प्राचीन भारत के महान अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ और विद्वान चाणक्य ने अपने ग्रंथ 'चाणक्य नीति' में जीवन के हर पहलू पर गहरी बात कही है। इनमें से एक विषय महिलाओं से जुड़ा है। चाणक्य का मानना था कि एक स्त्री के गुण न केवल उसके अपने जीवन को बल्कि उसके ससुराल और पूरे परिवार के भविष्य को भी प्रभावित करते हैं। चाणक्य नीति में कुछ ऐसे विशिष्ट गुणों का उल्लेख किया गया है जो एक स्त्री को ससुराल में आदर्श बहू और परिवार की शांति व समृद्धि का कारण बना सकते हैं।आज के समय में भी जब विवाह सिर्फ दो लोगों का नहीं, बल्कि दो परिवारों का मिलन होता है, तब चाणक्य की यह बातें और भी ज्यादा प्रासंगिक हो जाती हैं। आइए जानते हैं उन चार गुणों के बारे में जिन्हें चाणक्य ने एक स्त्री में आवश्यक बताया और जो उसे ससुराल में सबका प्रिय बना देते हैं।
1. संयम और सहनशीलता – घर की नींव को मजबूत रखने वाला गुणचाणक्य कहते हैं कि जिस स्त्री में संयम होता है, वह किसी भी परिस्थिति में अपने परिवार को टूटने नहीं देती। ससुराल में नए रिश्ते, नई परंपराएं और कई बार विपरीत स्थितियां होती हैं। एक संयमी स्त्री उन कठिन समय में भी अपने व्यवहार और सोच पर नियंत्रण रखती है। वह ना तो जल्द क्रोधित होती है, ना ही अपमान का बदला अपमान से लेती है। उसकी सहनशीलता ही पूरे घर को एकजुट रखने में मदद करती है। ऐसे स्वभाव वाली महिलाएं सास-ससुर से लेकर देवर-ननद तक सभी का दिल जीत लेती हैं।
2. गृह प्रबंधन में दक्षता – लक्ष्मी समान स्त्रीचाणक्य नीति में स्पष्ट उल्लेख है कि जो स्त्री घर को सुचारु रूप से चला सकती है, वह सच्चे अर्थों में लक्ष्मी के समान होती है। यहां बात केवल रसोई या सफाई तक सीमित नहीं है, बल्कि बजट, समय का प्रबंधन, जरूरतों को समझना और खर्चों को संतुलित रखना भी शामिल है। एक कुशल गृहिणी ससुराल को न केवल आर्थिक रूप से मजबूत बनाती है, बल्कि वातावरण को भी खुशहाल बनाए रखती है। वह घर के हर सदस्य की पसंद-नापसंद समझती है और उनके अनुसार काम करती है, जिससे परिवार में तालमेल बना रहता है।
3. मधुर और विचारशील वाणी – रिश्तों में मिठास घोलने वाला गुणचाणक्य का मानना था कि एक स्त्री की वाणी में अगर मिठास है, तो वह पूरे परिवार को अपने प्रेम में बांध सकती है। कटु वचन और कड़वा व्यवहार ससुराल में दूरियां बढ़ाता है, वहीं विनम्रता और समझदारी से बोली गई बातें रिश्तों को गहरा बनाती हैं। एक ऐसी स्त्री जो सबकी बात ध्यान से सुनती है, समय पर उचित सलाह देती है और तर्क की जगह प्रेम से बात करती है, वह पूरे घर को जोड़ कर रखती है। उसकी उपस्थिति ससुराल को एक मंदिर जैसा बना देती है, जहां सब सुकून महसूस करते हैं।
4. कर्तव्यनिष्ठा और परिवार के प्रति समर्पण – सच्ची जीवनसंगिनी की पहचानचाणक्य ने स्त्री के चौथे विशेष गुण के रूप में कर्तव्यनिष्ठा और समर्पण को स्थान दिया है। जो स्त्री अपने पति, सास-ससुर और परिवार के प्रति कर्तव्यों को समझती है और उन्हें निष्ठा से निभाती है, वही ससुराल में सच्चा सम्मान प्राप्त करती है। वह न केवल एक अच्छी पत्नी बनती है, बल्कि एक आदर्श बहू और जिम्मेदार सदस्य भी बन जाती है। अपने सुख-दुख से अधिक वह परिवार की भलाई को प्राथमिकता देती है, और यही भावना पूरे परिवार को एकजुट रखती है।
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