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क्राइम ब्रांच की धाकड़ से CRPF की जांबाज तक! आटा चक्की चलाने वाले पिता की 7 बेटियों के अफसर बनने की कहानी

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नई दिल्ली: सफलता की ये कहानी बिहार में छपरा जिले के एक छोटे से गांव से है। कभी अपनी सात बेटियों के लिए कमल सिंह को गांव वालों के ताने मिलते थे, लेकिन आज वही बेटियां देश की सेवा में समर्पित हैं। इन बेटियों ने न केवल अपने परिवार और गांव का नाम रोशन किया है, बल्कि समाज की सोच भी बदली है। उनकी एक बेटी क्राइम ब्रांच में है, तो एक सीआरपीएफ में, कोई रेलवे पुलिस में है तो कोई एसएसबी में। इन बेटियों ने दिखा दिया है कि वे किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं हैं।



कमल सिंह गांव में आटा चक्की चलाते हैं। उनकी पत्नी श्रद्धा देवी ने जब एक के बाद एक, सात बेटियों को जन्म दिया, तो गांव के लोगों ने ताने दिए। कई तरह की बातें सुनाईं। उनके 9 बच्चे थे, जिनमें से एक की मृत्यु हो गई। आठ जीवित बच्चों में से सात बेटियां हैं। आर्थिक तंगी के बीच कमल सिंह के लिए आठ बच्चों का पालन-पोषण करना आसान नहीं था।



लेकिन, कमल सिंह ने हार नहीं मानी और मुश्किल हालातों के बावजूद अपने सभी बच्चों को पढ़ाया। आज उनकी सातों बेटियां रानी कुमारी सिंह, रेणु कुमारी सिंह, सोनी कुमारी सिंह, कुमारी प्रीति सिंह, कुमारी पिंकी सिंह, कुमारी रिंकी सिंह और नन्ही सिंह देश सेवा में समर्पित हैं। इनमें रानी बिहार पुलिस में, रेणु सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) में, सोनी सीआरपीएफ में, प्रीति क्राइम ब्रांच में, पिंकी आबकारी पुलिस विभाग में, रिंकी बिहार पुलिस में और नन्ही रेलवे पुलिस (जीआरपी) में कार्यरत हैं।



पिता को बनाकर दिया 4 मंजिला घरकमल सिंह बताते हैं कि बेटियों को लेकर कई लोगों ने उनका मजाक उड़ाया। यहां तक कहा कि जब इन बेटियों की शादी होगी, तो सारी संपत्ति बिक जाएगी। लेकिन, इस तरह की बातों से कभी भी कमल सिंह का हौंसला नहीं टूटा। उन्हें अपनी बेटियों पर भरोसा था, जो आखिर में सही साबित हुआ। कामयाबी की कहानी लिखने वाली इन बेटियों ने गांव में अब अपना चार मंजिला घर बनवाकर ताने देने वालों को जवाब दिया है। कमल सिंह का बेटा राजीव भी दिल्ली में कार्यरत है। होली, दिवाली और छठ पर्व जैसे त्योहारों पर सभी बच्चे एक साथ इकट्ठा होते हैं।



जिनसे मिलते थे ताने, अब करते हैं तारीफकमल सिंह अपनी बेटियों को सुबह 4 बजे उठाते थे और उन्हें दौड़ सहित दूसरी शारीरिक गतिविधियों करने के लिए प्रेरित करते थे। साथ ही उन्हें प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने के लिए भी कहते थे। उनका दिन उनकी बेटियों के साथ शुरू होता और उन्हीं के साथ खत्म होता था। जिन लोगों से कभी इन बेटियों के लिए पिता को ताने सुनने को मिलते थे, आज वही लोग कमल सिंह की तपस्या और बेटियों के जज्बे को सलाम करते हैं। पिता कमल सिंह को जहां अपनी बेटियों पर गर्व है, वहीं उनकी कहानी पूरे बिहार के लिए एक प्रेरणा है।

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