ज्ञानेश्वर प्रसाद, लखनऊ: लखनऊ में बागवानों को इस बार आम के पूरे दाम नहीं मिले। बाग खरीदना घाटे का सौदा रहा। मंडियों में पिछले साल की तुलना में आम करीब दस रुपये प्रति किलो सस्ता बिका। लिहाजा किसानों को कोई खास फायदा नहीं हुआ। कृषि वैज्ञानिक और किसान आम सस्ता बिकने का कारण शुरुआत में बारिश न होना और अधिक गर्मी मान रहे हैं।
मलिहाबाद, माल व काकोरी के अलावा उन्नाव से सटे इलाकों में बहुतायत में आम की खेती होती है। किसानों की जीविका आम की फसल पर ही निर्भर रहती है। कुछ किसान अपने बाग से खुद आम तोड़कर बेचते हैं, तो कई लोग बाग खरीद कर फसल बेचते हैं। इस बार आम की फसल बहुत अच्छी थी। पैदावर देखकर अच्छी कमाई की उम्मीद थी, लेकिन भीषण गर्मी ने मंसूबों पर पानी फेर दिया।
5 जून से ही आम की फसल बागों में तेजी से पकने लगी और बारिश न होने से मंडियों में आम तेजी से पहुंचने लगा। ऐसे में जो आम 30 से 40 रुपये प्रति किलो तक बिकने की उम्मीद थी, उसे 20 से 30 रुपये प्रति किलो में बेचना पड़ा। लिहाजा किसानों को उम्मीद के मुताबिक मुनाफा नहीं हुआ। कई किसानों के लिए तो लागत निकालना तक मुश्किल रहा।
एक साथ पक गए आम
काकोरी के जेहटा निवासी जगलाल का कहना है कि बौर देखकर दो बीघे का बाग खरीदा था। हालांकि, गर्मी ज्यादा पड़ने से आम समय से पहले ही पकने लगा। ऐसे में मंडी में कच्चा आम सस्ता हो गया। वहीं, बारिश न होने से पेड़ पर आम रोकना मुश्किल होने लगा। ऐसे में तोड़कर मंडियों में भेजना पड़ा। सभी किसानों के आम एक साथ मंडी पहुंचने से दाम भी गिर गए। शुरुआती फसल देखकर मुनाफा होने की उम्मीद थी, लेकिन आम सस्ता होने से घाटा हो गया।
मलिहाबाद के मुंशी खेड़ा निवासी सुशील यादव का कहना है कि गर्मी ज्यादा होने से 5 जून से ही आम पकने लगा था, जबकि सामान्य तौर पर 15 जून के बाद ही पकना शुरू होता था। बाजार में पका आम अधिक आने से कच्चे आम की अच्छी कीमत नहीं मिल पाई, जिससे नुकसान हुआ। फसल अच्छी होने से आम अपेक्षा से अधिक पैदा हुआ है। ऐसे में मंडियों में आम बड़ी मात्रा में पहुंचा। आपूर्ति अधिक थी और खपत सीमित, इसीलिए अच्छे दाम नहीं मिले।
मोहान के राजसिंह का कहना है कि डाल से पककर गिरने वाले आम का गूदा ढीला हो जाता था। ऐसी फसल की बाजार में अच्छी कीमत नहीं मिलती। इसीलिए मजबूरन किसानों को पेड़ से कच्चे आम तोड़कर मंडियों में भिजवाना पड़ा। सभी किसानों के आम एक साथ टूटे और मंडी पहुंचने लगे। लिहाजा मंडी में आम की भरमार हो गई और रेट गिर गया।
इस्राइल और ईरान युद्ध का असर
बागवानों का कहना है कि आम की बिक्री पर इस्राइल और ईरान के युद्ध का भी असर पड़ा। लखनऊ और उन्नाव में इस बार आम सिर्फ दुबई ही जा पाया। हवाई सेवाएं प्रभावित होने से अमेरिका, सऊदी अरब, श्रीलंका व अन्य खाड़ी देशों के लिए निर्यात नहीं हो सका। सही समय पर निर्यात नहीं होने से भी मंडियों में आम से लदी ट्रकें खड़ी रहीं और औने-पौने दाम में बेचना पड़ा।
