शारदीय नवरात्रि के पावन दिनों में देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की विधिवत पूजा की जाती है। इस वर्ष नवरात्रि दस दिनों तक चलेगी। चतुर्थी तिथि बढ़ने के कारण, देवी के चौथे स्वरूप की पूजा 25 और 26 सितंबर, दोनों दिन की जाएगी। ऐसा माना जाता है कि देवी कूष्मांडा की पूजा करने से सभी रोग, दोष और कष्ट दूर होते हैं तथा यश, बल, धन और समृद्धि की प्राप्ति होती है। देवी का स्वरूप अष्टभुजा (आठ भुजाओं वाली) है, इसलिए उन्हें "अष्टभुजा देवी" भी कहा जाता है। उनके सात हाथों में कमंडल, धनुष, बाण, कमल का फूल, अमृत से भरा घड़ा, चक्र और गदा है, जबकि आठवें हाथ में जपमाला है। सिंह पर सवार होकर, वह अपने भक्तों पर कृपा करती हैं।
शास्त्रों के अनुसार, देवी कूष्मांडा ब्रह्मांड के केंद्र में निवास करती हैं और संपूर्ण ब्रह्मांड की अधिष्ठात्री हैं। कहा जाता है कि उनकी प्रभा और तेज सूर्य के समान है। वे सौरमंडल में निवास करती हैं और उनकी दिव्य आभा सभी दिशाओं को प्रकाशित करती है। इसलिए, इस दिन देवी माँ की पूजा भक्तों के जीवन में प्रकाश, ऊर्जा और सकारात्मकता लाने में विशेष रूप से फलदायी मानी जाती है।
पूजा का शुभ समय:
ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4:53 बजे से सुबह 5:40 बजे तक)
अभिजीत मुहूर्त (दोपहर 12:05 बजे से 12:54 बजे तक)
विजय मुहूर्त (दोपहर 2:30 बजे से 3:18 बजे तक)
गोधूलि मुहूर्त (शाम 6:31 बजे से शाम 6:55 बजे तक)
अमृत काल (अमृत काल) (12:15 बजे से 2:03 बजे तक)
निशिता मुहूर्त (12:06 पूर्वाह्न, 27 सितंबर से 12:54 पूर्वाह्न, 27 सितंबर)
सर्वार्थ सिद्धि योग (रात 10:09 बजे से सुबह 6:28 बजे तक, 27 सितंबर)
रवि योग (रात 10:09 बजे से सुबह 6:28 बजे तक, 27 सितंबर)
देवी कुष्मांडा की पूजा का महत्व
नवरात्रि के चौथे दिन देवी कुष्मांडा की पूजा-अर्चना की जाती है ऐसा माना जाता है कि इससे दीर्घायु, यश और समृद्धि प्राप्त होती है। शक्ति में वृद्धि होती है। भक्त की स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं दूर होती हैं और मानसिक व आध्यात्मिक शक्ति में वृद्धि होती है। यह पूजा विशेष रूप से व्यापार, करियर और पारिवारिक जीवन में आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए शुभ मानी जाती है। ऐसा माना जाता है कि देवी कूष्मांडा की पूजा करने से भक्त के भीतर ऊर्जा और नेतृत्व कौशल का विकास होता है। इससे सौभाग्य, सुख, समृद्धि और शांति भी प्राप्त होती है।
घर पर देवी कूष्मांडा की पूजा कैसे करें
स्नान और शुद्धि - सुबह स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा स्थल को स्वच्छ और पवित्र रखें।
देवी माँ का ध्यान - देवी कूष्मांडा की मूर्ति या चित्र स्थापित करें और दीपक जलाएँ। धूप और दीप से उनका ध्यान करें।
अर्पण - सुगंध, अक्षत, लाल फूल, सफेद कद्दू (कूष्मांडा), फल, सूखे मेवे और शुभ वस्तुएं अर्पित करें।
भोग अर्पण - देवी माँ को प्रसाद या नैवेद्य अर्पित करें। इस नैवेद्य को बाद में प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जा सकता है।
ध्यान और प्रार्थना - पूजा के दौरान देवी का ध्यान करें और उनसे अपनी मनोकामनाएँ व्यक्त करें।
आरती - अंत में, देवी कुष्मांडा की आरती गाकर पूजा का समापन करें।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, देवी कुष्मांडा कद्दू (सफेद कुष्मांडा) से विशेष रूप से प्रसन्न होती हैं, इसलिए इस दिन पूजा के दौरान कद्दू अर्पित करना शुभ माना जाता है।
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