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खेतों में खरपतवार नियंत्रण की दिशा में इरी वैज्ञानिकों की पहल

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ट्रैक्टर-चलित ड्राई व वेट लैंड वीडर का किया गया सफल निर्माण और प्रदर्शन

वाराणसी, 09 जुलाई (Udaipur Kiran) । जलवायु परिवर्तन और अनियमित वर्षा के कारण किसानों को धान की खेती में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। पारंपरिक रोपाई पद्धति न केवल मानसून पर अत्यधिक निर्भर है, बल्कि अधिक पानी, श्रम और समय की मांग के चलते किसानों की लागत भी काफी बढ़ा देती है। ऐसे में धान की सीधी बुवाई (डीएसआर) तकनीक किसानों के लिए एक कारगर विकल्प बनकर उभरी है, जिससे न सिर्फ लागत में कमी आई है, बल्कि मुनाफा भी बढ़ा है। उत्तर प्रदेश के किसानों के बीच इस तकनीक को लोकप्रिय बनाने के लिए अंतरराष्ट्रीय धान अनुसंधान संस्थान – दक्षिण एशिया क्षेत्रीय केंद्र निरंतर प्रयासरत है। खरीफ 2025 सीजन के तहत आइसार्क ने पूर्वी उत्तर प्रदेश के आठ जिलों में 500 एकड़ से अधिक क्षेत्र में डीएसआर का समूह-प्रदर्शन आयोजित किया है।

—खरपतवार नियंत्रण: डीएसआर की सफलता की कुंजी

धान की सीधी बुवाई में सबसे बड़ी चुनौती है – खरपतवार नियंत्रण। यदि समय रहते खरपतवारों पर नियंत्रण नहीं पाया गया, तो वे फसल की वृद्धि को प्रभावित करते हैं और उपज में भारी गिरावट ला सकते हैं। इसी समस्या के समाधान हेतु इरी के वैज्ञानिकों ने ट्रैक्टर-चलित ड्राई व वेट लैंड वीडर का सफलतापूर्वक निर्माण किया है।

नव-निर्मित वीडर की विशेषताएं

इरी के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. आर.के. मलिक ने बताया कि यह मशीन ट्रैक्टर के साथ नैरो व्हील्स (पतले टायर) लगाकर चलाई जाती है, जिससे खेतों में लगे धान के पौधों को कोई नुकसान नहीं होता और खरपतवार की सटीक निराई संभव हो पाती है। मशीन का वजन हल्का होने के कारण यह कम नमी वाली भूमि में भी प्रभावशाली ढंग से काम करती है। बुवाई के 25–30 दिन बाद इस वीडर से की गई निराई बेहद कारगर होती है। एक ट्रैक्टर एक घंटे में लगभग एक एकड़ क्षेत्र की निराई कर सकता है। यह तकनीक न सिर्फ श्रम की बचत करती है, बल्कि मिट्टी की भौतिक गुणवत्ता में भी सुधार लाती है। इस वीडर का प्रथम सफल प्रदर्शन मिर्जापुर जनपद के पनियारा गाँव में किसानों के डीएसआर खेतों में किया गया, जहां किसानों ने इस मशीन की कार्यक्षमता को सराहा।

लागत घटाएगी, टिकाऊ खेती को बढ़ावा देगी

इरी के वैज्ञानिक डॉ. राबे यहाया ने बताया कि यांत्रिक निराई सही समय पर की जाए तो यह रासायनिक खरपतवारनाशकों की आवश्यकता को भी कम कर सकती है, जिससे खेती की लागत घटेगी और पर्यावरणीय प्रभाव भी कम होगा। साथ ही, यह तकनीक उन किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती है जो मजदूरों की कमी से जूझ रहे हैं।

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(Udaipur Kiran) / श्रीधर त्रिपाठी

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