मोहान के सर्वेश बताते हैं कि पिछले सालों में ब्रोकर बाग में ही आकर फसल को बाहर भेजने की डील कर लेते थे। आम की गुणवत्ता देखकर भाव भी तय हो जाता था, लेकिन इस बार ब्रोकर आए ही नहीं। मंडियों में ही उन्हें फसल आसानी से और सस्ते दाम में मिल गई।
2000 से 2700₹ प्रति कुंतल
मंडियों में इस बार आम 2000 से लेकर 2700 रुपये प्रति कुंतल तक बिका है, जबकि यही आम पिछले साल तीन से चार हजार रुपये प्रति कुंतल के हिसाब से बिका था। बागवानों से व्यापारियों ने 2400-2500 रुपये प्रति कुंतल के हिसाब से बाग में ही आम खरीद लिया था। उम्मीद थी कि बाजार चार हजार रुपये प्रति कुंतल तक जाएगा, लेकिन सोची गई कीमत नहीं मिली, लिहाजा बाग खरीदने वाले व्यापारियों को भारी नुकसान हुआ है।
बाग खरीदने के बाद भी लगती है लागत
मलिहाबाद के किसानों का कहना है कि बाग खरीदने के बाद फल बेचने तक में काफी लागत लगानी पड़ती है। पेड़ में बौर रोकने के लिए दवाओं का छिड़काव करने के साथ ही आम को गिरने से रोकने के लिए धुलाई करवानी पड़ती है। इसके अलावा बाग में भी पानी चलाना पड़ता है, ताकि कच्चा आम पेड़ में रुका रहे। ऐसे में बाग खरीदने के बाद फसल लेने तक किसानों को काफी खर्च करना पड़ता है। फसल की उपयुक्त कीमत न मिलने से पूंजी भी डूब जाती है। इस बार ज्यादातर बागवानों के साथ ऐसी ही स्थिति सामने आई है।
दावा: 50 टन एक्सपोर्ट
रहमानखेड़ा कृषि अनुसंधान संस्थान के आंकड़ों के मुताबिक इस साल करीब 50 टन आम का निर्यात करवाया गया है, जबकि पिछले साल आम का निर्यात 30 टन के आसपास था। वहीं, बागवानों का कहना है कि ब्रोकर के जरिए खाड़ी देशों में पिछले साल की तरह आम भेजा नहीं जा सका।
50 रुपये में बिके बैगेज आम
रहमानखेड़ा कृषि अनुसंधान संस्थान के कृषि वैज्ञानिक टी दामोदरन का कहना है कि इस साल आम का उत्पादन ज्यादा था। 70 हजार हेक्टेअर से उपजे आम में से करीब 25 हजार हेक्टेटर के उत्पादन को प्रॉसेसिंग यूनिट से गुजार कर बैगेज से अलग-अलग शहरों में भेजा गया है। बैगेज्ड वाला आम औसतन 50 रुपये प्रति किलो और अधिकतम 80 रुपये प्रति किलो तक बिका है। कुछ किसानों ने दूसरे शहरों में बैगेज्ड आम डॉयरेक्ट सप्लाई किया तो उन्हें 70 रुपये प्रति किलो की कीमत मिली है। बाकी करीब 50 हजार हेक्टेअर में उत्पादित आम मंडियों और खुले में बेचा गया, जिससे अच्छी कीमत नहीं मिल पाई। किसानों को नुकसान न हो, इसके लिए हर ब्लॉक में प्रॉसेसिंग यूनिट बढ़ाने की तैयारी है, ताकि बैगेज्ड आम बाहर भेजा जा सके।
बैगेज्ड आम और साधारण आम में फर्क?
बाग में आम को पेड़ से तोड़कर प्रॉसेसिंग यूनिट से गुजारा जाता है। वहां आम को धुलकर, साफ करके उसके साइज के हिसाब से अलग किया जाता है। उसके बाद उन्हें कवर में रखकर बैग में पैक किया जाता है। इस प्रॉसेस से गुजरे आम को बैगेज्ड आम कहा जाता है। वहीं, बाग से आम तोड़कर सीधे पेटियों में पैक कर या ट्रकों में लादकर मंडी पहुंचाए जाने वाले आम को नॉन बैगेज्ड आम की श्रेणी में रखा जाता है। विदेश में बैगेज्ड आम की डिमांड सबसे अधिक है।
दशहरी क्यों है पसंद?
