मध्य प्रदेश के देवास जिले के एक छोटे से गांव धोबघट्टा में एक ऐसी घटना सामने आई है, जिसने न केवल स्थानीय समुदाय को झकझोर दिया, बल्कि सामाजिक दबाव और पारिवारिक सम्मान की जटिलताओं को भी उजागर किया। एक परिवार के चार सदस्यों—राधेश्याम (50), उनकी पत्नी रंगूबाई (48), और उनकी दो बेटियों आशा (23) और रेखा (15)—ने जहर खाकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। यह दुखद घटना 21 जून को शुरू हुई और कुछ ही दिनों में पूरे परिवार की मृत्यु हो गई। इस त्रासदी के पीछे की वजह सामाजिक दबाव और पारिवारिक बहिष्कार की एक दर्दनाक कहानी है, जिसने इस परिवार को इस हद तक तोड़ दिया कि उन्होंने इतना बड़ा कदम उठा लिया।
एक परिवार का अंत: दुखद घटनाक्रमदेवास जिले के उदयनगर क्षेत्र में बसे धोबघट्टा गांव में यह हृदयविदारक घटना घटी। 21 जून को राधेश्याम ने सबसे पहले जहर खाया और उसी दिन उनकी मृत्यु हो गई। उनके अंतिम संस्कार के बाद अगले ही दिन, 23 जून को, उनकी पत्नी रंगूबाई और बड़ी बेटी आशा ने भी दम तोड़ दिया। सबसे छोटी बेटी रेखा ने अस्पताल में 48 घंटे से अधिक समय तक जिंदगी के लिए संघर्ष किया, लेकिन चिकित्सकों के तमाम प्रयासों के बावजूद उसे बचाया नहीं जा सका। चारों सदस्यों की मृत्यु ने गांव में सन्नाटा पसार दिया। परिवार की आजीविका खेती-बाड़ी से चलती थी, और दोनों बेटियां भी अपने माता-पिता के साथ खेतों में मेहनत करती थीं। उनके पास गांव में दो बीघा जमीन थी, जो उनकी मेहनत और जीवटता की कहानी बयां करती थी।
त्रासदी की जड़: सामाजिक दबाव और बहिष्कारजांच के दौरान पुलिस को इस घटना के पीछे की वजह का पता चला, जो सामाजिक दबाव और पारिवारिक कलह से जुड़ी थी। राधेश्याम का बेटा सोहन अपनी चाची गायत्री के साथ भाग गया था, जिसके तीन बच्चे भी हैं। इस घटना ने परिवार और समुदाय में भारी रोष पैदा किया। सोहन का यह कदम दिसंबर-जनवरी में हुआ था, और तब से वह अपने परिवार से अलग था। समाज के कुछ लोगों ने राधेश्याम और उनके परिवार पर लगातार दबाव बनाया, जिसके चलते परिवार ने बहिष्कार का सामना किया। राधेश्याम के छोटे भाई कमल कन्नौज ने बताया कि कुछ लोग लगातार उनके भाई पर सामाजिक दबाव डाल रहे थे, जिसने उन्हें इस आत्मघाती कदम की ओर धकेल दिया। कमल ने कहा, “हमारा परिवार मेहनती और साधारण था। हम चाहते हैं कि ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त कार Students हो, जिन्होंने हमारे परिवार को इस हालत में पहुंचाया।”
सामाजिक दबाव: एक बड़ा सवालयह घटना केवल एक परिवार की कहानी नहीं है, बल्कि समाज में गहरे बैठे दबावों और रूढ़ियों को उजागर करती है। सामाजिक मान्यताओं और सम्मान के नाम पर कई बार परिवारों को ऐसी स्थिति में धकेल दिया जाता है, जहां उनके पास कोई रास्ता नहीं बचता। इस मामले में पुलिस ने राधेश्याम के भाई के बयान दर्ज किए हैं, लेकिन अभी तक उन लोगों के नाम सामने नहीं आए, जिन्होंने परिवार पर दबाव बनाया।
धोबघट्टा की इस त्रासदी ने न केवल एक परिवार को खत्म किया, बल्कि समाज के सामने कई सवाल भी खड़े किए हैं। क्या हमारा समाज इतना असंवेदनशील हो गया है कि लोग अपने सम्मान के लिए अपनी जिंदगी तक दांव पर लगा देते हैं? इस घटना से हमें यह सीखने की जरूरत है कि परिवार और समुदाय को एक-दूसरे का सहारा बनना चाहिए, न कि दबाव का कारण। पुलिस इस मामले की गहन जांच कर रही है, और उम्मीद है कि दोषियों के खिलाफ कार्रवाई होगी। यह त्रासदी हमें याद दिलाती है कि हमें अपने समाज में संवेदनशीलता और सहानुभूति को बढ़ावा देना होगा, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं न दोहराई जाएं।