हमीरपुर, 25 मई . हिमाचल प्रदेश को प्राकृतिक खेती में देश का आदर्श राज्य बनाने की दिशा में मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंदर सिंह सुक्खू के संकल्प को साकार करने के लिए प्रदेश भर में जागरूकता और प्रोत्साहन का व्यापक अभियान चलाया जा रहा है. इसी अभियान को नया आयाम दे रहे हैं हमीरपुर जिला के बमसन ब्लॉक के गांव हरनेड़ के प्रगतिशील किसान ललित कालिया, जो न केवल प्राकृतिक खेती अपना चुके हैं बल्कि भारत के प्राचीन देसी बीजों के संरक्षण और वितरण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं.
ललित कालिया ने कुछ वर्ष पूर्व रासायनिक खेती के दुष्प्रभावों को समझते हुए पूरी तरह प्राकृतिक खेती को अपनाने का निर्णय लिया. उन्होंने अपनी पुश्तैनी जमीन पर बिना रासायनिक खाद और कीटनाशकों के खेती शुरू की. इस यात्रा में कृषि विभाग की आतमा परियोजना और हिमआर्या नेटवर्क ने उन्हें न केवल मार्गदर्शन दिया, बल्कि पुराने देसी बीजों के संरक्षण की दिशा में भी प्रेरित किया.
आज उनके प्रयासों से उनके घर में एक समृद्ध देसी बीज बैंक तैयार हो चुका है, जिसमें गेहूं की आठ पारंपरिक किस्में, मक्की, जौ, और कई लुप्तप्राय मोटे अनाज जैसे मंढल, कोदरा, कौंगणी और बाजरा के बीज शामिल हैं. इसके अलावा सरसों, तिल, कुल्थ, रौंग, माह, चना जैसी दलहनी और तिलहनी फसलों के साथ-साथ लहसुन, प्याज, भिंडी, घीया, कद्दू, रामतोरी, धनिया और मैथी जैसे दुर्लभ सब्जियों के बीज भी उनके संग्रह में हैं.
ललित कालिया का मानना है कि ये देसी बीज न केवल पौष्टिक गुणों से भरपूर हैं, बल्कि प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियों में भी बेहतर पैदावार देने में सक्षम हैं. यही कारण है कि वे इन्हें संरक्षित कर अधिक से अधिक किसानों तक पहुंचाना चाहते हैं.
प्राकृतिक खेती को लेकर प्रदेश सरकार की नीतियों की सराहना करते हुए ललित कालिया कहते हैं कि मुख्यमंत्री द्वारा प्राकृतिक फसलों के लिए उच्च खरीद मूल्य निर्धारित करना किसानों के लिए एक बड़ी सौगात है. उन्होंने बताया कि पिछले सीजन में उन्होंने प्राकृतिक विधि से तैयार एक क्विंटल से अधिक मक्की और इस बार एक क्विंटल गेहूं बेचकर अच्छी आय अर्जित की है.
ललित कालिया जैसे किसान यह साबित कर रहे हैं कि यदि संकल्प और मार्गदर्शन सही हो तो पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक सोच के मेल से टिकाऊ खेती को बढ़ावा दिया जा सकता है. उनका बीज संरक्षण कार्य न केवल किसानों के लिए बल्कि कृषि वैज्ञानिकों और नीति-निर्माताओं के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बन चुका है.
प्राकृतिक खेती की इस लहर को व्यापक बनाने की दिशा में ललित कालिया की यह पहल निश्चित रूप से एक हरित क्रांति की ओर मजबूत कदम है.
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शुक्ला
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