दशहरी मलिहाबाद की ही सबसे अधिक पसंद की जाती है। बागवानों का कहना है कि मलिहाबाद की दहशरी बाहर से लेकर भीतर तक ठस होती है, जबकि दूसरे इलाकों के आम में ऐसा नहीं होता है। यह मिट्टी की वजह से होता है।
मलिहाबाद, माल व काकोरी के अलावा उन्नाव से सटे इलाकों में बहुतायत में आम की खेती होती है। किसानों की जीविका आम की फसल पर ही निर्भर रहती है। कुछ किसान अपने बाग से खुद आम तोड़कर बेचते हैं, तो कई लोग बाग खरीद कर फसल बेचते हैं। इस बार आम की फसल बहुत अच्छी थी। पैदावर देखकर अच्छी कमाई की उम्मीद थी, लेकिन भीषण गर्मी ने मंसूबों पर पानी फेर दिया।
5 जून से ही आम की फसल बागों में तेजी से पकने लगी और बारिश न होने से मंडियों में आम तेजी से पहुंचने लगा। ऐसे में जो आम 30 से 40 रुपये प्रति किलो तक बिकने की उम्मीद थी, उसे 20 से 30 रुपये प्रति किलो में बेचना पड़ा। लिहाजा किसानों को उम्मीद के मुताबिक मुनाफा नहीं हुआ। कई किसानों के लिए तो लागत निकालना तक मुश्किल रहा।
एक साथ पक गए आम
काकोरी के जेहटा निवासी जगलाल का कहना है कि बौर देखकर दो बीघे का बाग खरीदा था। हालांकि, गर्मी ज्यादा पड़ने से आम समय से पहले ही पकने लगा। ऐसे में मंडी में कच्चा आम सस्ता हो गया। वहीं, बारिश न होने से पेड़ पर आम रोकना मुश्किल होने लगा। ऐसे में तोड़कर मंडियों में भेजना पड़ा। सभी किसानों के आम एक साथ मंडी पहुंचने से दाम भी गिर गए। शुरुआती फसल देखकर मुनाफा होने की उम्मीद थी, लेकिन आम सस्ता होने से घाटा हो गया।
मलिहाबाद के मुंशी खेड़ा निवासी सुशील यादव का कहना है कि गर्मी ज्यादा होने से 5 जून से ही आम पकने लगा था, जबकि सामान्य तौर पर 15 जून के बाद ही पकना शुरू होता था। बाजार में पका आम अधिक आने से कच्चे आम की अच्छी कीमत नहीं मिल पाई, जिससे नुकसान हुआ। फसल अच्छी होने से आम अपेक्षा से अधिक पैदा हुआ है। ऐसे में मंडियों में आम बड़ी मात्रा में पहुंचा। आपूर्ति अधिक थी और खपत सीमित, इसीलिए अच्छे दाम नहीं मिले।
मोहान के राजसिंह का कहना है कि डाल से पककर गिरने वाले आम का गूदा ढीला हो जाता था। ऐसी फसल की बाजार में अच्छी कीमत नहीं मिलती। इसीलिए मजबूरन किसानों को पेड़ से कच्चे आम तोड़कर मंडियों में भिजवाना पड़ा। सभी किसानों के आम एक साथ टूटे और मंडी पहुंचने लगे। लिहाजा मंडी में आम की भरमार हो गई और रेट गिर गया।
इस्राइल और ईरान युद्ध का असर
बागवानों का कहना है कि आम की बिक्री पर इस्राइल और ईरान के युद्ध का भी असर पड़ा। लखनऊ और उन्नाव में इस बार आम सिर्फ दुबई ही जा पाया। हवाई सेवाएं प्रभावित होने से अमेरिका, सऊदी अरब, श्रीलंका व अन्य खाड़ी देशों के लिए निर्यात नहीं हो सका। सही समय पर निर्यात नहीं होने से भी मंडियों में आम से लदी ट्रकें खड़ी रहीं और औने-पौने दाम में बेचना पड़ा।
मोहान के सर्वेश बताते हैं कि पिछले सालों में ब्रोकर बाग में ही आकर फसल को बाहर भेजने की डील कर लेते थे। आम की गुणवत्ता देखकर भाव भी तय हो जाता था, लेकिन इस बार ब्रोकर आए ही नहीं। मंडियों में ही उन्हें फसल आसानी से और सस्ते दाम में मिल गई।
