लेकिन बहुत कम जानते होंगे कि उस दौरान किन तोपों और किन हथियारों को इस्तेमाल में लाया गया था। और आज उन्हें कहां रखा गया है। तो बता दें, कारगिल युद्ध की याद में यहां एक स्मारक बनाई गई है, जहां रोजाना 1000 से 1500 विजिटर्स आते हैं। कश्मीर और लेह जाने वाले एडवेंचर बाइकर्स के लिए तो ये पसंदीदा स्पॉट और ओवर पॉइंट बन चुका है। चलिए आपको आज बताते हैं कारगिल वॉर मेमोरियल के बारे में।
(All photo credit:wikimedia commons)
ऐसा दिखता है स्मारक का नजारा
जैसे ही आप कारगिल क्षेत्र में आएंगे आपको दूर से हवा के साथ लहराता तिरंगा दिखाई देगा, जिसे देख हर भारतीय का सीना चौड़ा हो जाता है। फिर स्मारक आने के बाद आपको झंडे के साथ 24 घंटे प्रज्ज्वलित रहने वाली अमर ज्योति दिखाई देगी, जिसकी लौ शहीद सैनिकों के सम्मान में जलती रहती है। स्मारक के बाईं तरफ कारगिल समर में वीरगति को प्राप्त हुए सैनिकों के नाम और दूसरी जानकारी वाले शिलालेख लगाए गए हैं।
इसी के साथ जोजिला के युद्ध समेत इस जगह पर लड़ी गई दूसरी लड़ाइयों का इतिहास भी काले ग्रेनाइट पर दर्ज है। स्मारक के बड़े दरवाजों से जैसे ही एंट्री करेंगे, आपको विजय पथ के दोनों तरफ उन नायकों की प्रतिमाएं दिखाई देंगी, जिन्होंने दुश्मन सैनिकों को अपनी भूमि से खदेड़ दिया था।
देखने को मिलेंगे बंदूकें और गोला बारूद

कारगिल युद्ध स्मारक की दाईं तरफ बनाई गई रिमेम्ब्रेंस हट में करीबन 15 से 20 मिनट बिताएं और पाकिस्तान के साथ लड़े गए युद्ध की कई परिस्थितियों को समझें। वहीं यहां मौजूद सैनिक भी पर्यटकों को जानकारी देने में मदद करते हैं। यहां आपको शहीद सैनिकों के चित्र, युद्ध में इस्तेमाल होने वाली बंदूकें और गोला बारूद समेत काफी कुछ देखने को मिलेगा, जो पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध की सटीक जानकारी देता है। स्मारक की यही जगह है, जहां फोटोग्राफी या वीडियो लेने की इजाजत नहीं है। इसके पीछे की वजह सुरक्षा है।
कारगिल युद्ध में तोप
कारगिल युद्ध को जीतने में बोफोर्स तोपों की भी अहम भूमिका रही है। बता दें, उस दौरान पूर्व और पश्चिम में पहाड़ों पर कब्जा जमाए पाकिस्तानी सैनिकों को खदेड़ने में यहां तैनात हुई 100 बोफोर्स तोपों का इस्तेमाल हुआ था। यहां 5140 गन हिल नाम से एक पॉइंट भी है, जो उन गनर्स को समर्पित है, जिनके लगातार आक्रमण ने पाकिस्तानी बंकरों को तबाह सैनिकों को भागने पर मजबूर कर दिया था।
मेमोरियल टॉवर और विक्रम बत्रा
मेमोरियल टावर उन सैनिकों की याद में बनाया गया है जिन्होंने युद्ध में अपनी जान गंवाई। इस टॉवर से आप दूर तक फैले पहाड़ और उन इलाकों को देख सकते हैं, जिससे आपको ये समझने में मदद मिलती है कि करगिल युद्ध के दौरान सैनिकों को कितनी मुश्किल हालात का सामना करना पड़ा था। विक्रम बत्रा टॉप, कारगिल युद्ध के सबसे बहादुर हीरो में से एक, ये कैप्टन विक्रम बत्रा को समर्पित है। ये जगह उनकी वीरता की याद दिलाती है, जब उन्होंने पॉइंट 4875 पर कब्जा किया था, जो युद्ध की एक बड़ी जीत थी। यहां खड़े होकर आपको ऐसा लगेगा जैसे उनकी मशहूर बात "ये दिल मांगे मोर" अब भी गूंज रही हो, जो आज भी उनकी हिम्मत और जज्बे की पहचान है।
कारगिल वॉर मेमोरियल कैसे पहुंचे
हवाई मार्ग से:ड्रास का सबसे पास का एयरपोर्ट लेह एयरपोर्ट है, जो लगभग 150 किलोमीटर दूर है।लेह से आप टैक्सी या प्राइवेट गाड़ी लेकर ड्रास जा सकते हैं, जिसमें करीब 5 से 6 घंटे लगते हैं।रेल मार्ग से:ड्रास का सबसे पास का रेलवे स्टेशन श्रीनगर रेलवे स्टेशन है, जो करीब 200 किलोमीटर दूर है।श्रीनगर से आप टैक्सी या बस लेकर ड्रास पहुंच सकते हैं।सड़क मार्ग से:ड्रास सड़क के रास्ते जम्मू-कश्मीर के कई बड़े शहरों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।अगर आप लेह से आ रहे हैं, तो नेशनल हाईवे 1D (NH 1D) के रास्ते ड्रास पहुंच सकते हैं, जिसमें करीबन 5 से 6 घंटे का समय लगता है।श्रीनगर से नेशनल हाईवे 1A के जरिए ड्रास पहुंच सकते हैं, इसमें लगभग 6 से 7 घंटे लगते हैं।
You may also like
व्हीट ग्रास जूस के फायदें जानकर उड़ जाएंगे आपके होश, इन गंभीर बिमारियों में करता है जबरदस्त असर ˠ
राजस्थान का सबसे बड़ा साइबर फ्रॉड! MBA मामा और इंजीनियर भांजे ने किया अरबों का घोटाला, जानिए कैसे दिया वारदात को अंजाम ?
'पाकिस्तान ज्यादा दिन टिक नहीं पाएगा'- भारत-पाक लड़ाई के बीच आईपीएल के बीच आईपीएल को लेकर गांगुली का बयान
Kalawa: हाथ में कलावा (रक्षा सूत्र) बांधने का सही तरीका और महत्व
भारत का जीरो एमिशन ट्रकिंग पर जोर, प्राथमिकता वाले गलियारों को लेकर जारी की रिपोर्ट