी के राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी को फिर से ब्रांड करने के प्रयास के अनुरूप है। वे एआईएमआईएम को एक अधिकार-आधारित मंच के रूप में पेश करना चाहते हैं, जो मुसलमानों के अलावा हाशिए पर पड़े हिंदुओं, दलितों और अति पिछड़ी जातियों को भी आकर्षित करे।
कमजोर और उपेक्षित लोगों के लिए न्याय की आवाज बनेंगेओवैसी ने एक्स पर अपने प्रत्याशियों की लिस्ट जारी की। उन्होंने लिखा, "हम बिहार चुनाव के लिए एआईएमआईएम के उम्मीदवारों की सूची की घोषणा करते हुए खुश हैं। उम्मीदवारों को एआईएमआईएम की बिहार इकाई ने पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व के साथ मिलकर अंतिम रूप दिया है। इंशाअल्लाह, हम बिहार के सबसे कमजोर और उपेक्षित लोगों के लिए न्याय की आवाज बनेंगे।" यह चयन उन क्षेत्रों में दलितों, ओबीसी और छोटी जातियों से जुड़कर एआईएमआईएम के सामाजिक आधार का विस्तार करने के उद्देश्य से किया गया है, जहां पार्टी की पहले बहुत कम मौजूदगी थी।
राजपूत और दलित एआईएमआईएम के उम्मीदवारएआईएमआईएम ने राणा रणजीत सिंह को ढाका से और मनोज कुमार दास को सिकंदरा से उम्मीदवार बनाया है। राजपूत नेता राणा रणजीत सिंह को टिकट देकर एआईएमआईएम सांप्रदायिकता के आरोपों का जवाब देने और उन मध्यम हिंदू मतदाताओं को आकर्षित करने की कोशिश कर रही है जो पार्टी की पिछली छवि को लेकर संशय में हैं। इसी तरह सिकंदरा से मनोज कुमार दास की उम्मीदवारी दी गई है। यहां दलित और एससी मतदाताओं की अच्छी खासी संख्या है। यह एआईएमआईएम का अंबेडकरवादी समूहों तक पहुंचने का प्रतीक है। यह कदम एआईएमआईएम के चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी के साथ गठबंधन को भी स्पष्ट करता है।
महागठबंधन से झटका मिलने के बाद एआईएमआईएम ने बिहार में 'गठबंधन फॉर डेमोक्रेटिक अलायंस' (GDA) का गठन किया है। इसमें आजाद समाज पार्टी और अपना जनता पार्टी (एजेपी) शामिल हैं। ओवैसी की यह रणनीति एनडीए और महागठबंधन के निचली जाति के वोटों पर एकाधिकार को चुनौती देने और यह भी संकेत देने के लिए है कि एआईएमआईएम केवल मुसलमानों के साथ ही नहीं, बल्कि हिंदुओं और दलितों के साथ भी राजनीतिक स्थान साझा करने को तैयार है।
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