2000 से 2700₹ प्रति कुंतल
मंडियों में इस बार आम 2000 से लेकर 2700 रुपये प्रति कुंतल तक बिका है, जबकि यही आम पिछले साल तीन से चार हजार रुपये प्रति कुंतल के हिसाब से बिका था। बागवानों से व्यापारियों ने 2400-2500 रुपये प्रति कुंतल के हिसाब से बाग में ही आम खरीद लिया था। उम्मीद थी कि बाजार चार हजार रुपये प्रति कुंतल तक जाएगा, लेकिन सोची गई कीमत नहीं मिली, लिहाजा बाग खरीदने वाले व्यापारियों को भारी नुकसान हुआ है।
बाग खरीदने के बाद भी लगती है लागत
मलिहाबाद के किसानों का कहना है कि बाग खरीदने के बाद फल बेचने तक में काफी लागत लगानी पड़ती है। पेड़ में बौर रोकने के लिए दवाओं का छिड़काव करने के साथ ही आम को गिरने से रोकने के लिए धुलाई करवानी पड़ती है। इसके अलावा बाग में भी पानी चलाना पड़ता है, ताकि कच्चा आम पेड़ में रुका रहे। ऐसे में बाग खरीदने के बाद फसल लेने तक किसानों को काफी खर्च करना पड़ता है। फसल की उपयुक्त कीमत न मिलने से पूंजी भी डूब जाती है। इस बार ज्यादातर बागवानों के साथ ऐसी ही स्थिति सामने आई है।
दावा: 50 टन एक्सपोर्ट
रहमानखेड़ा कृषि अनुसंधान संस्थान के आंकड़ों के मुताबिक इस साल करीब 50 टन आम का निर्यात करवाया गया है, जबकि पिछले साल आम का निर्यात 30 टन के आसपास था। वहीं, बागवानों का कहना है कि ब्रोकर के जरिए खाड़ी देशों में पिछले साल की तरह आम भेजा नहीं जा सका।
50 रुपये में बिके बैगेज आम
रहमानखेड़ा कृषि अनुसंधान संस्थान के कृषि वैज्ञानिक टी दामोदरन का कहना है कि इस साल आम का उत्पादन ज्यादा था। 70 हजार हेक्टेअर से उपजे आम में से करीब 25 हजार हेक्टेटर के उत्पादन को प्रॉसेसिंग यूनिट से गुजार कर बैगेज से अलग-अलग शहरों में भेजा गया है। बैगेज्ड वाला आम औसतन 50 रुपये प्रति किलो और अधिकतम 80 रुपये प्रति किलो तक बिका है। कुछ किसानों ने दूसरे शहरों में बैगेज्ड आम डॉयरेक्ट सप्लाई किया तो उन्हें 70 रुपये प्रति किलो की कीमत मिली है। बाकी करीब 50 हजार हेक्टेअर में उत्पादित आम मंडियों और खुले में बेचा गया, जिससे अच्छी कीमत नहीं मिल पाई। किसानों को नुकसान न हो, इसके लिए हर ब्लॉक में प्रॉसेसिंग यूनिट बढ़ाने की तैयारी है, ताकि बैगेज्ड आम बाहर भेजा जा सके।
बैगेज्ड आम और साधारण आम में फर्क?
बाग में आम को पेड़ से तोड़कर प्रॉसेसिंग यूनिट से गुजारा जाता है। वहां आम को धुलकर, साफ करके उसके साइज के हिसाब से अलग किया जाता है। उसके बाद उन्हें कवर में रखकर बैग में पैक किया जाता है। इस प्रॉसेस से गुजरे आम को बैगेज्ड आम कहा जाता है। वहीं, बाग से आम तोड़कर सीधे पेटियों में पैक कर या ट्रकों में लादकर मंडी पहुंचाए जाने वाले आम को नॉन बैगेज्ड आम की श्रेणी में रखा जाता है। विदेश में बैगेज्ड आम की डिमांड सबसे अधिक है।
दशहरी क्यों है पसंद?
दशहरी मलिहाबाद की ही सबसे अधिक पसंद की जाती है। बागवानों का कहना है कि मलिहाबाद की दहशरी बाहर से लेकर भीतर तक ठस होती है, जबकि दूसरे इलाकों के आम में ऐसा नहीं होता है। यह मिट्टी की वजह से होता है।
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