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ठाकरे बंधुओं में बढ़ी नजदीकियां! महाराष्ट्र की सियासत में नई गठजोड़ की आहट

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महाराष्ट्र की राजनीति में बड़ा बदलाव संभव है। शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे और मनसे प्रमुख राज ठाकरे के बीच लंबे समय से जमी राजनीतिक दूरी अब घुलती नजर आ रही है। सूत्रों की मानें तो विधानसभा चुनाव 2024-25 से पहले दोनों ठाकरे बंधु गठबंधन की दिशा में एक कदम और आगे बढ़ सकते हैं

पिघल रही बर्फ, बन रही सुलह की स्क्रिप्ट

2010 के दशक की शुरुआत से ही उद्धव और राज ठाकरे के बीच संबंधों में तल्खी बनी रही है। राज ठाकरे ने शिवसेना से अलग होकर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) की स्थापना की थी। लेकिन लोकसभा और विधानसभा चुनावों में बदलते समीकरणों, खासकर मराठी अस्मिता और हिंदुत्व के साझा एजेंडे ने दोनों के बीच की राजनीतिक दूरी को कम कर दिया है।

उद्धव ने शिवसैनिकों की टोह ली

सूत्रों के मुताबिक, उद्धव ठाकरे ने हाल के दिनों में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं और基层 शिवसैनिकों से बातचीत कर राज ठाकरे के साथ संभावित गठबंधन को लेकर उनकी राय जाननी शुरू कर दी है। उद्धव यह समझना चाहते हैं कि क्या पार्टी का कैडर राज ठाकरे के साथ सियासी तालमेल को स्वीकार कर पाएगा या नहीं।

बदलते हालात और साझा हित
  • बीजेपी के बढ़ते वर्चस्व और शिंदे गुट की चुनौती के बीच शिवसेना (यूबीटी) और मनसे दोनों की राजनीतिक प्रासंगिकता को नया सहारा मिल सकता है।

  • मराठी मानुष, हिंदुत्व, और मुंबई की राजनीति में पकड़ जैसे कई मोर्चों पर दोनों दलों की विचारधारा और जनाधार समान हैं।

  • गठबंधन की सूरत में मुंबई और ठाणे जैसे शहरी क्षेत्रों में विपक्ष को मज़बूती मिल सकती है।

राज ठाकरे की चुप्पी—रणनीति या संकेत?

राज ठाकरे ने अभी तक इस मुद्दे पर कोई सीधी प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन उनका बीजेपी और केंद्र से दूरी, और हाल के दिनों में उद्धव के खिलाफ आलोचना में नरमी को भी इस बदलते परिदृश्य का संकेत माना जा रहा है।

राजनीतिक विश्लेषकों की राय

राजनीतिक पंडितों का मानना है कि

“अगर ठाकरे बंधु एक साथ आते हैं, तो यह महाराष्ट्र में विपक्ष के लिए नई जान फूंक सकता है। लेकिन दोनों नेताओं की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएं और पुराना इतिहास एक बड़ा रोड़ा बन सकते हैं।”

आगे क्या?
  • आगामी हफ्तों में हो सकता है राजनीतिक घटनाक्रम तेज़ हो।

  • गणेशोत्सव या दशहरा रैली जैसे मंचों पर गठबंधन का कोई बड़ा संकेत भी मिल सकता है।

  • महाविकास अघाड़ी (MVA) की रणनीति पर भी इसका सीधा असर पड़ेगा।

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